मुख्यपृष्ठस्तंभमुंबई सपनों का शहर या अव्यवस्थाओं का जाल?-भरतकुमार सोलंकी

मुंबई सपनों का शहर या अव्यवस्थाओं का जाल?-भरतकुमार सोलंकी

मुंबई को लंदन और सिंगापुर जैसे वैश्विक शहरों से तुलना कर, मास्को और न्यूयॉर्क जैसा बनाने का सपना देखा जाता हैं। ऊंची-ऊंची अट्टालिकाएं, चमचमाती मेट्रो और अंतरराष्ट्रीय स्तर के शॉपिंग मॉल इस सपने की झलकियां जरूर देती हैं। लेकिन हकीकत में यह शहर जमीनी स्तर पर कितनी अव्यवस्थाओं से जूझ रहा हैं, यह जानना भी जरूरी है।
कालबादेवी के फुटपाथ बस स्टैंड पर झुग्गी बस्ती का कब्जा हो या रेलवे पटरियों के किनारे पसरी गंदगी, ये दृश्य मुंबई के नीति-निर्माताओं की योजनाओं पर बड़ा प्रश्नचिह्न खड़ा करते हैं। समुद्र किनारे से दिखने वाली गगनचुंबी इमारतें जरूर न्यूयॉर्क की याद दिलाती हैं, लेकिन अंदरूनी हिस्सों में बसी झुग्गी-झोपड़ियां और झरझराती पुरानी इमारतें किसी पुरानी तंगहाली की तस्वीर पेश करती हैं।
बिल्डर और डेवलपर जब ऊंची कीमतों पर इन गगनचुंबी इमारतों में घर बेचते हैं, तो वह विदेशी शहरों से तुलना करने से नहीं चूकते। लेकिन उन इमारतों से बाहर कदम रखते ही धूल और प्रदूषण से भरी सड़कें एक कड़वी हकीकत का अहसास कराती हैं। एयर कंडीशन कार में बैठकर भी आपको अपनी नाक बंद करनी पड़ती हैं। क्या यही हैं मुंबई के विकास का सपना?
शहर की गलियों में पसरी गंदगी, कूड़ा-करकट और अव्यवस्थित ट्रैफिक व्यवस्था से रोज़ जूझती जनता शायद ही कभी इन ऊंची इमारतों की चकाचौंध को महसूस कर पाती हैं। समुद्र किनारे चमचमाती मरीन ड्राइव के पीछे झुग्गियों में बसी अंधेरी गलियां, कूड़े के ढेर और बजबजाती नालियां मुंबई का असली चेहरा उजागर करती हैं।
शहर के नीति-निर्माता क्या इस हकीकत से अनजान हैं या इसे नजरअंदाज कर विकास का सपना देख रहे हैं? क्या मुंबई वाकई एक अंतरराष्ट्रीय शहर बनने की राह पर हैं या यह सपनों का शहर सिर्फ तस्वीरों में ही सीमित हैं? यह एक ऐसा प्रश्न हैं, जिसका उत्तर हर मुंबईकर को सोचने पर मजबूर करता हैं।

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