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मनपा की नई कचरा योजना … जागरूकता बिना अभियान अधूरा! … प्रोसेसिंग यूनिट्स पर सवाल

सामना संवाददाता / मुंबई
मुंबई मनपा ने हाउसिंग सोसायटियों से खतरनाक घरेलू कचरा जैसे सेनेटरी नैपकिन, बैटरियां, बल्ब, तार और दवाइयों के कंटेनर अलग से उठाने की योजना शुरू की है। योजना अच्छी है, लेकिन इसे लेकर कई सवाल उठ रहे हैं।
रिपोर्ट की मानें तो मुंबई में रोजाना करीब ७० टन खतरनाक घरेलू कचरा निकलता है, लेकिन इसमें से बहुत कम हिस्सा ही प्लाज्मा तकनीक से प्रोसेस हो पाता है। मनपा के पास ५ प्रोसेसिंग यूनिट्स हैं, जिनकी क्षमता ४ टन प्रतिदिन है, लेकिन वे भी पूरी क्षमता से नहीं चल रही हैं। सवाल यह है कि जब पहले से मौजूद सिस्टम ही ठीक से काम नहीं कर रहा, तो नई योजना वैâसे सफल होगी?
मनपा कहती है कि वह शुरुआत में ५,००० सोसायटियों में एनजीओ भेजकर जागरूकता पैâलाएगी और टेंपो से मुफ्त कचरा उठाएगी, लेकिन बीते अनुभव बताते हैं कि कचरा अलग करने के बावजूद भी मनपा की गाड़ियां उसे मिलाकर उठा ले जाती हैं। इससे लोगों का भरोसा टूट गया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक आम लोगों को यह नहीं बताया जाएगा कि कौन-सा कचरा खतरनाक है और इसे क्यों अलग करना जरूरी है, तब तक कोई भी योजना धरातल पर नहीं उतर पाएगी। योजना का आधार मजबूत करने से पहले मनपा को अपने पुराने सिस्टम की कमियों को सुधारना होगा। वर्ना यह पहल भी सिर्फ कागजों तक ही सिमटकर रह जाएगी।

 

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