सामना संवाददाता / मुंबई
वसई-विरार सिटी म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन (वीवीसीएमसी) द्वारा नालासोपारा ईस्ट के अग्रवाल नगर में ४१ अवैध इमारतों को गिराने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। हजारों परिवार इस कार्रवाई से प्रभावित हो सकते हैं, लेकिन अब तक उनके पुनर्वास की कोई योजना नहीं बनाई गई है। मुंबई हाई कोट्र ने तीन हफ्तों में इस पर जवाब मांगा है।
यह मामला एडवोकेट चेतन भोईर द्वारा दायर जनहित याचिका (पीआर्ईएल) के बाद उठा। याचिका में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने अवैध इमारतों को गिराने की अनुमति दी थी, लेकिन साथ ही प्रभावित परिवारों के पुनर्वास की संभावना तलाशने का निर्देश भी दिया है। इसके बावजूद वीवीसीएमसी ने पहले ही तोड़-फोड़ की प्रक्रिया शुरू कर दी, जबकि पुनर्वास को लेकर कोई ठोस योजना नहीं बनाई गई।
वीवीसीएमसी का कहना है कि ये इमारतें बिना प्लानिंग परमिशन के बनी थीं और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और डंपिंग ग्राउंड के लिए आरक्षित जमीन पर थी तो प्रशासन ने उन्हें बनने ही क्यों दिया? अब हाई कोर्ट ने साफ किया है कि वीवीसीएमसी को विस्थापित परिवारों के पुनर्वास की जिम्मेदारी लेनी होगी। अगर संतोषजनक जवाब नहीं मिला तो कोर्ट आगे कार्रवाई कर सकता है।
अतिक्रमण पर मुफ्त मकान क्यों?
हाई कोर्ट ने कहा कि महाराष्ट्र में जन आवास एक गंभीर समस्या बन चुका है, क्योंकि लोग सरकारी और निजी जमीनों पर अतिक्रमण कर झुग्गियां बना रहे हैं। सरकार बाद में इन झुग्गियों को वैध कर पुनर्वास योजना के तहत मुफ्त मकान दे रही है, जिससे अतिक्रमण को बढ़ावा मिल रहा है। अदालत ने महाराष्ट्र सरकार से पूछा कि क्या कोई भी व्यक्ति किसी भी जमीन पर कब्जा ले और बाद में उसे कानूनी रूप से मकान मिल जाए तो क्या यह नीति सही है? कोर्ट ने कहा कि ऐसी व्यवस्था से मैंग्रोव्ज जंगल और सार्वजनिक जमीनें धीरे-धीरे खत्म हो रही है।