विमल मिश्र मुंबई
जोसेफ बैप्टिस्टा के प्रशंसकों का मानना है कि ‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है’ का नारा लोकमान्य बालगंगाधर तिलक का दिया हुआ है। ईस्ट इंडियन समुदाय के जोसेफ या काका बैप्टिस्टा लोकमान्य तिलक के अनुयायी थे।
‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है?’ आम विश्वास है कि यह नारा लोकमान्य बालगंगाधर तिलक का दिया हुआ है, पर जोसेफ बैप्टिस्टा के प्रशंसकों का मानना है कि यह उद्घोष जोसेफ बैप्टिस्टा की देन है और तिलक महाराज ने तो उसे लोकप्रिय बनाकर लोगों की जुबान पर चढ़ाने का काम किया। मझगांव में ईस्ट इंडियन समुदाय के गांव म्हातारपाखडी में पैदा जोसेफ या काका बैप्टिस्टा लोकमान्य तिलक के अनुयायी थे। १९१६ में एनी बेसेंट के ‘होम रूल आंदोलन’ के पुरोधाओं में से एक थे। १९२५-२६ में वे मुंबई के महापौर भी रहे। १९३० में देहांत के बाद जोसेफ बैप्टिस्टा शिवडी के एक कब्रिस्तान में अंतिम नींद सोए हैं। मझगांव में मलबार हिल के बाहर ४४, ००० वर्ग फुट में पैâला एक विशाल बाग, जिसे मुंबई का दूसरा हैंगिंग गार्डन माना जाता है और मनोरी का ईस्ट इंडियन म्यूजियम-उनके नाम पर है। उत्तन में भी, जहां उनका पैत्रिक गांव है, उनकी एक प्रतिमा है।
स्वामी रामानंद तीर्थ
संन्यास ग्रहण करने से पहले स्वामी रामानंद तीर्थ का वास्तविक नाम वेंकटेश भगवानराव खेडगीकर था। वे हैदराबाद राज्य कांग्रेस के प्रमुख नेता थे। हैदराबाद के अंतिम निजाम के खिलाफ मुक्ति संग्राम उन्हीं के नेतृत्व में लड़ा गया। नांदेड़ विश्वविद्यालय का नामकरण उन्हीं के नाम पर हुआ है।
बापू साहब रामचंद्र खैरे
चर्मकार समाज के प्रतिष्ठित नेता, विधायक, नगरसेवक और शिक्षाविद, जिन्होंने अंग्रेजों की जेल में कई महीने काटे।
नरेंद्र पंड्या
‘और हमने प्रिंसिपल सील को गांधी टोपी पहना दी’, १९४२ का यही वक्त था। रोज कोई न कोई धमाल हुआ ही करता था। समाजसेवी और शिक्षाविद नरेंद्र पंड्या उन दिनों बॉम्बे स्टूडेंट्स यूनियन के सचिव हुआ करते थे। पुलिस आई और पंड्या को एलफिंस्टन कॉलेज से ही उठा ले गई। अगले नौ महीने उन्होंने जेल में ही बिताए।
भानुशंकर याग्निक
भानुशंकर याग्निक को नौ अगस्त, १९४२ के दिन पुलिस घर से घसीट ले गई थी। यरवदा जेल में उन्हें पांच साल बंद रखा गया। महाराष्ट्र में मंत्री और कांग्रेस संगठन में शीर्ष नेता रहे।
डॉ. शांति पटेल
डॉ. शांति पटेल विख्यात ट्रेड यूनियन नेता थे, जो संसद सदस्य और मुंबई के महापौर भी रहे।
वसंत हेलेकर
‘पुथरन ने बम फेंका और क्षणभर के भीतर वहां छह गोरे सैनिकों की लाशें लोट रही थीं’, हुतात्मा चौक की उस घटना को याद करते हुए वसंत हेलेकर की आंखों के सामने १९४२ का ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन चलचित्र सा फिर गया। वे इस योजना के साक्षी ही नहीं, उसके हिस्सेदार भी थे और उसे अमली जामा पहनाने वाली मंडली के सदस्य भी। बम बनाने के आरोप में वे पकड़े गए, पर बम को कॉलबेल सिद्ध कर ‘निर्दोष’ करार दिए गए। पर, सजा तो उन्हें फिर भी मिली-तीन साल नजरबंदी की।
के. एल. बरमेडा
वयोवृद्ध गांधीवादी और स्वतंत्रता सेनानी के. एल. बरमेडा मुश्किल से १५ वर्ष के रहे होंगे, जब गोरे शासन द्वारा राष्ट्रीय ध्वज फहराने की अनुमति न दिए जाने पर उन्होंने स्कूल छोड़ दिया था।
आनंदीलाल पोद्दार
मुंबई में मेट्रो सिनेमा के पास और दो अन्य जगह आनंदीलाल पोद्दार मार्ग है। ये सड़कें हैं राजस्थान के नवलगढ़ से ताल्लुक रखने वाले विख्यात उद्योगपति, स्वतंत्रता सेनानी और महात्मा गांधी के सहयोगी आनंदीलाल पोद्दार के नाम पर। पोद्दार जी ने १९२१ में आनंदीलाल पोद्दार एजुकेशन सोसायटी (आनंदीलाल पोद्दार एजुकेशन ट्रस्ट) बनाया था, जिसके पहले चेयरमैन ट्रस्टी बने थे स्वयं महात्मा गांधी। इस ट्रस्ट का नाम शहर के कई बड़ी शैक्षिक संस्थाओं और अस्पतालों से जुड़ा हुआ है। १९७४ में उनके शताब्दी वर्ष पर स्वयं भारत के राष्ट्रपति उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने मुंबई पधारे थे।
एस. ए. बरेलवी
सैयद अब्दुल्ला बरेलवी स्वतंत्रता पूर्व काल के देशभक्त पत्रकार थे, जिन्होंने अंग्रेजी दैनिक ‘दि बॉम्बे क्रॉनिकल’ के माध्यम से ब्रिटिश शासन से लोहा लिया। ब्रिटिश शासन के अन्यायपूर्ण कार्यों की खुलकर खिलाफत करने के लिए उन्हें दो बार जेल भी जाना पड़ा। देश के विभाजन का लगातार विरोध करने के लिए वे मोहम्मद अली जिन्ना का भी कोपभाजन बने। मुंबई की पारसी बाजार स्ट्रीट आज उनके ही नाम से ‘सैयद अब्दुल्ला बरेलवी मार्ग’ के नाम से जानी जाती है।
(जारी)
(लेखक ‘नवभारत टाइम्स’ के पूर्व नगर संपादक, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं।)