विवेक अग्रवाल
हिंदुस्थान की आर्थिक राजधानी, सपनों की नगरी और ग्लैमर की दुनिया यानी मुंबई। इन सबके इतर मुंबई का एक स्याह रूप और भी है, अपराध जगत का। इस जरायम दुनिया की दिलचस्प और रोंगटे खड़े कर देनेवाली जानकारियों को अपने अंदाज में पेश किया है जानेमाने क्राइम रिपोर्टर विवेक अग्रवाल ने। पढ़िए, मुंबई अंडरवर्ल्ड के किस्से हर रोज।
अबूझ भूमिगत संसार में कुछ ऐसे रहस्य हैं, जिनसे कभी परदा नहीं उठ पाता…
कुछ ऐसा ही डी-कंपनी के सेनापति रहे एजाज मोहम्मद शरीफ उर्फ एजाज पठान के दुबई से अचानक भारत प्रत्यर्पण का मामला भी है…
…एजाज के भारत लौटने को लेकर सही और सच्ची बात कभी सामने नहीं आ सकी। इस सिलसिले में दो बातें हैं…
पहली ये कि गिरोह छोड़ने की सजा के तौर पर एजाज को दाऊद ने दिल्ली के हाथों सौंपने के लिए दुबई सरकार को मजबूर किया…
दूसरी तरफ ये भी सुना कि एजाज को भारत लाने की योजना ‘दुश्मन का दुश्मन, अपना दोस्त’ की तर्ज पर भारतीय खुफिया रॉ, आईबी और विरोधी सरगना छोटा राजन का खेल था…
अगस्त १९९५ में डी-कंपनी के सुपारी हत्यारे और सिपहसालार सुनील सावंत उर्फ सावत्या की दुबई में राजन के इशारे पर पांडु भाइयों द्वारा दिनदहाड़े हत्या के बाद गिरोह की कमान एजाज के हाथ में आई। गिरोह में बिखराव रोकने तथा नए सदस्यों की भर्ती में एजाज लगा था। ८ अक्टूबर १९९७ को कराची के घर में एजाज पर दूसरा हमला हुआ। उसमें शकील का हाथ पता चला। दाऊद से शिकायत करने पर भी कोई ध्यान नहीं दिया। इस पर एजाज रिश्तेदारों के पास पेशावर चला गया। वहां कुछ समय बिताने के बाद वह १९९९ में दुबई आया और सोना-चांदी-नशा तस्करी में लग गया।
उसे शकील से १९९५ और १९९६ के दोनों हमलों का बदला लेना था, जिसमें वह असफल रहा। यही बात दाऊद को पता चल चुकी थी। वह एजाज से नाराज था, लेकिन दुबई में उस पर हाथ नहीं डालना चाहता था। उसे पता था कि दुबई में खून-खराबा करेगा तो यह सुरक्षित स्वर्ग चंद मिनटों में नरक बन जाएगा। इससे एजाज की जान बची रही। सन् २००३ के प्रारंभ में दुबई के इंडिया क्लब में शरद की हत्या हुई। अगले पांच दिनों में दुबई पुलिस ने गिरोहों के ३०० से अधिक सदस्य हिरासत में लेकर दुबई सीआईडी मुख्यालय में जमा किए। अधिकांश धीरे-धीरे रिहा हो गए, लेकिन २६ कब्जे में रहे। इनमें एजाज भी था। एजाज की पत्नी, बेटे और बेटी को भी तीन दिनों तक हिरासत का स्वाद चखना पड़ा। १० दिनों की लंबी ऊहापोह के बाद अचानक दुबई सरकार ने एजाज और इकबाल कासकर को भारत भेजने का निर्णय लिया, जिससे काफी लोग चौंके। इकबाल के अलावा दाऊद के भाईयों और सिपहसालारों के पास पाक के पासपोर्ट थे, उन्हें पाकिस्तान जाने की छूट मिली। इकबाल मिर्ची लंदन पासपोर्टधारी था, उसे वहीं लौटा दिया।
