मुख्यपृष्ठस्तंभमणिपुर का मन : मणिपुर ३६५ दिन बाद!

मणिपुर का मन : मणिपुर ३६५ दिन बाद!

मनमोहन सिंह

मणिपुर में भड़की जातीय हिंसा को एक साल हो गया है, इसके बावजूद कोई समाधान नजर नहीं आ रहा है। सवाल मुंह बाए खड़ा है कि क्या मणिपुर पिछले ३६५ दिनों में कल्पना से तथ्यों को अलग करने में सक्षम है? क्या उसने मादक पदार्थों के गिरोह की रीढ़ तोड़ने की दिशा में कोई सार्थक कदम उठाया? क्या वह अवैध अप्रवासियों की पहचान करने की राह पर है, जिन्होंने अतिक्रमण किया है, जंगलात की भूमि पर कब्जा कर लिया और नई बस्तियां बसा दीं! कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री एन बीरेन ने यहां तक ​​घोषणा की कि मणिपुर में सौ के करीब नए गांव उग आए हैं। यदि सरकार की नजर में यह बात आ चुकी है तो उसे उचित कार्रवाई करने से कौन रोक रहा है, यह स्वाभाविक सवाल है। सेना और असम राइफल्स जैसे अर्धसैनिक बलों को सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन (एसओओ) वैâडरों पर कार्रवाई करने से कौन रोक रहा है? क्या मणिपुर ने एसओओ की सटीक `आधिकारिक स्थिति’ जानने में कोई प्रगति की है? सबसे अहम सवाल यह है कि फिलहाल, एसओओ की स्थिति क्या है? इस बात की कोई घोषणा नहीं की गई है कि संधि को २९ फरवरी के बाद बढ़ा दिया गया है और तर्क यह है कि यदि संधि को बढ़ाया नहीं गया है तो इसका मतलब है कि इसकी वैधता समाप्त हो गई है!
दरअसल, कभी-कभी ऐसा लगने लगा है कि सरकार की संवादशून्यता और उदासीनता को देखते हुए समाधान खोजने की प्रक्रिया लोगों की ओर से होनी चाहिए। क्या सरकार को नहीं चाहिए इतना वक्त गुजरने के बाद उसे लोगों के सवालों और मुद्दों के समाधान के साथ आना चाहिए? सरकार अपनी प्रधान्यता तय करने में कब तक ढिलाई बरतती रहेगी? उसे चाहिए कि वह नार्को-आतंकवादियों की रीढ़ तोड़ें, सभी अवैध अप्रवासियों की पहचान करें और उन्हें निर्वासित करें! हालांकि, मणिपुर नार्को-आतंकवादियों पर पलटवार कर रहा है, फिर भी हालात को देखते हुए नाकाफी मालूम पड़ रहा है। एक साल बीत जाने के बाद भी यह विडंबना नहीं तो और क्या है कि मणिपुर का दो क्षेत्रों में `बफर’ हो गया है! कोई भी मैतेई सेकमाई से आगे उत्तर की ओर यात्रा नहीं कर सकता, पश्चिम में मोइरांग से आगे और दक्षिण में पलेल से आगे भी हालात ऐसे ही हैं! इसी तरह कुकी-जजो समुदाय का कोई भी व्यक्ति इंफाल और अन्य घाटी जिलों में नहीं आ सकता है, जहां मेइती लोग रहते हैं! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्या यह दावा कि मणिपुर में हालात अच्छे हैं सुनने में भले ही ठीक लगे लेकिन सच्चाई से मुंह कैसे मोड़ा जा सकता है? मणिपुर में जातीय हिंसा को ३६५ दिन से ज्यादा हो गए हैं। देश का एक हिस्सा अगर हिंसा की आग में जल रहा हो तो कैसे माना जा सकता है कि देश में सब कुछ ठीक है!
एक साल बीत जाने के बाद भी यह विडंबना नहीं तो और क्या है कि मणिपुर का दो क्षेत्रों में `बफर’ हो गया है! कोई भी मैतेई सेकमाई से आगे उत्तर की ओर यात्रा नहीं कर सकता, पश्चिम में मोइरांग से आगे और दक्षिण में पलेल से आगे भी हालात ऐसे ही हैं!’

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