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नायर की फोकटिया ‘फायर’… मनपा के नामचीन अस्पताल में १६ दिनों से बंद पड़ी है हार्ट सर्जरी!

ठेकेदार पेमेंट के लिए अड़ा, एक सप्ताह से पहले ऑपरेशन शुरू होना संभव नहीं

धीरेंद्र उपाध्याय / मुंबई
मनपा द्वारा संचालित नायर अस्पताल मुंबई के बेहतरीन अस्पतालों में से एक रहा है। मगर अब इसकी हालत खराब नजर आ रही है। ‘पुष्पा’ की शैली में कहें तो नायर अस्पताल में अब ‘फायर’ नहीं रहा। कुछ दिनों से यह नाजुक दौर से गुजर रहा है। इसी क्रम में अब नायर में हार्ट की सर्जरी बीते १६ दिनों से रुकी हुई है। इसका मुख्य कारण यह है कि इस सर्जरी में इस्तेमाल होने वाले उपकरण की आपूर्ति करने वाले ठेकेदार का बकाया बहुत ज्यादा हो गया है। ऐसे में ठेकेदार अड़ गया है कि जब तक बकाए का भुगतान नहीं हो जाता, तब तक वह उपकरण की आपूर्ति नहीं करेगा। दूसरी तरफ अस्पताल प्रशासन ने दावा किया है कि रकम अदायगी की प्रक्रिया लगभग पूरी हो चुकी है। साथ ही ऑपरेशन शुरू होने में और पांच दिन लगेंगे।
उल्लेखनीय है कि नायर अस्पताल के ओपीडी में प्रतिदिन तीन से साढ़े तीन हजार मरीज इलाज के लिए आ रहे हैं। इसमें हार्ट सर्जरी विभाग में आने वाले मरीजों की संख्या अधिक है। बता दें कि निजी अस्पतालों की तुलना में नायर अस्पताल में यह सर्जरी बहुत ही कम कीमत पर की जाती है। सर्जरी के लिए आवश्यक महत्वपूर्ण उपकरण नायर अस्पताल प्रशासन द्वारा उपलब्ध कराए जाते हैं। भुगतान न होने पर ठेकेदार ने १५ दिन पहले अचानक उपकरणों की आपूर्ति बंद कर दी। ऐसे में वहां बाइपास सर्जरी बंद हो गई। अस्पताल प्रशासन के इस रवैये से परेशान मरीजों के परिजनों ने बताया कि जिन मरीजों को सर्जरी की जरूरत होती है, उन्हें विभाग के डॉक्टर निजी अस्पताल में जाने की सलाह दे रहे हैं। हालांकि, जब इस संबंध में नायर अस्पताल के वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. अजय चौरसिया से फोन पर संपर्क किया गया, तो वे नहीं मिले।

बाइपास सर्जरी है बंद
अस्पताल प्रशासन के मुताबिक, पूरा सर्जरी विभाग बंद नहीं किया गया है, सिर्फ बाइपास सर्जरी बंद की गई है। भुगतान मंजूर कराने का काम चल रहा है। संबंधित फाइल पर स्वास्थ्य विभाग के अतिरिक्त आयुक्त ने हस्ताक्षर कर उसे आयुक्त व प्रशासक भूषण गगरानी के पास भेज दिया गया है। इसे लेकर जब अस्पताल के डीन डॉ. शैलेश मोहिते के मोबाइल पर संपर्क करने की कोशिश की गई, तो वे उपलब्ध नहीं थे।

बाहर से लेनी पड़ती हैं दवाएं
मरीजों के परिजनों का कहना है कि दवाएं निजी मेडिकल स्टोरों से लेनी पड़ती हैं। अस्पताल में कई यंत्रणाएं बंद हैं। इस वजह से जांच के लिए मरीजों को निजी सेंटरों का सहारा लेना पड़ रहा है। परिणामस्वरूप उनकी जेबों पर आर्थिक दबाव पड़ रहा है।

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