मुख्यपृष्ठस्तंभकिस्सों का सबक : वास्तविक सेवा

किस्सों का सबक : वास्तविक सेवा

डॉ. दीनदयाल मुरारका

अ ब्दुल्ला बिन मुबारक इराक के बहुत प्रसिद्ध व्यापारी थे। दीन दुनिया के प्रति उनके दिल में बहुत दया थी। एक बार वो हज करने जा रहे थे। अभी उन्होंने शहर की सीमा पार भी नहीं की थी कि उनका ध्यान सड़क किनारे बेसुध पड़ी एक स्त्री की ओर चला गया। उन्होंने नजदीक पहुंचकर उस स्त्री की नब्ज टटोली तो पाया कि जान अभी बाकी है। पास स्थित बावड़ी से पानी लाकर उन्होंने स्त्री के चेहरे पर पानी के कुछ छींटे डाले। कुछ क्षणों में उसने आंखें खोल दीं।
मंद स्वर में उस स्त्री ने राहगीर को दुआ देते हुए कहा कि मैं एक विधवा हूं और चार दिनों से भूखी हूं। घर पर तीन बच्चे भी भूखे हैं। काम की तलाश में जा रही थी कि अचानक चक्कर आ गया। उस स्त्री की बातों से अब्दुल्ला का दिल पसीज गया।
उन्होंने दिनार की थैली थमाते हुए जो कुछ भी उनके पास खाने-पीने का सामान था, उसे दे दिया। उन्होंने इस धन से उस स्त्री को कोई काम कर लेने को कहा और आगे बढ़ गए। हज यात्रियों का काफिला काफी आगे निकल चुका था। अब्दुल्ला उल्टे पांव अपने घर वापस लौट आए। उन्होंने मन ही मन सोचा कि भला ऐसे हज से क्या लाभ, जिसमें मात्र नाम और यश की कामना हो। उन्होंने अपने जीवन में मानव सेवा को ही हमेशा महत्व दिया था। लगभग एक माह बाद हाजियों का दल वापस लौटा तो सबसे पहले वे अब्दुल्ला बिन मुबारक के पास पहुंचे और कहने लगे, ‘कमाल है, जाते वक्त आप तो पीछे रह गए थे। लेकिन मक्का में हमने हर समय आपको हमारी लाइन में आगे देखा। यह सब वैâसे संभव हुआ?’
अब्दुल्ला के पास इस आश्चर्य का कोई जवाब नहीं था। उन्हें यकीन हो गया कि सच्ची हज यात्रा तो उन्होंने उस स्त्री की सेवा करके की है। जीवन में दूसरों का भला करने पर ईश्वर हमेशा हमारी प्रार्थनाएं कबूल करता है।

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