मुख्यपृष्ठअपराधमुंबई की माफियानामा : ‘डी’ की जान बची

मुंबई की माफियानामा : ‘डी’ की जान बची

विवेक अग्रवाल

हिंदुस्थान की आर्थिक राजधानी, सपनों की नगरी और ग्लैमर की दुनिया यानी मुंबई। इन सबके इतर मुंबई का एक स्याह रूप और भी है, अपराध जगत का। इस जरायम दुनिया की दिलचस्प और रोंगटे खड़े कर देनेवाली जानकारियों को अपने अंदाज में पेश किया है जानेमाने क्राइम रिपोर्टर विवेक अग्रवाल ने। पढ़िए, मुंबई अंडरवर्ल्ड के किस्से हर रोज।

‘केपी’ के ‘डी’ से पुराने संबंध हैं। यहां तक कि दाऊद को केपी पहले नाम से पुकारता है। उसके सामने ही दाऊद ने डोंगरी से कराची तक का सफर तय किया। १९८४ में दाऊद मुंबई से दुबई गया तो केपी भी साथ ही था। केपी ने दुबई में ही नशा तस्करी शुरू की थी।
केपी ने ‘डी’ कंपनी के लिए बड़े-बड़े काम किए हैं। २००६ में काला घोड़ा हत्याकांड में पुलिस मुखबिर अमजद खान हत्या मामले में केपी का नाम भी है। २००८ में मुंबई में हथियारों का जखीरा बरामद हुआ था, जिसमें सात एके ४७ रायफलें, ३०० गोलियां, ४२ मैगजीन, ४७ पाक निर्मित दस्ती बम बरामद हुए थे। इसमें भी केपी का नाम आया था।
तो वह क्या कारण था कि दाऊद का केपी पर इतना भरोसा है?
कहानी १९८१ से शुरू होती है। इस साल में पठान गिरोह ने साबिर व दाऊद को मारने की योजना बनाई थी। उन्होंने मान्या सुर्वे को साबिर को टपकाने की सुपारी दी।
१२ फरवरी १९८२ को साबिर का पीछा कर सिद्धिविनायक मंदिर के पास गोली मारी। घंटे भर बाद ही दाऊद पर पाकमोडिया स्ट्रीट पर हमले की योजना थी। वहां कारों में पठान गिरोह के तमाम हमलावर हथियारों से लैस पहुंचे। केपी उस समय दाऊद के घर के बाहर बाहर ही निगरानी में था। उसने दुश्मन पठान गिरोह की कारें पहचान लीं। उसने तुरंत बाहर का बड़ा सा भारी–भरकम लौहद्वार बंद किया। अब वह तेजी से अंदर भागा। उसने चिल्ला-चिल्लाकर सबको बताया कि बाहर क्या खतरा है। दाऊद को मारने पहुंचे पठानों के दस्ते ने जब दरवाजा बंद पाया तो खीज उठे। गुस्से में उन्होंने दरवाजे पर खूब गोलीबारी की। दाऊद और उसका परिवार हमले में बच गया। तब से केपी पर दाऊद का भरोसा भी स्थाई हो गया। उनकी आंखों में पुराना वक्त तैरता साफ दिख रहा था। वक्त की एक धारा उनकी आंखों से निकल पड़ी। उन दिनों अपना भी कोई खो चुके थे। उनका दर्द कुछ यूं बयां हुआ-
‘ये फौज नहीं है, जहां जान के बदले शहादत मिले। केपी ने जो किया, बदले में पैसा मिला, इज्जत नहीं’
गुजरात अदालत में हत्या
ऐसी कोई जगह नहीं होगी देश में जहां मुंबई माफिया ने रक्त का दरिया न बहाया हो। मुंबई और महाराष्ट्र के विभिन्न शहरों में यह होता ही रहा है। गुजरात में भी दाऊद और पठान कंपनी के बीच लड़ाई का एक दौर चला। आलमजेब ने गुजरात में पनाह ली तो दाऊद ने वहां भी पीछा न छोड़ा।
बड़ा राजन की हत्या के बाद दाऊद बुरी तरह से बौखलाया। उसने मुखबिरों को आलमजेब की टोह लेने के लिए लगाया। वो जहां जाता, उसके बारे में हर जानकारी जुटाता। सुपारी हत्यारों को आलम के पीछे लगा दिया। उन्हें साफ आदेश था कि जहां मौका मिले, आलम को फौरन मार दें। आलम ने गुजरात में एक छोटे से मामले में खुद की गिरफ्तारी करवा ली। उसका मानना था कि जेल में दाऊद कुछ बिगाड़ नहीं सकेगा। गुजरात की जमीन पर दाऊद का क्या बस चलेगा? वो वैâसे उसके पीछे सुपारी हत्यारे भेजेगा? वैâसे कोई हमला करवाएगा?
लेकिन हुआ ठीक उसका उलटा। दाऊद इतना जिद्दी था कि उसने आलम पर पैनी निगाह रखी। हत्यारों के दस्ते लगाए रखे। एक दिन जैसे ही मौका मिला, उसने वार कर दिया। आलम जब अदालत परिसर में पेशी के लिए पहुंचा, ताक लगाए हत्यारों ने धावा बोल दिया। गोलियों की बौछार में आलम कटे पेड़ की तरह धराशाई हो गया। कोई कुछ करता, उसके पहले हमलावर ये जा – वो जा।
गुजरात में मुंबई माफिया का आतंक आज पहली दफा पूरी तरह गूंजा। अदालत में हुए इस कत्ल ने गुजरात सरकार को हिला दिया। पुलिस को समझ नहीं आ रहा था कि राज्य के शराब माफिया से निपटने की चुनौती के बाद अब वे मुंबई माफिया की हरकतें वैâसे झेलेंगे?
गुजरात के उस मुखबिर ने कहा-
‘दाऊद की जिद ऐसी नहीं होती तो वो कहीं नहीं होता’

(लेखक ३ दशकों से अधिक अपराध, रक्षा, कानून व खोजी पत्रकारिता में हैं, और अभी फिल्म्स, टीवी शो, डॉक्यूमेंट्री और वेब सीरीज के लिए रचनात्मक लेखन कर रहे हैं। इन्हें महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी के जैनेंद्र कुमार पुरस्कार’ से भी नवाजा गया है।)

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