यादें

मुझे भी जला दो घर के साथ
बात खत्म हो जाएगी सबके साथ
रूठना क्या मनाना क्या
बीत गया वो जमाना क्या
वो हमारा मेले में मिलना
वो सन्देशा भेजना
वो तेरा वहां से आना
वो मेरा यहां से जाना
दो मस्त दिलों का था
वो दिन सुहाना
जो तूने की थी उस दिन बात मेरे साथ
उसे भूला न था मैं सारी रात
वो तेरी यादें हैं साथ
वो बरसातें हैं साथ
वो हमारा मिलना
वो चमन मे फूलों का खिलना
उन दिनों को याद करके
दर्द होता है सीने में
कोई मजा नहीं अब जीने में
सर्दी के मौसम मे जब बूंदा-बूंदी होती है
हम उन दिनों को याद करतें हैं
आंखों से आंसू बहते हैं
जिंदगी जीना अब आसान नहीं
देता तेरा कोई पैगाम नहीं
जख्म है इतना गहरा कि कोई उसे भरता नहीं
कहीं दूर तक तेरा चेहरा अब नजर आता नहीं
फूल भी बन गए हैं अब कागज के
जिनमें अब नहीं है खुशबू
हर चेहरे में दिखती है तेरी श्क्ल हूबहू
घेरे रहतें हैं मुझे सवालों के सवाल
तू क्यों नहीं देती कोई भी जवाब
शमा जलाए रखी है
तेरी आस बंधाए रखी है
आशा को निराशा मत कर देना
दिल में इक बात छुपाए रखी है
कहां हो कुछ भी पता ही नहीं
जिंदगी से भी कोई शिकवा गिला ही नहीं
जब तू तकदीर में थी ही नहीं
तुझ पर दिल आया क्यों
हमारा मजाक बनाया क्यों
पहले लोग कहते थे देवदास मुझे
अब कहते हैं बिंदास मुझे
पहले सब कहते थे घायल मुझे
अब कहते हैं शायर मुझे।
-अन्नपूर्णा कौल, नोएडा

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