मुख्यपृष्ठखबरेंमुंबई मिस्ट्री : स्वतंत्रता संग्राम में नारी शक्ति

मुंबई मिस्ट्री : स्वतंत्रता संग्राम में नारी शक्ति

भाग १

विमल मिश्र मुंबई

जब महिलाएं पढ़ी-लिखी नहीं होती थीं, पर्दा प्रथा का बोलबाला था और नारी स्वतंत्रता पर कई तरह के प्रतिबंध थे, देश की आजादी के आंदोलन में महिलाओं ने पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर भाग लिया और मुंबई ने संभाली उनकी कमान। दो अंकों में समाप्त शृंखला की पहली कड़ी।
‘जब महिलाएं पढ़ी-लिखी नहीं होती थीं, पर्दा प्रथा का बोलबाला था और नारी स्वतंत्रता पर कई तरह के प्रतिबंध थे, गांधीजी ने अपने आंदोलन से महिलाओं में अद्भुत शक्ति का संचार किया और झंडों व बैनरों के साथ उन्हें गोरे शासन के विरोध में सड़क पर ला खड़ा किया’, मणि भवन की ग्रंथपाल डॉ. उषा ठक्कर और रिसर्चर संध्या मेहता अपनी पुस्तक उaह्प्ग् घ्ह ँदस्ंaब् (ऊदैar्े एैaraर) में लिखती हैं, ‘घर की चहारदीवारी में बंद रहने वाली महिलाएं शराब और विदेशी कपड़ों की दुकानों के विरुद्ध पिकेटिंग करेंगी, आज से ८०-९० वर्ष पहले सोचा भी नहीं जा सकता था।’
१९३० में देशसेविका संघ का गठन हुआ – तभी से आजादी की लड़ाई में महिलाएं प्रमुख भूमिका निभा रही हैं। अरुणा आसफ अली, पेरिन वैâप्टेन, हंसा मेहता, लीलावती मुंशी, सुशील नैयर, उषा मेहता, अवंतिकाबाई गोखले, गोदावरी पारुलेकर, मणिबेन पटेल, आदि ने कई प्रदर्शन किए और गिरफ्तारियां दीं। विदेशी वस्त्रों का विरोध करते हुए जब बाबू गेनू एक ट्रक के तले कुचले गए तब महिलाओं ने उनकी अर्थी उठाई।’ नमक सत्याग्रह के दौरान जुहू पर नमक बनाया गया और कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने उसे शेयर बाजार में बेचा। सरोजिनी नायडू ने गांधीजी की प्रतिबंधित किताबें ऑपेरा हाउस में घूम-घूमकर बेचीं। डांडी मार्च के दौरान भी महिलाओं ने मुंबई में विराट विरोध प्रदर्शन किए
स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं ने पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर भाग लिया। अगर आप ब्रिटिश काल के पुलिस रिकॉर्ड नजर डालेंगे तो पता चलेगा कि नमक सत्याग्रह में जनवरी, १९३२ से अप्रैल, १९३३ के बीच अकेले मुंबई में कुल ९३९ महिलाओं को गिरफ्तार किया गया। इन आंदोलनकारियों में उच्च वर्ग व कामकाजी सहित हर वर्ग की महिलाएं थीं। इनमें उंगलियों पर गिने जा सकने वाले कुछ परिचित नामों को छोड़कर बाकी अब याददाश्त से लुप्त हो चले हैं। इतिहास में उनका कहीं कोई जिक्र तक नहीं है।
बाइजा बाई
कोल्हापुर में पैदा बाइजा बाई ग्वालियर दौलत राव सिंधिया की तीसरी पत्नी थीं और उनके निधन के बाद महारानी के रूप में १८२७-१८३३ की अवधि में शासन किया। युद्धकला में निष्णात बाइजा बाई ने अंग्रेजों के विरुद्ध मराठा युद्ध में आर्थर वेलेस्ली से लोहा लिया था, जो ‘ड्यूक ऑफ वेलिंगटन’ बने। जब दौलत राव सिंधिया ने अंग्रेजों के साथ युद्ध में पेशवा बाजीराव द्वितीय की खिलाफत की तो इसे कायरता बताते हुए उन्होंने इसका विरोध किया और एक समय उन्हें छोड़कर चली गई थीं। ईस्ट इंडिया कंपनी ने उन्हें सत्ता से हटा दिया था।
लक्ष्मीबाई तिलक
पति की उपेक्षा, पिता व श्वसुर की ताड़ना और झंझावात भरा जीवन – लक्ष्मीबाई तिलक ने लेखन से लेकर स्वतंत्रता संग्राम तक में अपना अलग मुकाम बनाया और देशभर की नारियों की प्रेरणा बनीं। ब्रिटिश सामानों के बहिष्कार के लिए १९३० में महात्मा गांधी के ‘स्वदेशी आंदोलन’ में उन्होंने खूब बढ़-चढ़कर भाग लिया। मराठी में लिखा उनका ‘स्मृतिचित्रे’ देश के आत्मकथा साहित्य की अमर निधि है।
पेरिन कैप्टन
पेरिन कैप्टन और उनकी दो बहनें दादाभाई नौरोजी की पोतियां थीं। खादी को लोकप्रिय बनाने और इस अभियान के अंतर्गत ब्रिटिश शासन को कमजोर करने के प्रयास के रूप में उन्होंने मुंबई में घर-घर जाकर खादी बेची।
हौसाबाई पाटील
हौसाबाई पाटील सातारा में उस प्रति-सरकार की तूफान सेना की सदस्य थीं, जिसने १९४३ में ब्रिटिश राज से आजादी की घोषणा कर दी थी। १९४३ से १९४६ के बीच वे ब्रिटिश राज की ट्रेनों, सरकारी खजानों और पोस्ट ऑफिस पर हमले करने वाले क्रांतिकारी दस्तों का हिस्सा थीं।
शकुंतला सहगल
सौ के सफर के ‌बिलकुल करीब पहुंची शकुंतला सहगल को २३ जुलाई, १९३१ का बालपन वह दिन आखिरी तक भूला नहीं, जब भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु को अंधेरी रात में लाहौर जेल में फांसी पर चढ़ाया गया था। वे सहमे भाई-बहनों के साथ उस दिन घर में ही रहकर प्रार्थना करती रहीं। वे सुखदेव की छोटी बहन (अन्य नाम प्रेमरानी) थीं। गोरे शासन के विरुद्ध संगठित संघर्ष में शकुुंतलाजी का योगदान घर की चौहद्दी तक ही सही, पर अपने नामचीन भाई से कम नहीं था। लाठी-डंडे खाने से लेकर खादी के प्रचार के लिए स्कूल से निकाले जाने से तक-उन्होंने इसके खामियाजे भी झेले हैं। लुधियाना का पैतृक निवास उन्होंने राष्ट्रीय स्मारक के लिए भेंट कर दिया और अंत तक उनकी कोशिश रही मुंबई में भी तीनों शहीदों के संयुक्त स्मारक के निर्माण की।
यमुनाताई साने
पति वी. एन. साने-जो बॉम्बे लेबर यूनियन नेता रहे- के साथ लंबे अरसे समाजवादी आंदोलन से जुड़ी रहीं यमुनाताई साने संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन के प्रखर चेहरों में हैं। वे ठाणे सेंट्रल जेल में जेल काट आई हैं।
(लेखक ‘नवभारत टाइम्स’ के पूर्व नगर संपादक, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं।)

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