पैसे का खेल

पैसे से खेलती है दुनिया
पैसे से चलती है दुनिया
पैसे से बोलती है दुनिया
पैसा खरीद लुटाता है पैसा
पैसा बेच बढ़ाता है पैसा
कोई पैसा गिराता है तो
कोई गिरा हुआ पैसा उठाता है
पैसा होता है किस्मत की लकीरों में
कहां होता है ऐसा फकीरों में
अमीर पैसे पर सोता है
गरीब पैसे को रोता है
पैसा नहीं होता है सबके नसीब में
यह तो लिखा होता है तकदीर में
कोई दिन-रात मेहनत करके कमाता है
कोई बैठे-बिठाए छप्पर-फाड़ के पाता है
कोई चोरी-चकारी के पैसे पर नजर रखता है
कोई ईमानदारी का पैसा ढूंढ़ता है
कोई ऐश-ओ-आराम में पैसा उड़ाए
कोई पाई-पाई जमा कर कर्ज चुकाए
यहां पैसे का ही मोल है
पैसे से ही तोल है
बिना पैसे के सब डामाडोल है।
-अन्नपूर्णा कौल, नोएडा

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