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नागपुर ने ही भुजबल को किया निराश … ३४ साल पहले हुआ था राजतिलक

राजन पारकर / मुंबई
छगन भुजबल महाराष्ट्र की राजनीति के एक प्रमुख चेहरे हैं, जिनका करियर लगभग पांच दशकों से अधिक समय तक सक्रिय रहा है। उनके राजनीतिक जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए, जिसमें शिवसेना से कांग्रेस में शामिल होना, एनसीपी (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी) का हिस्सा बनना और हाल ही में २०२४ में मंत्री पद न मिल पाने की नाराजगी शामिल है। १९९१ में शिवसेना से कांग्रेस में शामिल होने के बाद, छगन भुजबल ने नागपुर में मंत्री पद की शपथ ली थी।
हालांकि, २०२४ में देवेंद्र फडणवीस सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार के दौरान, भुजबल को मंत्री पद नहीं मिला! नागपुर सत्र के दौरान ३४ साल पहले छगन भुजबल को राजतिलक लगाया गया था, उसी नागपुर में ३४ साल बाद उनसे मंत्री पद को छीन लिया गया है।
भ्रष्टाचार के आरोप और जेल यात्रा
भुजबल का राजनीतिक करियर कई विवादों और भ्रष्टाचार के आरोपों से भी घिरा रहा। २०१६ में मनी लॉन्ड्रिंग और भ्रष्टाचार के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर महाराष्ट्र सदन घोटाले और जमीन सौदे में गड़बड़ी के आरोप लगे थे। हालांकि, बाद में वे स्वास्थ्य कारणों से जमानत पर रिहा हो गए।
राजनीतिक पुनरुत्थान
जेल से बाहर आने के बाद भुजबल ने फिर से अपनी राजनीतिक सक्रियता बढ़ाई। २०१९ में महाविकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार बनने पर उन्हें महाराष्ट्र सरकार में खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री बनाया गया। उन्होंने इस पद पर रहते हुए कई अहम निर्णय लिए, खासकर कोरोना महामारी के दौरान सार्वजनिक वितरण प्रणाली को मजबूत किया।
मंत्री पद से वंचित
२०२४ में महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली सरकार का मंत्रिमंडल विस्तार हुआ। भुजबल को उम्मीद थी कि उन्हें मंत्री पद मिलेगा, लेकिन उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया। इस पर उन्होंने सार्वजनिक रूप से नाराजगी जताई और कहा कि उन्हें जानबूझकर नजरअंदाज किया गया है।

 

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