पी. जायसवाल मुंबई
अखबारों में, टीवी में विशेषज्ञों के मुंह से बार-बार हम लोग जीडीपी सुनते हैं। देश के अर्थ विशेषज्ञ तो इसे समझते हैं, लेकिन आम जनमानस को समझ में नहीं आता कि ये जीडीपी क्या है? उसको लगता है कि यह भी कोई शेयर मार्वेâट की तरह सूचकांक है, जो ऊपर-नीचे चढ़ता रहता है। यहां हम आम आदमी की भाषा में समझते हैं कि ये जीडीपी क्या है? जीडीपी का हिंदी मतलब होता है सकल घरेलू उत्पाद। सकल मतलब संपूर्ण, घरेलू मतलब इंडिया का ही भौगोलिक क्षेत्र और उत्पाद का मतलब एक निश्चित कालावधि में उत्पादित सेवाएं और वस्तुएं। मतलब एक निश्चित कालावधि में भारत देश रूपी निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में कितना वस्तुओं का निर्माण एवं कितना सेवाओं का कार्य हुआ, बस इसका मूल्यांकन करते हैं और जोड़ देते हैं। यह मूल्यांकन और इसका जोड़ हर तिमाही और सालाना होता है और इस जोड़ को ही हम सकल घरेलू उत्पाद कहते हैं। अत: एक तिमाही या एक सालाना का दूसरे तिमाही या सालाना से तुलना करते हैं तो देखते हैं कि कितनी वृद्धि हुई है और उसका प्रतिशत निकालते हैं।
भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में यह अर्थव्यवस्था को नापने का वर्तमान में मानक आंकड़ा है। इनके अनुमानों पर नीति नियंता, सरकारें, अर्थशास्त्री, निवेशक और बैंकर नजरें गड़ाए रहते हैं। जिस देश का उत्पादन और सेवा व्यवसाय का योग सबसे ज्यादा होता है, उसे आर्थिक दृष्टि से अच्छा देश भी माना जाता है।
भारत में जीडीपी के लिए आंकड़े इकट्ठा करने का कार्य मुख्यतया केंद्रीय सांख्यकीय कार्यालय करता है। यह भारत के व्यवसाय एवं उद्योगों का सालाना सर्वे करता है और कई जगह से सूचनाओं एवं आंकड़ों का संकलन करता है। इसमें मुख्य रूप से हैं ग्राहक मूल्य सूचकांक एवं औद्योगिक मूल्य सूचकांक। केंद्रीय सांख्यकीय कार्यालय बहुत सी एजेंसियों एवं राज्य सरकारों के साथ भी मिलकर कार्य करते हैं, तब जाकर जीडीपी के आंकड़े जुटा पाते हैं।
अर्थव्यवस्था में जीडीपी की गणना की भी कई विधियां हैं, कई बार इन भिन्न-भिन्न विधियों से भी जीडीपी के आंकड़े भिन्न-भिन्न आ जाते हैं इसलिए जब भी दो कालावधि के जीडीपी की तुलना की जाए तो इस बात का जरूर ध्यान रखना चाहिए कि दोनों वर्ष की विधियां समान हो तथा जिन फॉर्मूलों को अपनाया गया हो, एक वर्ष में तो दूसरे तुलनात्मक वर्ष में भी वही फॉर्मूला अपनाया गया हो अन्यथा तुलना बेमानी हो जाएगी। ज्यादातर जीडीपी मापन के लिए उत्पादन दृष्टिकोण, व्यय दृष्टिकोण या आय दृष्टिकोण अपनाया जाता है।
हमें एक बात समझनी पड़ेगी कि प्रति व्यक्ति जीडीपी ही केवल अर्थव्यवस्था में वहां के नागरिकों के जीवन स्तर का मापन नहीं है, बल्कि जीवन स्तर मापन के अन्य पैमाने भी भी हैं। लेकिन हां ज्यादातर लोग इस आधार पर कि देश के नागरिक अपने देश के बढ़े हुए आर्थिक उत्पादन का लाभ प्राप्त करते होंगे। इसे जीवन स्तर के मापन के सूचकांक के रूप में प्रयोग करते हैं।
