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इतिहास का मतलब… बोगस डिग्री नहीं!

भारतीय जनता पार्टी की अक्ल का दिवाला निकल गया है या जिनकी अक्ल ने मिट्टी खा ली है, जिनकी अक्ल मिट्टी खा रही है, उन्हीं का भविष्य भाजपा में है। कंगना राणावत ने भाजपा में शामिल होकर हिमाचल प्रदेश से लोकसभा उम्मीदवारी हासिल कर ली है। कंगना ने अब सवाल पूछा कि सुभाष चंद्र बोस को प्रधानमंत्री क्यों नहीं बनाया गया? जिन्होंने देश की आजादी का एलान किया, उन्हें क्यों गायब किया गया? उन्हें भारत आने से किसने रोका? मूलत: कंगना का भारतीय इतिहास से कोई संबंध नहीं रहा है। कंगना के मुताबिक, देश आजाद हुआ मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद। यानी २०१४ में। इससे पहले यह देश गुलामी में था और उस लिहाज से कंगना जैसे लोग ही असली स्वतंत्रता सेनानी हैं। इसके लिए उनको ताम्रपत्र देकर बावनकुलों को उनका सम्मान करना चाहिए। कंगना ने नेताजी बोस के बारे में जो सवाल पूछा है, उसका जवाब एक स्कूली बच्चा भी देगा। १८ अगस्त १९४५ को बोस की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई। सितंबर १९४५ को उनकी अस्थियां जापान पहुंचीं। जब बोस की मृत्यु हुई तब गांधी-नेहरू, सरदार पटेल के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम अपने चरम पर था। लेकिन इसी दौरान नेताजी बोस की मृत्यु हो गई थी। इसलिए बोस कहां थे? यह प्रश्न निरर्थक है। अंग्रेजों को ‘भारत छोड़ो’, ‘चले जाओ’ की चेतावनी दी गई और उस लड़ाई में भाजपा के उस वक्त के माई-बाप कहीं नहीं थे। उल्टे, श्यामाप्रसाद मुखर्जी, जिन्हें भाजपा आज ‘बाप’ मानती है, वे प. बंगाल के मुस्लिम लीग के मंत्रिमंडल में शामिल हो गए थे और ‘चले जाओ’ आंदोलन की वजह से देश में कानून और व्यवस्था की चिंताओं के चलते अंग्रेजों से इस आंदोलन को कुचलने के लिए पुलिस बल का उपयोग करने के लिए पत्र-व्यवहार कर रहे थे। अब कंगना को सवाल पूछना चाहिए कि श्यामाप्रसाद बाबू को देश का प्रधानमंत्री क्यों नहीं बनाया गया? मुखर्जी भले ही भाजपा के ‘बाप’ हैं, लेकिन वह देश की आजादी की लड़ाई में नहीं थे और सुभाषचंद्र बोस के प्रति भाजपा को भले ही अचानक प्यार उमड़ पड़ा हो फिर भी कंगना को यह समझना चाहिए कि नेताजी संघ से जुड़े नहीं थे। ‘टाइम्स नाउ’ के साथ एक इंटरव्यू में कंगना ने एक और अक्ल भरी बात कही। सरदार पटेल केवल इसलिए प्रधानमंत्री पद पर नहीं बैठ सके क्योंकि उन्हें अंग्रेजी नहीं आती थी। सच तो यह है कि सरदार पटेल उच्च शिक्षित थे। वह अंग्रेजी में पारंगत थे। सरदार पटेल ने १९१३ में इंग्लैंड के इन्स ऑफ कोर्ट से कानून की डिग्री प्राप्त की। १९५० में सरदार पटेल की मृत्यु हो गई। भारत में पहला लोकसभा चुनाव १९५१-५२ में हुआ था। इसलिए भाजपाई कंगना अपना अपार ज्ञान लुटाकर इतिहास खत्म न करें। बेशक, मुंबई पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर है खुलेआम ऐसा कहने वाली कंगना से आप ज्ञान की क्या उम्मीद कर सकते हैं? विश्वगुरु की तरफ से उनके चेलों को इस तरह का अधूरा ज्ञान बांटा जा रहा है। महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक की मां गुजराती थी, ऐसा शोध प्रधानमंत्री मोदी ने किया। गटर में नली डालकर गैस पैदा की जा सकती है ऐसा भी उन्होंने कहा है। हाल ही में एक प्रचार सभा में हमारे ‘ग्यानी’ मोदी जी कहते हैं, ‘अभी-अभी मैं हेलिकॉप्टर से बाय रोड आया।’ क्या किसी ने मोदी के लिए हवा में सीमेंट की सड़क बनाई है? लेकिन कितनी भी जोरदार फेका-फेकी करने पर तालियां बजाने वाले और सिर हिलाने वाले अंधभक्त मिलते ही ‘थापा’ (हांकने) मारने का नशा बढ़ता ही जाता है। गुरु व चेले नशे में धुत हो जाते हैं। महामारी कोरोना भी ताली बजाकर व सड़कों पर थालियां बजाकर भाग जाएगी, ऐसी सलाह देने वाले प्रधानमंत्री के सानिध्य में कंगना जैसे लाखों ज्ञानी तैयार हो गए हैं। देश में ३३ करोड़ देवताओं का अस्तित्व २०१४ के बाद समाप्त हो गया और उनके भगतगण मानते हैं कि मोदी विष्णु के तेरहवें अवतार के रूप में पैदा हुए हैं ऐसा उनके भगतगणों को लगता है और इन्हीं भगतगणों ने २०१४ के बाद नए भारत का निर्माण किया। उस नए भारत का इतिहास तो नया है, लेकिन भूगोल वही है और उस भूगोल पर इस समय खून के छींटें बिखरे पड़े हैं। चीन ने लद्दाख के हिस्से पर कब्जा कर लिया है। मणिपुर में हिंसा थमी नहीं है। मोदी हर दिन झूठे वादों की धूल उड़ा रहे हैं और वह धूल, राष्ट्रीय सुगंध की बरसात है, ऐसा कंगना जैसे लोगों का मानना स्वाभाविक है। बेरोजगारों के पास नौकरी नहीं है, लेकिन केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह बेरोजगार युवाओं को पकौड़े तलने का अर्थशास्त्र बताते हैं। २०१४ के बाद स्वतंत्र हुए विकसित भारत की यह नीति है। मोदी ने उनके नए भारत की बुनियाद झूठ और बड़ी-बड़ी डींगों पर तैयार की है। उस नए भारत में कंगना जैसे बच्चे उछलते-कूदते हैं और आनंद लेते हैं। उनके निर्दोष व्यवहार और वाणी पर किसी को संदेह नहीं करना चाहिए। देश में इस समय झूठ का बोलबाला है। इसलिए, ‘असत्यमेव जयते’ ही मोदी के जीवन का सूत्र है और हालांकि वह चाहते हैं कि लोग उनके झूठ पर विश्वास करें, लेकिन देश के सभी लोग ‘कंगना’ बुद्धि के नहीं हैं और भाजपा यानी मोदी के झूठ के बाबत वह मोदी से सवाल पूछकर परेशान कर देते हैं। मोदी की शादीशुदा जिंदगी, मोदी की डिग्री, मोदी का चाय बेचना, मोदी का भीख मांगकर गुजारा करना, मोदी की भ्रष्टाचार विरोधी तथाकथित लड़ाई, ‘न खाऊंगा न खाने दूंगा’ जैसे नारे, पाक अधिकृत कश्मीर को फिर से जीतने के दावे, काले धन को खत्म करने के सपने सब पूरी तरह से झूठ हैं इसका खुलासा अब हो गया है। भारत में पिछले ७० साल में कुछ नहीं हुआ। जो कुछ हुआ वह २०१४ के बाद मोदी ने ही किया, इस तरह का पाठ भाजपा के नए व्हॉट्सऐप यूनिवर्सिटी में पढ़ाया जाता है। चूंकि कंगना जैसी विद्यार्थिनी उसी विश्वविद्यालय की स्वर्ण पदक विजेता हैं, इसलिए उनकी फेका-फेकी से देश की समझ और बुद्धि पर सवाल उठने का खतरा है। मूलत: नेता जी सुभाष चंद्र बोस, सरदार वल्लभभाई पटेल का भाजपा के विचारों से सूत मात्र का संबंध नहीं था। भारत के गौरवशाली इतिहास में संघ का कोई स्थान नहीं है। भाजपा का तब जन्म भी नहीं हुआ था। इसी हीन भावना से ग्रसित लोग आज सत्ता में हैं और इसी हीन भावना से गलत इतिहास के बनावटी सबूत गढ़ रहे हैं। भारत का इतिहास प्रधानमंत्री की बोगस डिग्री नहीं है और न ही जुमला है। फिलहाल इतना ही।

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