बर्फ, शर्बत, जूस के चेंकिंग की नहीं कोई व्यवस्था
सुनील ओसवाल / मुंबई
दोपहर में गर्मी से परेशान आम मुंबईकर अपने सूखते गले को तर करने के लिए शीतपेय का सहारा लेते हैं। मगर गले को गीला करने से पहले सावधान रहने की जरूरत है। रास्ते पर बिकनेवाले शीतपेय को पीकर लोग बीमार पड़ सकते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि यहां बर्फ, शर्बत और जूस आदि की चेकिंग की कोई व्यवस्था ही नहीं। एफडीए अधिकारियों का कहना है कि हम क्या करें! हमारे पास पर्याप्त कर्मचारी नहीं हैं।
बता दें कि गर्मी आते ही शहर में शीतपेय की मांग काफी बढ़ जाती है। लोग प्यास बुझाने के लिए शर्बत की दुकानों, जूस सेंटरों और नींबू पानी के ठेलों की ओर जा रहे हैं। मुंबई शहर और उपनगरों को मिलाकर १.२५ करोड़ से ज्यादा की आबादी है। चूंकि मुंबई में होटलों या सड़कों पर मिलने वाले खाने की गुणवत्ता की जांच करने के लिए कोई सरकारी तंत्र नहीं है। जानकार बताते हैं कि शहर में कई स्थानों पर पेय पदार्थों में इस्तेमाल की जाने वाली बर्फ खाने योग्य नहीं है और इससे नई बीमारियों को आमंत्रण मिलने की संभावना है, क्योंकि यह दूषित पानी से बनाई जाती है। इस संवाददाता ने जब इस संबंध में खाद्य एवं औषधि प्रशासन से जानकारी मांगी तो पता चला कि मुंबई शहर और उपनगरों में इस विभाग के १३ जोन हैं और इन जोन के लिए वर्तमान में ११ सहायक आयुक्त हैं। इनमें से २ की कमी है, जबकि ४९ खाद्य सुरक्षा अधिकारियों की आवश्यकता है। संयुक्त आयुक्त मंगेश माने ने स्वयं स्वीकार किया कि ४४ पदों को मंजूरी दी गई थी, लेकिन इन पदों पर कोई भी काम नहीं कर रहा था, जिससे मुंबईकरों का स्वास्थ्य खतरे में पड़ गया और एफडीए की कार्रवाई पूरी तरह से रुक गई थी।
नहीं हो पा रही कार्रवाई
संयुक्त आयुक्त मंगेश माने ने कहा कि अधिकारियों की कमी के कारण कोई काम नहीं हो रहा है और चाहकर भी बर्फ या वड़ा पाव को लेकर कोई कार्रवाई नहीं हो पा रही है।