डॉ. रमेश ठाकुर
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के अंतरिम बजट में आम लोगों को ज्यादा कुछ नहीं मिला। सरकार का अंतिम आम बजट पूर्णता लोकलुभावन और मतदाताओं को रिझाने वाला होता है, इस सच्चाई से तो सभी वाकिफ हैं। पर जो उम्मीदें आम बजट-२०२४ से देशवासियों ने लगाई थीं वो नहीं मिली, निराशा ही हाथ लगी। बजट को सरल तरीके से समझें तो गरीब, ग्रामीण और कामकारों के हित में ये बजट नहीं है। आखिरी बजट होने के चलते लोगों को कई बड़े ऐलान होने की आस थी। बजट में आमजनों की नहीं बल्कि पूंजीपतियों की खूब बल्ले-बल्ले हुई। २०२४-२५ का बजट चुनावी है और पिछले वर्ष के बजट-२०२३ से अगर तुलना करें तो एक तिहाई तस्वीरें वैसी ही दिखाई पड़ेंगी, जो साल भर पूर्व थीं। पिछले वर्ष के बजट का बहुत सारा हिस्सा खर्च ही नहीं हुआ। नमामि गंगे सफाई योजना का पैसा बिना खर्च किए लैप्स हुआ।
योजनाओं का ढोल पीटा गया
हालांकि, कुछ योजनाएं ऐसी हैं, जो वास्तव में काबिले तारीफ हैं। जैसे सरवाईकल वैंâसर आजतक बहुत तेजी से बढ़ा है, उसके रोकथाम के लिए टीके लगवाने का एलान हुआ है। लेकिन योजना का श्रीगणेश कब से होगा, ये नहीं बताया गया? दरअसल, ये ऐसी योजनाएं हैं जिनका सिर्फ ढोल पीटा जाता है। लेकिन धरातल पर नहीं उतारती। महिलाओं के हितों की जहां तक बात है तो मौजूदा बजट में आशा वर्कर और आंगनबाड़ी वर्करों को आयुष्मान भारत का फायदा देने की बात कही गई है। लेकिन ये महिला कर्मचारी न्यूनतम वेतन से भी कम में काम करती हैं। जबकि, सबसे पहले इनकी तनख्वाह बढ़ानी चाहिए थी और इन्हें भी राज्य कर्मचारी होने का दर्जा मिलता, जिसकी मांग लंबे समय से पूरे देश में उठ रही है, क्योंकि वित मंत्री महोदया खुद एक महिला हैं। वो महिलाओं की समस्याओं से वाकिफ हैं।
किसानों की अनदेखी
आशा वर्करों और आंगनबाड़ी वर्करों को उम्मीदें थीं कि उनकी सैलरी बढ़ेगी और सरकारी कर्मचारी का दर्जा देने की घोषणा होगी। पर जब बजट का पिटारा खुला तो इन लाखों-करोड़ों महिलाओं के अरमानों पर पानी फिर गया। पूंजीपतियों को फायदा वैâसे होगा? इस थ्योरी को समझने की जरूरत है। केंद्र सरकार हाईवे-सड़कों का निर्माण, बड़ी इमारतों को बनवाने जैसे कार्यों का टेंडर पूंजीपतियों को ही देगी इसलिए बजट का ज्यादातर पैसा विकास के नाम पर उन्हें ही लुटाया जाएगा। केंद्र सरकार को सबसे पहले कृषि के प्रति गंभीरता दिखानी चाहिए थी। क्योंकि खेती-किसानी लगातार घाटे में जा रही है, जिससे किसानों का खेती से मोहभंग होने लगा है। इस अति गंभीर मसले पर ध्यान नहीं दिया गया। खादों और बीजों के दाम आसमान छू रहे हैं। कृषि उपकरणों पर बैंक आसानी से लोन नहीं देती। ऐसी परेशानियों से निजात की ओर ध्यान देने की आवश्यकता थी।
पूंजीपतियों का रखा गया ध्यान
कुल मिलाकर मौजूदा बजट आम लोगों के लिए नहीं, बल्कि पूंजीपतियों को ज्यादा ध्यान में रखकर संसद में पेश किया गया। ऐसे जरूरी मसले जो सीधे आम लोगों से वास्ता रखते हैं। उन्हें नकारा गया। जैसे, बिजली-पानी, महंगाई, गैस-तेल, खेती-किसानी, खाद्यान व रोजमर्रा आदि की वस्तुओं पर छप्परफाड़ बढ़ी कीमतें जस के तस ही हैं। जबकि इंटरनेशनल मार्वेâट में इस वक्त कच्चे तेल की कीमतें बहुत निचले स्तर पर हैं, बावजूद इसके डीजल-पेट्रोल की कीमतें कम नहीं की गर्इं। बच्चों के पीने वाले दूध पर जीएसटी लगाकर महंगा किया जा चुका है। एनसीआरटी की पुस्तकें भी महंगी हैं, उन्हें भी कम नहीं किया गया। ऐसे कई मामले हैं जो केंद्रीय बजट से लोग उम्मीद लगाए बैठे थे। पर उनके हिस्से सिर्फ नाकामी ही हाथ लगी। टैक्सपेयर्स को भी कोई राहत नहीं दी गई। वो आगे भी टैक्स के बोझ से दबे रहेंगे।