राजन पारकर / नागपुर
महाराष्ट्र की उपराजधानी और संतरा नगरी नागपुर में पिछले सोमवार से महाराष्ट्र विधानमंडल का शीतकालीन सत्र शुरू हुआ। इस दौरान अधिवेशन में भाग लेने गए अधिकांश विधायकों ने नागपुर के विधायक निवास में ठहरने की बजाए लग्जरी होटलों में ठहरना पसंद किया है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक न केवल विधायक बल्कि उनके निजी सहायक, कर्मचारी और पार्टी कार्यकर्ता भी इन आलीशान होटलों में ठहरे हुए हैं।
विधायकों के रहने के लिए आधुनिक सुविधाओं से सुसज्ज `विधायक निवास’ बनाया गया है, ताकि वे अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों से मिल सकें, परंतु अब विधायकों के निवास में उनके रिश्तेदार या कार्यकर्ताओं ने कब्जा कर रखा है। इस स्थिति में आम नागरिक अपने निर्वाचन क्षेत्र के विधायक से वैâसे मिल पाएंगे। यह सवाल उठने लगा है। आम नागरिक अपनी समस्याओं को लेकर आलीशान होटल में वैâसे जाएं। बताया जाता है कि विधायकों और उनके कर्मचारियों को आलीशान होटल में ठहरने, भोजन आदि का खर्च सरकार के खजाने से वहन किया जाता है। विधायक निवास उपलब्ध होने के बावजूद भी विधायकों द्वारा आलीशान होटल में ठहरने पर होने वाले खर्च का बोझ करदाताओं पर पड़ने वाला है। इसको लेकर सरकार और विधायकों की जमकर आलोचना की जा रही है।
जीर्णोद्धार पर करोड़ों का खर्च हुआ बेकार
नागपुर में अधिवेशन से पहले विधायक निवास सहित अन्य सरकार द्वारा इमारतों पर करोड़ों रुपए खर्च करके जीर्णोद्धार किया जाता है। रंग-रोगन से लेकर सभी तरह की आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं कि विधायक को किसी भी प्रकार की असुविधा न हो। इसके बावजूद विधायकों द्वारा लग्जरी होटलों में ठहरने की प्राथमिकता दी जाती है, इससे तो यही लगता है कि विधायक निवास के जीर्णोंद्धार पर किए गए करोड़ों रुपए खर्च बेकार हो गए हैं। आलोचकों का तर्क है कि अगर विधायकों का विधायक निवास का उपयोग करने का कोई इरादा नहीं है, तो करदाताओं का पैसा अनावश्यक जीर्णोद्धार पर क्यों खर्च किया जाए? इस स्थिति ने वित्तीय जवाबदेही और सार्वजनिक धन के उचित उपयोग पर एक बड़ी बहस छेड़ दी है।