विमल मिश्र मुंबई
मुंबई ने स्वतंत्रता आंदोलन को दो ‘दत्ता’ दिए। दत्ता गांधी और दत्ताजी तम्हाणे। गोवा मुक्ति आंदोलन व संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन से लेकर नर्मदा बचाओ आंदोलन, शिक्षा प्रसार और ग्रामीण पुननिर्माण में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
दत्ता गांधी
मई, १९२२ में तटीय कोकण के पोलादपुर में एक गुजराती परिवार में जन्में दत्ता गांधी को देशभक्ति और मानवीय संस्कार माता-पिता से मिले। स्वतंत्रता आंदोलन में उनके भाई शंकरभाई छह वर्ष के लिए जेल गए थे। ११ वर्ष के थे, जब पोलादपुर में सरदार वल्लभभाई पटेल ने ‘वंदे मातरम’ सुन उनके सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया था कि तुम भी अपने भाई की तरह सत्याग्रही बनो। पुणे के औंध में कांग्रेस के एक सम्मेलन में महात्मा गांधी से उनका पहली बार सामना हुआ था और उनकी यह सलाह वे जिंदगी भर निभाते रहे कि ‘गांव में जाओ और किसानों की समस्या समझ कर हल करो।’ पढ़ाई छोड़कर उन्होंने ‘भारत छोड़ो’ में भाग लिया और गोरे सिपाहियों को छकाते हुए कचहरी पर झंडा फहराया। पुलिस के गोलीचालन में उनके साथ कमलकर दांडे सहित कई लोग शहीद हो गए। १८ महीने की सजा पाकर दत्ता गांधी विलासपुर जेल गए। समाजवादी नेता अच्युत पटवर्धन ने उन्हें समाजवादी पार्टी की युवा इकाई राष्ट्र सेवा दल की जिम्मेदारी सौंपी। संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन व नर्मदा बचाओ आंदोलन और शिक्षा, ग्रामीण पुननिर्माण, हिंदी शिक्षण जैसे अभियानों में वे आज भी सक्रिय हैं। देश जब अपनी स्वतंत्रता का अमृत वर्ष मना रहा था, उन्होंने अपनी जन्म शताब्दी मनाई।
दत्ताजी तम्हाणे
पहले अंग्रेजों की, फिर पुर्तगालियों की और बाद में अपनों की (इमरजेंसी के दौरान) जेल में उन्होंने जिंदगी के सात साल गुजारे। आंदोलन किए। लाठियां खार्इं। नेहरू, गांधीजी से मिलने, ‘साइमन, वापस जाओ’ की तख्ती वंâधों पर ताने जोर-जोर से नारे लगाने, वडाला के नमक के खेतों में बापू के साथ नमक बनाने को दौरान लाठी खाकर गिरने, ‘भारत छोड़ो’ और गोवा मुुक्ति आंदोलन और संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन में हवालात की रोटियां खाने जैसी यादें दत्ताजी तम्हाणे की स्मृतियों के फलक पर आखिरी तक जिंदा थीं। साइमन कमीशन के विरोध, नमक सत्याग्रह, ‘भारत छोड़ो’ और इसके पहले व बाद भी दत्ताजी तम्हाणे कितनी बार जेलों में आए-गए इसका हिसाब उनके पास नहीं था। मधु नाशिकर, चंदू भारडकर, दौड दलवी, बाल देशपांडे, मधु शेट्ये व मधुकर भावे संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन में उनके सहयोगी रहे।
प्रेमशंकर भाई भट्ट
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने १९२० में जब ‘पूर्ण स्वराज्य’ का लक्ष्य घोषित किया, तब प्रेमशंकर भाई भट्ट १९ वर्ष के थे। वे गुजरात विद्यापीठ में पढ़े, जिसकी स्थापना महात्मा गांधी ने और शांतिनिकेतन में भी, जिसकी रवींद्रनाथ टैगोर ने की थी। आगे की पढ़ाई के लिए वे जर्मनी गए। शराब की दुकानों की पिकेटिंग के दौरान उन्हें सजा हुई, जो उन्होंने साबरमती, येरवडा और वीसापुर जेलों में काटी। हर शाम जोर-जोर से देशप्रेम गीत गाने के कारण वे जेल अधिकारियों की आंखों का कांटा बन गए थे। प्रेमशंकर भाई ने बच्चों से लेकर मजदूरों के हितों के लिए लंबी लड़ाइयां लड़ीं और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से लेकर राष्ट्रपति अब्दुल कलाम तक के हाथों से सम्मानित हुए।
प्रभाकर कुंटे
प्रभाकर कुंटे (१९२२-२०१२) की गणना मुंबई के तपोनिष्ठ स्वतंत्रता सेनानियों में की जाती है। १९४२ के ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन में उन्हें कैद हुई। वे गोवा मुक्ति और संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन के भी प्रमुख नेताओं में थे। श्रमिक नेता और मुंबई महानगरपालिका में नगरसेवक के रूप में भी उन्होंने लंबी पारी खेली।
मणिशंकर कवठे
मुंबई महानगरपालिका का नौ बार चुनाव जीतकर कीर्तिमान बनाने वाले माक्र्सवादी नगरसेवक मणिशंकर कवठे संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन के सूत्रधारों में रहे। १४ वर्ष की उम्र से ही समाजवादी आंदोेलन में शामिल हो जाने वाले कवठे स्वतंत्रता आंदोलन के दिनों में पुलिस चौकियां जलाने व रास्ता रोकने के आरोप में ब्रिटिश शासन की जेल काट चुके हैं।
(जारी)