मुख्यपृष्ठसंपादकीयमोदी का साहित्य (सम्मेलन)

मोदी का साहित्य (सम्मेलन)

प्रधानमंत्री मोदी ने दिल्ली में अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन के उद्घाटन पर भाषण दिया। वह जोरदार था। साहित्य सम्मेलन का मुख्य समारोह तालकटोरा मैदान में आयोजित किया गया था, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने साहित्य सम्मेलन का उद्घाटन विज्ञान भवन के सभागार में किया। मोदी की सुरक्षा और अन्य कारणों से यह उद्घाटन अलग जगह से किया गया। क्या सचमुच इसकी जरूरत थी? प्रधानमंत्री तालकटोरा पर भारतीय जनता पार्टी के कई कार्यक्रमों में शामिल हो चुके हैं। कुछ दिन पहले, मोदी ने उसी तालकटोरा स्टेडियम में ‘परीक्षा पे चर्चा’ कार्यक्रम आयोजित किया था और इसमें अच्छी भीड़ जमा की गई थी। तो फिर प्रधानमंत्री को तालकटोरा के मराठी सरस्वती पुत्रों के मेले में जाना क्यों टालना चाहिए? उन्हें किसका डर था? क्या ऐसा समझा जाए कि दिल्ली के तख्त की बागडोर अपने हाथों में रखने वाले महाराष्ट्र से डर गए और इसी वजह से मोदी साहित्य सम्मेलन के मुख्य मंडप में नहीं गए? दूसरी बात यह भी है कि छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम पर यह मंडप तैयार किया गया और सजाया गया था। विज्ञान भवन में मोदी के भाषण नोट करने वाले पत्रकार, भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता, सांसद और अधिकारी ज्यादा थे। साहित्यकार, प्रकाशक और ईमानदार श्रोता तालकटोरा में ही ताकते रह गए। इसलिए ऐसा लगा कि मानो विज्ञान भवन में प्रधानमंत्री की मौजूदगी में एक समानांतर सम्मेलन आयोजित कर उद्घाटन किया गया। १९५४ में दिल्ली में साहित्य सम्मेलन हुआ और उसका उद्घाटन लेखक-साहित्यकार प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने किया था। नेहरू ने प्रत्यक्ष तौर पर सम्मेलन में भाग लिया और अपने भाषणों में राजनीतिक प्रचार नहीं किया। विज्ञान भवन में मोदी का भाषण एक अनमोल मोती है। मोदी के भाषण में निश्चित रूप से उनका मराठी प्रेम का प्रतिबिंब झलका, लेकिन क्या इन बिंब-प्रतिबिंब को सच माना जाना चाहिए? मोदी ने अपने भाषण में मराठी भाषा के वैभव और गौरव का गुणगान किया। महाराष्ट्र धर्म को बढ़ाने वाले संत रामदास के मंत्र का उच्चारण किया। छत्रपति शिवाजी महाराज से लेकर संत ज्ञानेश्वर, तुकोबा, नामदेव, संत तुकडोजी, गाडगेबाबा का जिक्र किया गया और इन सबके कारण मराठी भाषा वैâसे
संपन्न और अभिजात
बनी इसका उल्लेख किया, लेकिन मोदी की मराठी भाषा के प्रति रुचि विकसित होने की वजह उन्होंने विज्ञान भवन में सरस्वती पुत्रों का मार्गदर्शन करते हुए उजागर किया। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भारतीयों को देश के लिए जीने की प्रेरणा दी।’ मोदी ने आगे बहुत महत्वपूर्ण और दुर्लभ जानकारी दी, वह यह कि, ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना १०० साल पहले महाराष्ट्र की धरती पर हुई थी और इसे करने वाले मराठी थे। इसीलिए मेरा मराठी भाषा से लगाव है। वेदों से लेकर स्वामी विवेकानंद तक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पिछले १०० वर्षों से भारत की परंपराओं और संस्कृति को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का काम कर रहा है।’ यह बात प्रधानमंत्री मोदी ने सम्मेलन के मंच से कही। जब मोदी ये सब बोल रहे थे, उस समय प्रगतिशील सोच रखने वाले श्री शरद पवार स्वागताध्यक्ष के तौर पर मंच पर मौजूद थे। मोदी द्वारा संघ की तारीफ करने में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन इसके लिए साहित्य सम्मेलन के मंच का इस्तेमाल करना ठीक नहीं है। इससे आयोजकों के चेहरे उतरे नजर आए। मोदी किस मंच से क्या बोलेंगे या उनसे क्या करवा लिया जाएगा, कुछ कहा नहीं जा सकता। मराठी साहित्य सम्मेलन में प्रधानमंत्री का भाषण तैयार करने वालों के चरण स्पर्श किए जाने चाहिए। राजनीति और प्रचार के लिए उन्होंने मराठी साहित्य सम्मेलन को भी नहीं बख्शा। इसलिए प्रधानमंत्री के भाषण में कई साहित्यिक मुद्दे पीछे छूट गए। मोदी ने कहा, मराठी भाषा अमृत से भी मीठी है। तो फिर मोदी तालकटोरा में हुए उस अमृत भाषा समारोह में क्यों नहीं गए? प्रधानमंत्री मोदी ने विज्ञान भवन के मंच पर साहित्य के इतर और कृत्य भी किए। इसलिए चर्चा छिड़ गई। जब शरद पवार भाषण कर लौटे तो मोदी ने उठकर श्रीमान पवार को कुर्सी पर विराजमान होने में मदद की। दरअसल इसकी कोई जरूरत नहीं थी, लेकिन मोदी ध्यान आकर्षित करना चाहते थे। श्रीमान पवार कुर्सी पर बैठे तो मोदी ने उनके गिलास में पानी डाला, लेकिन पवार ने नहीं पीया। जिसके चलते चैनलों पर
मोदी-पवार रिश्तों पर ही
चर्चाएं शुरू हो गर्इं। साहित्य सम्मेलन एक तरफ रह गया। सवाल यह है कि अगर मोदी के मन में पवार के प्रति सम्मान होता तो प्रधानमंत्री मोदी सार्वजनिक सभाओं में शरद पवार को ‘भटकती आत्मा’ बताकर उनका अपमान करने का काम नहीं करते और परम आदरणीय पवार की पार्टी को तोड़कर अजीत पवार की झोली में नहीं डालते। अमित शाह ने उस भटकती आत्मा के लिए क्या-क्या शब्द इस्तेमाल किए? ‘पवार का कृषि-सहकारिता क्षेत्र में क्या योगदान है? पवार ने महाराष्ट्र को लूटा…’ जैसे सुवचनों की अमित शाह झड़ी लगाते हैं, ये किसी सम्मान का संकेत नहीं है। मोदी ने कहा कि चाचा-भतीजे ने महाराष्ट्र को लूटा, वह भतीजा आज मोदी की पार्टी में है और चाचा साहित्य सम्मेलन के मंच पर मोदी के साथ बैठे। चाचा के लिए खुद कुर्सी सरकाते मोदी की तस्वीर मजेदार है। इसलिए देखना चाहिए कि साहित्य सम्मेलन के मंच पर कितनी भटकी हुई आत्माएं भटक रही थीं। जब प्रधानमंत्री किसी साहित्यिक कार्यक्रम में शामिल होते हैं तो उन्हें व्यासपीठ और विषय की समझ बनाए रखनी चाहिए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सांस्कृतिक कार्यों की सराहना करने में कोई बुराई नहीं है। लेकिन उसके लिए साहित्य सम्मेलन के मंच का इस्तेमाल करना उचित नहीं है। उन्हें देशभक्ति की प्रेरणा और मराठी प्रेम संघ के कारण मिली, यह मोदी की सोच है, लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना से कई शताब्दियों पहले ही भारतवर्ष में देशभक्ति और संघर्ष की प्रेरणा थी। ईश्वर, देश और धर्म के लिए लड़ने वाले महान लोग कई सदियों पहले इसी मिट्टी में पैदा हुए थे। शिवराय की भाषा मराठी ही थी। आजादी की किसी भी लड़ाई में ‘भाजपा’ या ‘संघ’ नहीं था। वे तो बस मुफ्त में आजादी का लुत्फ उठा रहे हैं। इसलिए देशभक्ति की ये उधार प्रेरणा उन्हें कहां से मिलती है? इसका कभी खुलासा नहीं हुआ। प्रधानमंत्री मोदी को भाषण लिखकर देने वालों ने अगर इसका ध्यान रखा होता तो बेहतर होता। मोदी जी तालकटोरा नहीं आए। क्यों उन्हें किसका डर था? महाराष्ट्र के शौर्य की, स्वाभिमानी आन की या बढ़ती गोडसे प्रवृत्ति की?

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