– ईडी सरकार भूल गई रोजगार उपलब्ध कराने का वादा
सामना संवाददाता / मुंबई
सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए रोजगार गारंटी योजना शुरू की कि गरीबों को अपने गांव में ही काम मिले। हालांकि, ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों की कमी के कारण मुरबाड के लगभग पांच हजार आदिवासी अपने परिवारों के साथ वाड़े और पाड़े छोड़ चुके हैं। आदिवासी अपना पेट भरने के लिए पड़ोसी जिलों के र्इंट भट्ठों पर जाते हैं। परिणामस्वरूप आदिवासी वाड़े और पाड़े वीरान हो गए हैं। इस कारण यहां कब्रिस्तान जैसा सन्नाटा पसर गया है। ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि वाड़े और पाड़े में रोजगार उपलब्ध कराने के वादे सरकार भूल गई है।
उल्लेखनीय है कि एक बार चावल की खेती का काम खत्म हो जाए तो गांव में कोई रोजगार नहीं बचता इसलिए हर साल नवंबर और दिसंबर में कम से कम पांच हजार परिवार अपने बच्चों के साथ अपना घर छोड़ देते हैं। घर छोड़कर जाने वाले आदिवासी परिवार सीधे जून महीने में ही वापस लौटते हैं। इस वर्ष भी मुरबाड से हजारों आदिवासी र्इंट भट्ठों पर काम करने के लिए ठाणे, नासिक और पनवेल गए हैं। परिणामस्वरूप, मुरबाड के अधिकांश आदिवासी गांव वीरान होने लगे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि अधिकांश काम कागजों पर होता है, इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को काम नहीं मिलता और अगर काम मिलता भी है तो समय पर मजदूरी का भुगतान नहीं होता है। उन्हें अपना गुजारा करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। यही वजह है कि हर साल आदिवासी अपना घर छोड़कर अन्य स्थानों पर पलायन कर जाते हैं।
‘बयाना’ देकर बांध दिए जाते हैं हाथ
आदिवासी परिवार आठ महीने तक ईंट भट्ठों पर काम करते हैं। हालांकि, मामूली मजदूरी के कारण हाथ में कुछ नहीं बचता। इसलिए र्इंट भट्ठा मालिक मानसून के दौरान घर लौटने वाले इन मजदूरों को अगले साल का वेतन अग्रिम दे देते हैं। दिसंबर बीतते ही र्इंट भट्ठा मालिकों की गाड़ियां उनके दरवाजे के सामने खड़ी हो जाती हैं। `बयाना’ के नाम पर आदिवासियों के हाथ बंध जाते हैं। वे अपने गांव छोड़ने को मजबूर हो जाते हैं।