रहस्य यह है कि एजाज का पाक पासपोर्ट होने पर भी उसे वहीं क्यों नहीं जाने दिया? कहते हैं कि दुबई सीआईडी द्वारा एजाज की रिहाई के अगले ही दिन फिर गिरफ्तारी दाऊद का कारनामा था। उसे सहन न हुआ कि उसके तीन भाई सलाखों के पीछे एड़ियां रगड़ रहे हैं और एक दुश्मन जेल से बाहर जा निकला। दाऊद चाहता था कि दुबई सरकार दुनिया को दिखाए कि डी-कंपनी के पूर्व सेनापति को भारत प्रत्यर्पित करके बड़ा काम कर रही है जबकि हुआ उलटा। एक खुफिया अधिकारी कहते हैं, ‘दाऊद ने इस तरह एक पत्थर से दो चिड़िया मारनी चाहीं। वह दुबई के लिए भी भला बन गया। उसने भारतीय पुलिस को सौंपकर दुश्मन के लिए मुसीबतें खड़ी कीं। एजाज की मुंबई में किसी जेल या अदालत के रास्ते में हत्या करवाना उसके लिए आसान था। यही एकमात्र कारण है कि एजाज को दाऊद ने दुबई से भारत पहुंचायरख् लेकिन उसमें हमारा ही फायदा हुआ।’ माफिया सूत्रों से संकेत मिले कि एजाज का भारत आना खुफिया एजेंसियों की योजना थी। एजाज के खिलाफ संगीन मामला न होने पर उसे जल्द जमानत मिलने, फिर ‘उसे रिहाई व सुरक्षा का आश्वासन भी था।
सौदा तय हुआ कि एजाज डी-कंपनी की जानकारियां देगा, जिसमें पूरे विश्व में पैâला डी नेटवर्क, नए-पुराने लोगों के नाम-पते, पासपोर्टों की जानकारियां, कामकाज और संपर्कों की सूचना होगी। बदले में एजाज को जेल व अदालत में सुरक्षा मिलेगी। एजाज को भारत लाने के लिए राजन के संपर्कों वाले खुफिया अधिकारियों ने काम किया। राजन तो दाऊद के खिलाफ छाया युद्ध लड़ रहा था। उसने एजाज को तैयार करवाने के लिए जैसा खेल रचा, उसके झांसे में एजाज भारत चला आया। एजाज ने जो बयान मुंबई पुलिस को दिया, उसमें अधिकृत रूप से ऐसा कुछ दर्ज नहीं है, जो डी-कंपनी के खिलाफ जाए। दूसरी तरफ एजाज ने सीबीआई, आईबी और रॉ अधिकारियों को अनधिकृत रूप से बहुतेरी जानकारियां दीं। इससे मुंबई समेत पूरे देश में दाऊद, आईएसआई और इस्लामी आतंकियों का जाल काटना संभव हुआ। आईएसआई द्वारा भारत में आतंकी धन, हथियारों,एजेंटोेंं, अड्डों, योजनाओं जैसी महीन जानकारियां मिलीं। खुफिया अधिकारियों ने इनका बारीकी से विश्लेषण कर ‘तेजी से काम करने लायक’ बनाया। तत्कालीन मुंबई पुलिस आयुक्त रणजीत सिंह शर्मा ने कहा, ‘एजाज की गिरफ्तारी जीत का मौका तो है, लेकिन जीत नहीं।’
बस, यही एक कूटनीतिक बयान देकर वे खामोश हो गए। कुछ समय तक भारतीय जेलों में तकलीफ के साथ वक्त बिताने के बाद एक दिन अचानक बीमारी से एजाज की रहस्यमयी मौत हो गई। और ये हालात देखकर डी-कंपनी के उस गुर्गे ने शान दिखाते हुए कहा:
– बड़े भाई से लफड़ा बोले तो कबर का एडवांस बुकिंग करवाने का।
(लेखक ३ दशकों से अधिक अपराध, रक्षा, कानून व खोजी पत्रकारिता में हैं, और अभी फिल्म्स, टीवी शो, डॉक्यूमेंट्री और वेब सीरीज के लिए रचनात्मक लेखन कर रहे हैं। इन्हें महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी के जैनेंद्र कुमार पुरस्कार’ से भी नवाजा गया है।)