विवेक अग्रवाल
हिंदुस्थान की आर्थिक राजधानी, सपनों की नगरी और ग्लैमर की दुनिया यानी मुंबई। इन सबके इतर मुंबई का एक स्याह रूप और भी है, अपराध जगत का। इस जरायम दुनिया की दिलचस्प और रोंगटे खड़े कर देनेवाली जानकारियों को अपने अंदाज में पेश किया है जानेमाने क्राइम रिपोर्टर विवेक अग्रवाल ने। पढ़िए, मुंबई अंडरवर्ल्ड के किस्से हर रोज।
जून २०१० का एक दिन, वसई के दवा थोक कारोबारी गोपाल पड़िया। एक दोस्त के साथ मुंबई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर गए। वहां सुरजीत घोष से उनका परिचय हुआ। सुरजीत ने कहा कि उनका दोस्त लंदन में बड़ी फाइनांस कंपनी चलाता है। कंपनी की शाखा बैंकॉक में भी है। उससे सस्ते ब्याज पर बड़ा कर्ज मिलता है। वे भी चाहें तो सस्ते ब्याज पर कर्ज ले सकते हैं। गोपाल ने यह सुना तो मुंह में पानी भर गया, वे तुरंत राजी हो गए।
गोपाल को कारोबार बढ़ाने के लिए १५ करोड़ रुपए का कर्ज लेना था। सुरजीत ने गोपाल को मुंबई के एक होटल में चार्टर्ड एकाऊंटेंट से मिलने बुलाया। गोपाल से कर्ज के फॉर्म भरवाए। तुरंत लैपटॉप से बैंकॉक भेजे।
थोड़े दिनों में गोपाल को ईमेल आया कि कर्ज मंजूर हो गया है। कर्ज हासिल करने का निर्धारित प्रक्रिया शुल्क भरना होगा, २१ लाख रुपए है। उनके बताए व्यक्ति को रकम सौंप दें। उसके बाद कर्ज की बाकी प्रक्रिया पूरी करने और रकम लेने खुद बैंकॉक आएं। इस खबर से गोपाल आनंदित हो उठे। कुछ दिनों में गोपाल और उनका बेटा मुनीष बैंकॉक पहुंचे। वहां मैजिस्टिक सुइट होटल में गए। तैयार होकर सभी सुकमवित स्थित एक्सचेंज टॉवर की ६४वीं मंजिल पर पहुंचे। यहां निक शर्मा से मिले।
गोपाल और निक ने कर्ज संबंधी दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए। गोपाल और उनका बेटा मुनीष ये देख चकित थे। उन्हें लग रहा था कि अब तो अच्छे दिन आने ही वाले हैं क्योंकि इस रकम से वे कारोबार बड़ा कर लेंगे।
लेकिन ये क्या!!! जिस राजेश चतुरानी ने गोपाल को बताया था कि सस्ता कर्ज मिलेगा, उसने भद्रेश शाह के साथ गोपाल और मुनीष को धर दबोचा। उनके हाथ-पैर बांध दिए। उनकी बेतहाशा पिटाई की। उन्हें बुरी तरह आतंकित करने के बाद निक शर्मा ने बताया कि वह मुंबई माफिया का बड़ा गिरोह सरगना है। उसका असली मकसद तो उन्हें बैंकॉक लाकर फिरौती वसूलना है।
गोपाल के पसीने छूट गए। वे सोचने लगे कि बेटे के साथ न जाने किस आफत में आ पड़े। निक ने बताया कि उसका असली नाम संतोष शेट्टी है। उनसे कहा कि दूसरे बेटे को फोन कर १५ करोड़ की फिरौती तैयार रखे। उसका बंदा जाकर उठा लेगा। गोपाल और मुनीष संतोष के सामने बहुत रोए गिड़गिड़ाए तो रकम घट कर ५ करोड़ हो गई।
१७ दिनों तक बंधक रखने के बाद संतोष ने रकम जुटाने के लिए मुनीष को १ अक्टूबर २०१० को मुंबई जाने दिया। गोपाल को वहीं बंधक रखा।
मुंबई आने के बाद मुनीष ने कुछ दिन पैसे जुटाने का नाटक किया। वह हर दिन संतोष को यही कहता कि पैसे जुटाने के लिए हाथ-पांव मार रहा है। एक दिन उसने कहा कि लोग उस पर भरोसा नहीं कर रहे हैं। बाजार में उसके पिता का नाम ही चलता है। वे मुंबई वापस आएंगे, तभी रकम का बंदोबस्त होगा।
एक जवान लड़के के झांसे में संतोष आ गया। हाथ आए शिकार को उसने बड़े माल के चक्कर में जाने दिया। गोपाल ११ अक्टूबर, २०१० को मुंबई लौटे तो सीधे पुलिस के पास पहुंचे। पुलिस ने जांच शुरू की। राजेश चतुरानी समेत कई लोगों को धर दबोचा। संतोष का फर्जी पासपोर्ट बनाने के मामले में राजेश की २०११ में गिरफ्तारी हो चुकी थी। वह पहले से पुलिस रिकॉर्ड में था। विजय पलांडे बैंकॉक में गोपाल और मुनीष को संतोष के ठिकाने तक ले गया था। विजय पलांडे वहां था, जिसे मुंबई पुलिस ने दोहरे हत्याकांड में गिरफ्तार किया था। इस मामले में पुरुषोत्तम चतुरानी उर्फ राजू सिंधी गिरफ्तार हुआ। पुलिस ने संतोष पर मोका में मामला दर्ज किया। ये बात और है कि गोपाल कहते हैं कि कुछ रकम देने पर ही संतोष ने उन्हें मुक्त किया था।
जिस बंदे को इस पूरे सिलसिले की जानकारी थी, वह सिर हिलाते हुए अचरज से कहता है-
‘क्या खोपड़ी है भाय ये संतोष शेट्टी का, दिमाक की ऐसी-तेसी कर देता है अपने पिलान से।’
(लेखक ३ दशकों से अधिक अपराध, रक्षा, कानून व खोजी पत्रकारिता में हैं, और अभी फिल्म्स, टीवी शो, डॉक्यूमेंट्री और वेब सीरीज के लिए रचनात्मक लेखन कर रहे हैं। इन्हें महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी के जैनेंद्र कुमार पुरस्कार’ से भी नवाजा गया है।)