मुख्यपृष्ठअपराधमुंबई का माफियानामा : एसटी का इरादा दाऊद की हत्या

मुंबई का माफियानामा : एसटी का इरादा दाऊद की हत्या

विवेक अग्रवाल

हिंदुस्थान की आर्थिक राजधानी, सपनों की नगरी और ग्लैमर की दुनिया यानी मुंबई। इन सबके इतर मुंबई का एक स्याह रूप और भी है, अपराध जगत का। इस जरायम दुनिया की दिलचस्प और रोंगटे खड़े कर देनेवाली जानकारियों को अपने अंदाज में पेश किया है जानेमाने क्राइम रिपोर्टर विवेक अग्रवाल ने। पढ़िए, मुंबई अंडरवर्ल्ड के किस्से हर रोज।

दाऊद के अफगानी इलाके में
आने की सुभाष को थी खबर
नशा व हथियारों का करता था सौदा
यह महाभारत के कृष्ण की सेना के अर्धसत्य सरीखा है…
यह महाभारत की गांधारी की पट्टी के अर्धसत्य सरीखा है…
यह महाभारत के युधिष्ठिर के अश्वत्थामा के अर्धसत्य सरीखा है…
…पहले जो कहानी कही है कि शेर सिंह राणा पृथ्वीराज चौहान की समाधि लेने अफगानिस्तान गया था, वह भी पूरा सच नहीं है।
सच तो यह है कि पाकिस्तान में शरण लिए गिरोह सरगना दाऊद इब्राहिम से बदला लेने की नीयत से सुभाष सिंह ठाकुर और शेर सिंह राणा के साथी अफगानिस्तान के छोटे से कस्बे गजनी पहुंचे थे। इस मामले में फूलन देवी की हत्या के आरोपी शेर सिंह राणा और उसके दस्ते के लोग पूरी तरह अंधेरे में थे। उन्हें पता ही न था कि सुभाष सिंह का असली इरादा क्या है। इस मामले में जब खबर शाया हुई तो सुभाष को दिल्ली पुलिस की विशेष टास्क फोर्स ने आगरा से बंदी बनाकर दिल्ली पूछताछ के लिए पहुंचाया था।
सूत्रों के मुताबिक, सुभाष सिंह को पता था कि दाऊद अपने साथियों समेत इस अफगानी इलाके में नियमित आता है। यहां से वो नशा व हथियारों के सौदे करता है। पाकिस्तान में परेशानियां बढ़ने पर भी इस इलाके में कुछ समय रहने आता है।
दाऊद इस इलाके का प्रयोग उज्बेकिस्तान और पाकिस्तान के बीच आने-जाने के लिए भी करता है। स्थानीय सरदारों, मुखियाओं और नशा तस्करों से उसके अच्छे संबंध हैं।
दाऊद पाकिस्तान, अफगानिस्तान, उज्बेकिस्तान, तजाकिस्तान इत्यादि इलाकों में आवास बदल-बदल कर रहता है, ताकि भारतीय खुफिया एजेंसियां या राणा-ठाकुर अथवा छोटा राजन जैसे दुश्मनों की पहुंच व नजरों से दूर रह सके।
सुभाष के साथी इस इलाके में इंतजार करते ही रह गए, लेकिन दाऊद उन दिनों एक बार भी वहां नहीं आया। वहां छोटा शकील समेत कुछ साथी आते-जाते दिखे। उन्हें मार कर वे दाऊद को चौकन्ना नहीं करना चाहते थे इसलिए डी-कंपनी के किसी सिपहसालार या प्यादे पर हाथ डालना मुनासिब न समझा।
गिरोहों का उसूल जो ठहरा:
-शिकार न मिले तो पंटर को मत मारो, अगली बारी का इंतजार करो।

(लेखक ३ दशकों से अधिक अपराध, रक्षा, कानून व खोजी पत्रकारिता में हैं, और अभी फिल्म्स, टीवी शो, डॉक्यूमेंट्री और वेब सीरीज के लिए रचनात्मक लेखन कर रहे हैं। इन्हें महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी के जैनेंद्र कुमार पुरस्कार’ से भी नवाजा गया है।)

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