मुख्यपृष्ठग्लैमर‘मेरे पंखों को उड़ान मिल गई है!’ - शंकर श्रीकुमार

‘मेरे पंखों को उड़ान मिल गई है!’ – शंकर श्रीकुमार

 

‘इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया’ में खिताब जीतनेवाली और अब ‘कांस’ में बाजी मारनेवाली फिल्म ‘अल्फा बीटा गामा’ हाल ही में सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। देशभर के तमाम सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी इस फिल्म को किस आधार पर इतना बड़ा खिताब मिला। पेश है, निर्माता शंकर श्रीकुमार से योगेश कुमार सोनी की हुई बातचीत के प्रमुख अंश-

 पहले ‘इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया’ और फिर ‘कांस’ में बाजी मारने के बाद अब देशभर के सिनेमाघरों में फिल्म के प्रदर्शित होने पर आप और आपकी टीम कैसा महसूस कर रही है?
मेरे लिए यह बिल्कुल सपने जैसा है। मुझे बिल्कुल भी यकीन नहीं हो रहा है कि पहले मेरी फिल्म इतने बड़े मंच पर चुनी गई और उसके बाद सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। जितनी मेरी उम्र नहीं उससे ज्यादा तो उनके पास अनुभव है। किसी भी लेखक, डायरेक्टर, प्रोड्यूसर के लिए यह एक सपने जैसा होता है। फिल्म को बनाने के लिए बहुत मेहनत की है, जिसका मुझे भगवान ने यह परिणाम दिया है।

आपने फिल्म की पटकथा में क्या दर्शाया है?
एक शादी टूट रही है और एक होनेवाली है। चिरंजीव नामक एक व्यक्ति अपनी पत्नी से अलग रहता है। उसे लगता है कि उसकी शादी उसके करियर को खराब कर देगी इसलिए उसने अपनी पत्नी मिताली और अपने घर को छोड़ दिया था। अब वो एक कामयाब फिल्ममेकर हैं। मिताली, चिरंजीव को फोन करके बताती है कि वह भी अपने ऑफिस में रवि नाम के लड़के से प्यार करती है और अब वह भी अलग होना चाहती है। चिरंजीव इस बात को सुनकर बहुत बेचैन हो जाता है और मिताली से कहता है कि रात को वो घर आकर उससे बात करेगा। रात को जब वह घर जाता है तो रवि भी वहीं होता है। कोरोना का समय होता है और उनकी बिल्डिंग में किसी को कोरोना हो जाता है और बिल्डिंग सील हो जाती है, जिससे वे तीनों चौदह दिनों के लिए घर में एक साथ रहते हैं और इसके बाद तीनों की जिंदगी बदल जाती है।

 फिल्म की संरचना के विषय में बताइए?
बीते वर्ष २०२० में मैंने यह फीचर फिल्म बनाई, जिसमें मैंने करीब चालीस लोगों को एकत्रित कर काम शुरू कर दिया। कोरोना काल का दौर था और दुनिया के साथ हम भी संकट के दौर से गुजर रहे थे लेकिन जज्बा मेरी पूरी टीम में था। अप्रैल में स्क्रिप्ट लिखी, मई में कलाकार और क्रू ढूंढा और जुलाई में इसको शूट किया। चूंकि पैसा खत्म हो चुका था इसलिए शूटिंग रुक गई। इसके बाद नवंबर २०२० में नोन-सेंस इंटरटेंटमेंट हमारे साथ जुड़ा और हमारी स्क्रिप्ट पसंद आने पर उन्होंने हमारी फिल्म को आगे बढाया और बीते वर्ष जून में हमारी फिल्म कंप्लीट हुई।

 आजकल रिश्तों को समझना मुश्किल क्यों होता जा रहा है। यदि दोनों ही दंपति काम करनेवाले होते हैं तो रिश्ते ज्यादा उलझ जाते हैं। इस पर आपके क्या विचार हैं?
रिश्तों को समझना हमेशा से ही मुश्किल रहा है। चूंकि रिश्तों को समझने और निभाने के लिए कुछ समय चाहिए होता है। लेकिन अब लोगों के पास समय का इतना अभाव हो गया है कि वो रिश्तों को समझना ही नहीं चाहते। रिश्ता एक भरोसा है, एहसास है और दोनों लोगों की जिम्मेदारी है जिसे साथ मिलकर ही निभाना होता है। यदि एक भी कमजोर पड़ जाएगा तो काम नहीं चलेगा।

अपने अनुभवों को साझा करते हुए ये भी बताइए कि आप किन प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे हैं?
इस फिल्म के बाद मेरे पंखों को उड़ान मिल गई और मैं आज के परिवेश में रिश्तों की सच्चाई दिखाना चाहता हूं। उलझे रिश्तों को सुलझाने की कहानी लिखना चाहता हूं। अभी मैं दो फिल्में और बना रहा हूं, जिनका नाम है ‘स्वप्न सुंदरी’ व दूसरी का नाम अभी तय नहीं हुआ है लेकिन उसकी स्क्रिप्ट लिखने का काम मैंने शुरू कर दिया है।

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