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मुंबई की दूसरी लाइफलाइन रामभरोसे! …लोगों की सुविधा पर महायुति का नहीं है ध्यान

-जरूरत से आधी है बेस्ट के बेड़े में बसों की संख्या
-आबादी के अनुसार ६ हजार बसें चाहिए
सामना संवाददाता / मुंबई
महानगर की दूसरी लाइफलाइन कही जाने वाली बेस्ट की बस सेवा जरूरत के अनुसार मुंबईकरों के लिए पूरी नहीं पड़ रही है। बेस्ट के बेड़े में इन दिनों जितनी बसों की जरूरत है, उससे आधी संख्या में ही बसें सड़कों पर दौड़ रही हैं। मुंबईकरों को बस सेवा को लेकर भीड़भाड़ और अन्य तमाम समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। मुंबई में यातायात परिवहन से जुड़ी तमाम संस्थाओं ने भी बेस्ट बस सेवा की मौजूदा स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की।
विशेषज्ञों का कहना था कि इससे सेवा की गुणवत्ता में गिरावट आई है और कर्मचारियों का शोषण हो रहा है। यातायात विशेषज्ञ मुरजबान श्रॉफ ने कहा कि आज मुंबई की आबादी दो करोड़ के पास पहुंच गई है। ऐसे में बसों की संख्या को बढ़ाकर कम से कम ६,००० करना चाहिए। समय पर सेवा सुनिश्चित करने के लिए सभी प्रमुख मार्गों पर बस प्राथमिकता लेन शुरू करना और बेस्ट डिपो के बेचने पर तत्काल रोक लगाना भी जरूरी है, जो बस पार्किंग के लिए महत्वपूर्ण हैं। एक अन्य सदस्य ने कहा कि वर्तमान में बसों की संख्या लगभग ३,००० रह गई है, जिसमें वेट-लीज वाहन भी शामिल हैं। २००७ में हमारे पास लगभग ४,६०० बसें थीं। यह संख्या बढ़ने के बजाय घटती जा रही है। अधिक बसें चलाने के लिए हमें पार्किंग की जगह की आवश्यकता भी है, जो बेस्ट के पास पर्याप्त जगह है।
अन्य विशेषज्ञ डॉ. अमर जसानी ने कहा कि बढ़ते घाटे, ब्रेकडाउन और कर्मचारियों का असंतोष, ये सभी निजीकरण के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। उन्होंने यह भी कहा कि हमने शुरुआत से ही इन मुद्दों के बारे में चेतावनी दी थी और दुख की बात है कि हमारी भविष्यवाणियां सच हो गईं।
ज्यादातर बसें हो गई हैं खटारा
उल्लेखनीय है कि बेस्ट की ज्यादातर बसों की हालात खराब है, उनके रख-रखाव, असंतुष्ट कर्मचारी और सेवा की गुणवत्ता में गिरावट के कारण लोगों में नाराजगी बढ़ी है। इतना ही नहीं निजीकरण मॉडल की लागत, दक्षता और बेहतर सेवा के अपने वादों को पूरा करने में बेस्ट विफल रहा है, जिसमें निजी ठेकेदार कथित तौर पर अधिक मुनाफे के लिए हर जगह कटौती कर रहे हैं।

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