मुख्यपृष्ठस्तंभमुंबई मिस्ट्री : गौरवगाथा बेलासिस रोड की

मुंबई मिस्ट्री : गौरवगाथा बेलासिस रोड की

विमल मिश्र मुंबई

मुंबई सेंट्रल स्टेशन के पास १३१ वर्ष पुराना बेलासिस पुल और साथ ही बेलासिस रोड पुनर्निर्माण के लिए इन दिनों चर्चा में है। यह कोई साधारण पुल या सड़क नहीं, इनके निर्माण से जुड़ी है एक गौरवगाथा।

ताड़देव को नागपाड़ा से जोड़ने वाला १८९३ में निर्मित ३८० मीटर लंबा मुंबई सेंट्रल का बेलासिस पुल जल्द ही इतिहास के पन्नों में समा जाएगा। इसे २४ जून से वाहनों के लिए १८ महीने तक बंद कर दिया गया है। छह लेन वाला केबल स्टे ब्रिज इसकी जगह लेने वाला है। पुल के रेलवे वाले हिस्से और मुंबई महानगरपालिका के अंतर्गत आने वाली संपर्क सड़क का पुनर्निर्माण किया जाएगा। पश्चिम रेल ने पुल को ध्वस्त करने और उसने पुनर्निर्माण के लिए २४ करोड़ रुपए का कांट्रेक्ट दिया है।
भायखला एक कालखंड में शहर के सबसे प्रतिष्ठित पतों का ठिकाना रहा है, तो इसकी वजह है १७८४ में हार्नबी वेलार्ड और १७९३ में कॉजवे (बेलासिस रोड) का निर्माण, जिसके जरिए मुंबई के तत्कालीन गवर्नर हॉर्नबी ने मझगांव को सीधे मलबार हिल से जोड़ दिया था। इस संपर्क ने इस इलाके के नसीब के दरवाजे खोल दिए, वरना मझगांव के बाहरी छोर की यह दलदली जगह समुद्र में ज्वार आते ही डूब जाया करती थी। १९वीं सदी के पूर्वार्ध में रिक्लेमेशन के जरिए निर्माण कार्यों के लिए जमीन उपलब्ध हुई तो बेलासिस रोड पर सबसे पहले प्रकट होने वाली जगहों में थे पहले रेस कोर्स और १८०० में टर्फ क्लब। १९वीं सदी की शुरुआत में फोर्ट जैसे मुंबई के पुराने इलाकों में जैसे-जैसे भीड़ बढ़ने लगी समृद्ध अंग्रेज और पारसी व्यापारी अपना आशियाना समेटकर मझगांव और भायखला शिफ्ट होने लगे, क्योंकि कामकाज के लिहाज से ये सुविधा की जगहें थीं।
सड़क बनी रोजगार देने के लिए
ताड़देव रोड के बिल्कुल पास, मुंबई सेंट्रल स्टेशन के बाहर से गुजरने वाले बेलासिस रोड ने अपना नाम मेजर जनरल बेलासिस से पाया है, जो १८वीं सदी के आखिर में मुंबई में फौजों के अधीक्षक और उसके तोपखाने के प्रमुख हुआ करते थे। इनसे जुड़ी हुई है मुंबईवासियों की उदारता की एक गौरवगाथा। समूचा गुजरात प्रांत उन दिनों भीषण अकाल से गुजर रहा था। वहां से – खासकर सूरत शहर और ग्रामीण अंचलों की एक बड़ी आबादी भीषण अकाल से डरकर मुंबई भाग आई थी। इतनी बड़ी आबादी के भरण- पोषण की समस्या जब सामने आई तो जनरल बेलासिस को इसका समाधान इसी सड़क के निर्माण के रूप में सूझा। उन्होंने नागरिकों से इस कार्य के लिए मुक्त हस्त से चंदा देने की अपील की। सड़क का निर्माण १७९३ में पूरा हुआ। इस तरह रोजगार देकर लोगों के जीवन निर्वाह के लिए किसी योजना का निर्माण देशभर में अपनी तरह का पहला प्रयास था। मुंबई सेंट्रल स्टेशन और बेलासिस रोड के रास्ते में एक कोने पर संगमरमर का एक पत्थर आज भी इस घटना की याद दिला रहा है। जनरल बेलासिस के अवशेष सेंट थॉमस वैâथेड्रल में आज भी सुरक्षित रखे हैं।
जनरल बेलासिस ने सड़क के निर्माण में उसकी गुणवत्ता का पूरा ध्यान रखा। बीबीसीआई (पश्चिम) रेलवे ने १८९३ में इस पर एक पुल का निर्माण कराया और बेलासिस पुल का नाम दिया। बेलासिस पुल के उत्तर की तरफ स्थित मुंबई सेंट्रल का चतुष्कोणी भवन रेल वास्तुकला का अप्रतिम उदाहरण है। यह स्टेशन जिस जगह है, उस जगह बेलासिस रोड (नया नाम जहांगीर बोमनी मार्ग) पर १८६४ में एक अस्थायी स्टेशन हुआ करता था।
१०० वर्ष का नियत जीवनकाल बीतने के बावजूद भी बेलासिस पुल इसके वर्षों बाद बने पुलों से भी ज्यादा मजबूत माना जाता है। लैमिंगटन रोड और नागपाड़ा को जोड़ने वाली बेलासिस रोड को कुछ वर्ष पहले २० करोड़ रुपए के खर्च से ‘मॉडल रोड’ के रूप में विकसित किया गया है। यह सड़क अब मुंबई की खूबसूरत सड़कों में अपनी गणना कराती है।

(लेखक ‘नवभारत टाइम्स’ के पूर्व नगर संपादक, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं।)

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