सामना संवाददाता / नई दिल्ली
मोदी सरकार देश की अर्थव्यवस्था के सुदृढ़ होने का दावा कर रहती है, मगर सच तो यह है कि उसकी आर्थिक नीतियां धराशायी हो चुकी हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि रुपया इस समय इतिहास के सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुका है। मोदी सरकार ने सत्ता संभालने के बाद से खूब जोर-शोर से इस बात का दावा किया था कि वह रुपया और डॉलर को बराबरी पर ले आएगी, पर उसकी यह बात सिर्फ जुमला ही साबित हुई है। यही वजह है कि हिंदुस्थानी रुपया कल मंगलवार को ८४.७४ के रिकॉर्ड स्तर पर नीचे चला गया।
धीमी आर्थिक वृद्धि की चिंता से लुढ़का रुपया!
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपए की हालत काफी खराब हो चुकी है। कल मंगलवार को ८४.७४ तक गिर गया है। यह रुपए की अब तक की सबसे बड़ी गिरावट है, जो सोमवार को ८४.७० के पुराने रिकॉर्ड को पार कर गया। रुपए की इस गिरावट के पीछे अमेरिकी डॉलर की मजबूती और हिंदुस्थान के धीमी आर्थिक वृद्धि की चिंता प्रमुख कारण मानी जा रही है। एक मुद्रा व्यापारी के मुताबिक, ‘रुपए की गिरावट ८४.५० से लेकर वर्तमान स्तर तक बिना किसी खास रजिस्टेंस के हुई है, जिससे यह संकेत मिलता है कि या तो भारतीय रिजर्व बैंक का हस्तक्षेप अपेक्षाकृत कमजोर रहा है या डॉलर की मांग बहुत अधिक है।’ सोमवार को देश के जीडीपी आंकड़ों के निराशाजनक परिणामों के बाद रुपये में ०.२५ फीसदी की गिरावट आई, जो पिछले छह महीनों में सबसे बड़ी गिरावट थी। बैंकर्स और कॉर्पोरेट्स के लिए यह गिरावट चौंकाने वाली थी क्योंकि पिछले कुछ महीनों में आरबीआई लगातार रुपए को मजबूत बनाए रखने के लिए हस्तक्षेप कर रहा था।