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मुंबई का माफियानामा : हाजी मस्तान का नेता बनने का सपना हुआ चूर-चूर!

 

विवेक अग्रवाल

हिंदुस्थान की आर्थिक राजधानी, सपनों की नगरी और ग्लैमर की दुनिया यानी मुंबई। इन सबके इतर मुंबई का एक स्याह रूप और भी है, अपराध जगत का। इस जरायम दुनिया की दिलचस्प और रोंगटे खड़े कर देनेवाली जानकारियों को अपने अंदाज में पेश किया है जानेमाने क्राइम रिपोर्टर विवेक अग्रवाल ने। पढ़िए, मुंबई अंडरवर्ल्ड के किस्से हर रोज।

८४ के दंगों के बाद मस्तान ने अपने राजनीतिक दल के झंडे तले लोकसभा चुनावों में दो उम्मीदवार उतारे।
पहले थे साप्ताहिक अखबार-ए-आलम के संपादक खलील जाहिद। वे पेशेवर पत्रकार होने के साथ ही मुस्लिम समाज के मुद्दे जोरदार ढंग से उठाते थे। उनके लिए संघर्ष करते थे। वे कई मामलों में गिरफ्तार भी हुए लेकिन हर बार बाइज्जत बरी होते रहे।
दूसरे थे ब्लिट्ज, इंकलाब और अखबार-ए-आलम के बेहद जुझारू स्तंभ लेखक सिराज मिर्जा। वे पुलिस ज्यादती के खिलाफ मस्तान के साथ खड़े होते थे। उन्हें भी ८४ दंगों के सिलसिले में पुलिस ने गिरफ्तार किया था।
वे दोनों चुनाव प्रचार के लिए बड़े जुलूस निकालते, उनकी सभाओं में खासी भीड़ उमड़ती। लेकिन जब मतदान का परिणाम आया, दोनों उम्मीदवारों की बुरी हार हुई। आपको भी पता नहीं होगा कि उन दिनों औरंगाबाद सीट से जाहिद ने और दक्षिण मध्य मुंबई सीट से सिराज ने पर्चे भरे थे। उन्होंने क्रमश ७० और ५० हजार मत हासिल किए।
इस हार ने मस्तान के राजनीतिक तौर पर कदम जमाने के सपने चूर-चूर कर दिए।
उनके साथ राजनीतिक दल में रह चुके सज्जन ने नाम न छापने की शर्त पर जानकारियां साझा करते हुए कहा कि
‘हाजी साब ने इसके बाद भी चुनावों का चक्कर नहीं छोड़ा… चुनावी नशा बुरा है जनाब… बड़ा बुरा।’
(लेखक ३ दशकों से अधिक अपराध, रक्षा, कानून व खोजी पत्रकारिता में हैं, और अभी फिल्म्स, टीवी शो, डॉक्यूमेंट्री और वेब सीरीज के लिए रचनात्मक लेखन कर रहे हैं। इन्हें महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी के जैनेंद्र कुमार पुरस्कार’ से भी नवाजा गया है।)

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