इसी प्रकार हमें समझना होगा कि जीडीपी प्रति व्यक्ति व्यक्तिगत आय का भी माप नहीं है। हो सकता है कि एक देश के अधिकांश नागरिकों की आय में कमी आए, लेकिन जीडीपी बढ़ रही हो। उदाहरण के लिए अमेरिका में १९९० से २००६ के बीच की अवधि में निजी उद्योगों और सेवाओ में व्यक्तिगत श्रमिकों की आय में ०.५ प्रतिशत प्रति वर्ष की वृद्धि हुई, जबकि इसी अवधि के दौरान जीडीपी में ३.६ प्रतिशत प्रति वर्ष की वृद्धि हुई। अत: यह राष्ट्र के जीवन स्तर या प्रति व्यक्ति आय मापने का कोई सूचकांक नहीं है या इसकी वृद्धि का मतलब यह नहीं कि राष्ट्र का जीवन स्तर या प्रति व्यक्ति आय बढ़ जाएगी।
जीवन स्तर के एक संकेतक के रूप में जीडीपी का इस्तेमाल करने का एक मुख्य नुकसान यह है कि यह शुद्धता के साथ जीवन स्तर का माप नहीं है। यह एक देश में आर्थिक गतिविधि के किसी विशिष्ट गतिविधि का एक विशिष्ट प्रकार से मापन करता है। जीडीपी की परिभाषा के अनुसार ऐसा जरूरी नहीं है कि यह जीवन स्तर का मापन ही करे। एक उदाहरण समझें, एक देश जिसने अपने शत-प्रतिशत उत्पादन का निर्यात किया और कुछ भी आयात नहीं किया तो भी उसका जीडीपी ज्यादा होगा, लेकिन जरूरी नहीं कि जीवन स्तर भी उच्च हो वह निम्न भी हो सकता है, क्योंकि दोनों के मापन कि विधियां और आधार अलग हैं।
बढ़ती हुई जीडीपी इस बात का जरूर संकेतक हो सकता है कि उस राष्ट्र के जीवन स्तर और प्रति व्यक्ति आय के बढ़ने की संभावनाएं अच्छी हैं। चूंकि इसे बार-बार लगातार और व्यापक रूप से मापा जाता है इसलिए जीवन स्तर के एक संकेतक के रूप में इसे लेने का एक प्रमुख फायदा यह होता है कि आंकड़े प्राप्त हो जाते हैं। यहां बार-बार का अर्थ है कि अधिकांश देश जीडीपी कि जानकारी त्रैमासिक आधार पर उपलब्ध कराते हैं, जिससे जो भी उपयोगकर्ता हो चाहे वो नीति नियंता, सरकारें, अर्थशास्त्री, निवेशक और बैंकर आसानी से ट्रेंड को समझ सकते हैं और अपना निर्णय ले सकते हैं। चूंकि इसके आकड़ें थोड़ा व्यापक होते हैं और लगभग हर देश के पास मौजूद रहते हैं इसलिए ये भिन्न देशों में जीवन स्तर की तुलना करने में भी मदद करते हैं। साथ ही साथ जीडीपी के लिए जो भी प्रयुक्त तकनीकी परिभाषाएं होती हैं या आधार होते हैं गणना के लिए, कमोबेश विभिन्न देशों के बीच तुलनात्मक रूप से स्थिर रहती हैं और इसलिए यह विश्वास बना रहता है कि प्रत्येक देश में समान मापन किया जा रहा है।
प्रति व्यक्ति जीडीपी को श्रम उत्पादकता के एक प्रतिनिधि के रूप में देखा जा सकता है। जितनी जीडीपी ज्यादा होगी उत्पादन और श्रम के कारकों में श्रम कि उतनी ही भागीदारी होगी। ज्यादा जीडीपी का मतलब इस जीडीपी के भागीदार श्रम की उत्पादकता अधिक है वेतन और आय के अन्य स्त्रोत बढ़ने के अच्छे आसार हैं और जीडीपी कम होने के मतलब वेतन और आय के अन्य स्त्रोत घटने की आशंका है।
भारत की जो रिपोर्टेड जीडीपी है और जो वास्तविक जीडीपी है, अभी भी व्यवहारिकता और सच्चाई के स्तर में बहुत फासले हैं। बहुत से वस्तुओं एवं सेवा का उत्पादन समानांतर अर्थव्यवस्था में होता है, जो कि जीडीपी की आधिकारिक गणना में आ ही नहीं पाता है। सरकार को उम्मीद है कि डिजिटल इकोनॉमी के कारण बहुत सारे अनरिपोर्टेड सौदे जो जीडीपी कि गणना के लिए संज्ञान में आते ही नहीं थे, अब आने लगेंगे इसलिए आने वाली तिमाहियों से जीडीपी के आंकड़े बढ़े हुए दिखाई देंगे।
(लेखक अर्थशास्त्र के वरिष्ठ लेखक एवं आर्थिक, सामाजिक तथा राजनैतिक विषयों के विश्लेषक हैं।)