दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित ‘विश्व नमोकार महामंत्र दिवस’ के पावन मंच से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ९ अप्रैल, २०२५ को नमोकार मंत्र के सामूहिक जाप के साथ जैन अनुयायियों को ९ संकल्पों का उपदेश दिया।
संकल्प अच्छे हैं, प्रेरणादायक भी, लेकिन सवाल यह है कि इन संकल्पों की जिम्मेदारी किसकी है?
जब मोदीजी कहते हैं- ‘पानी बचाओ’, तो यह बताइए कि जिस भविष्यवाणी का जिक्र उन्होंने बुद्धिसागर महाराज के हवाले से किया, जिसमें सौ साल पहले कहा गया था कि ‘पानी भी एक दिन किराने की दुकान पर बिकेगा’, तो क्या उस भविष्यवाणी को सच साबित करने के बाद अब जनता पर ही पानी बचाने की जिम्मेदारी डालना ठीक है?
देश में हर साल करोड़ों लीटर बारिश का पानी बह जाता है, लेकिन क्या सरकार ने बारिश का पानी संजोने, उसे गांवों-शहरों तक पहुंचाने और ग्राउंड वॉटर को रीचार्ज करने की कोई ठोस राष्ट्रीय नीति बनाई?
पानी की समस्या केवल ‘कम उपयोग’ की नहीं, बल्कि प्राकृतिक संसाधनों के कुशल भंडारण और वितरण की है। और ये काम जनता नहीं, बल्कि सरकार का दायित्व है।
‘हर नागरिक एक पेड़ मां के नाम लगाए’, ‘देश दर्शन करे’, ‘योग अपनाए’, ‘नेचुरल फार्मिंग करे’, ‘वोकल फॉर लोकल हो’ जैसी प्रधानमंत्री की बातें अच्छी लगती हैं, लेकिन जब शासन खुद ‘ग्लोबल निवेश’, ‘मल्टीनेशनल भागीदारी’ और ‘कॉर्पोरेट खेती’ को बढ़ावा दे रहा हो तब ये संकल्प कहीं उपदेश जैसे न लगें?
मोदीजी ने कहा, ‘गरीबों की मदद करें’, लेकिन जब सरकारी योजनाएं, राशन व्यवस्था, ग्रामीण रोजगार गारंटी और स्वास्थ्य सेवाएं खुद चरमराई हुई हों तो सरकार की नाकामी का बोझ क्या जनता के संकल्पों से ढंका जा सकता है?
सच्चाई यह है कि ये ९ संकल्प आत्मा की शुद्धि से अधिक, सरकारी जिम्मेदारियों का निजीकरण हैं।
नमो मंत्र के जाप के बाद, नमो की सरकार को भी यह समझना होगा कि जाप और भाषण से अधिक जरूरत है नीति और क्रियान्वयन की।
वरना कल को जनता पूछेगी, ‘प्रधानमंत्री जी, आपके संकल्पों के पीछे क्या सरकार की कोई योजना है या फिर यह भी आत्मनिर्भरता का नया पाठ है, जिसमें जिम्मेदारी सिर्फ जनता की है?