डॉ. अनिता राठौर
पिछले साल ६ अगस्त को यूक्रेन ने पश्चिम रूस के कुर्स्क क्षेत्र, जो उसके सूमी क्षेत्र की सीमा से लगा हुआ है में जबरदस्त हमला किया था और १,३७६ वर्ग किमी व लगभग १०० शहरों-गांवों पर कब्जा कर लिया था। दूसरे विश्व युद्ध के बाद पहली बार किसी देश की फौज रूस की जमीन पर घुसी व काबिज हुई थी। हालांकि, रूस ने भी यूक्रेन के लगभग पांचवें हिस्से पर कब्जा किया हुआ है, लेकिन यह बात रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को शर्मसार करने वाली थी, विशेषकर इसलिए कि उन्होंने खुद को उन रूसी शासकों की ऐतिहासिक परंपरा में शामिल किया हुआ है, जो सैन्य तौर पर अत्यधिक सफल हुए थे। बहरहाल, पिछले साल अक्टूबर में रूसी फौज का साथ देने के लिए उत्तर कोरिया की फौज भी कुर्स्क में आ गई और तब से युद्ध में रूस का पलड़ा भारी होता गया कि उसने सुद्ज्हा ( कीव के कब्जे में उसका जो सबसे बड़ा क्षेत्र था) सहित अपना लगभग ९० प्रतिशत क्षेत्र वापस ले लिया है लेकिन १० प्रतिशत पर अभी भी यूक्रेन का कब्जा है।
अब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बयान से ऐसा प्रतीत होता है कि पश्चिमी कुर्स्क में रूस व उत्तर कोरिया के सैनिकों ने यूक्रेन के सैनिकों को बुरी तरह से घेर लिया है। ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर लिखा, ‘मैंने राष्ट्रपति पुतिन से सख्ती से आग्रह किया है कि वह उन (हजारों यूक्रेन सैनिकों) की जिंदगी बख्श दें। यह दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे अधिक भयावह कत्लेआम होगा।’ इस पर पुतिन का जवाब था कि वह अपने पश्चिम कुर्स्क क्षेत्र में यूक्रेन के सैनिकों की जान बख्श देंगे, अगर कीव अपने सैनिकों को उन्हें आत्मसमर्पण का आदेश दे तो। दूसरी ओर यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदोमिर जेलेंस्की ने अपने सैनिकों की स्थिति को ‘अति कठिन’ अवश्य बताया है, लेकिन इस बात से इंकार किया है कि कुर्स्क में उनके सैनिकों को घेर लिया गया है। उन्होंने रूस के दावे को झूठ व मनगढ़ंत बताया है। इस बीच यूक्रेन ने तीन वर्ष के युद्ध में अब तक का अपना सबसे बड़ा हमला किया, लेकिन उसके ३३७ ड्रोनों को रूस की एयरफोर्स ने मार गिराया। इसके बाद क्रेमलिन ने अपने पड़ोसी पर पूर्ण पैमाने पर आक्रमण करने का आदेश दिया है।
कीव के पास रूस के साथ सौदेबाजी करने के जो चंद पहलू हैं, उनमें से प्रमुख कुर्स्क पर उसका कब्जा ही है। अगर यूक्रेन कुर्स्क पर अपना नियंत्रण खो बैठता है तो क्या होगा? यूक्रेन अपने क्षेत्र, मनोबल और सौदेबाजी करने की क्षमता को खो बैठेगा। महीनों के भयंकर युद्ध के बाद कुर्स्क से निकलने पर जेलेंस्की अतिरिक्त कमजोर हो जाएंगे, जबकि २८ फरवरी २०२५ को ट्रंप के साथ असफल वार्ता के बाद वह पहले से ही दबाव में हैं।
इस पृष्ठभूमि में शांति योजना के उस प्रस्ताव को देखना आवश्यक है, जिसे अमेरिका चाहता है कि क्रेमलिन ‘बिना शर्त’ के स्वीकार कर ले। गौरतलब है कि ११ मार्च २०२५ को जेद्दाह, सऊदी अरब में अमेरिका व यूक्रेन के वार्ताकारों के बीच ८ घंटों से भी अधिक बातचीत हुई। इसके बाद दोनों देशों ने अपने शांति प्रस्ताव के संदर्भ में संयुक्त वक्तव्य जारी किया। अमेरिका का कहना है कि अब इस सिलसिले में गेंद मास्को के पाले में है। प्रस्ताव में कहा गया है कि यूक्रेन ‘तुरंत प्रभाव से ३०-दिन के अंतरिम युद्धविराम के लिए तैयार है’, जिसे संबंधित पार्टियों की आपसी सहमति से आगे भी बढ़ाया जा सकता है। अमेरिका ने यूक्रेन पर जो सुरक्षा सहयोग व इंटेलिजेंस साझा करने पर रोक लगायी थी, उसे वापस ले लिया गया है। अमेरिका व यूक्रेन इस बात पर सहमत हो गए हैं कि यूक्रेन के खनिज संसाधनों पर समझौता जितनी जल्दी मुमकिन हो सकेगा कर लिया जाएगा। व्हाइट हाउस में ट्रंप जेलेंस्की की तू-तू, मैं-मैं के बाद यह प्रस्तावित समझौता अधर में लटक गया था, लेकिन संयुक्त वक्तव्य में ‘सुरक्षा गारंटी’ वाक्यांश शामिल नहीं है, जबकि जेलेंस्की की यही प्रमुख मांग थी कि अमेरिका उससे वादा करे कि अगर रूस युद्धविराम या शांति समझौते का उल्लंघन करता है तो वह उसकी मदद करेगा।
पिछले तीन वर्षों से पुतिन यह प्रचारित करते आ रहे हैं कि यूक्रेन युद्ध को कीव व उसके पश्चिमी सहयोगियों ने उकसाया है। इसी को आधार बनाकर उन्होंने ‘रूसकीय मीर’ (रूसी प्रभाव के यूक्रेन क्षेत्रों) को वापस लेने का राष्ट्रवादी दृष्टिकोण पेश किया। जाहिर है कि यूक्रेन को पराजित किए बिना मास्को का यह प्रोजेक्ट अधूरा रहेगा। इस समय अगर युद्धविराम कर लिया जाता है तो रूस जंग में अपना वेग खो बैठेगा, जबकि इस समय वह बढ़त बनाये हुए है। दूसरी ओर रूस अगर युद्धविराम के प्रस्ताव को एकदम से नकार देता तो यूक्रेन सही साबित हो जाता कि मास्को की शांति में दिलचस्पी नहीं है और रूस-अमेरिका के संबंध सामान्य करने के जो प्रयास जारी हैं, वे प्रयास भी पटरी से उतर जाएंगे। शायद इसलिए पुतिन ने बीच का रास्ता अपनाते हुए कहा कि वह ३० दिन के युद्धविराम को स्वीकार करने के लिए खुले हैं, लेकिन अनेक ‘प्रश्नों’ का समाधान अभी शेष है। पुतिन मुख्यत: यह जानना चाहते हैं कि कुर्स्क पर जो यूक्रेन सैनिकों का कब्जा है, उसका क्या होगा और क्या ३० दिन के युद्धविराम के दौरान कीव को हथियार दिए जाएंगे? पुतिन का यह भी सवाल है कि शांति योजना की निगरानी कैसे की जाएगी और उसे कैसे लागू किया जाएगा? ट्रंप ने कहा है कि वह पुतिन से टेलीफोन पर बात करेंगे।
बहरहाल, पुतिन के बयानों से स्पष्ट होता है कि मास्को शांति स्थापित करने की जल्दी में नहीं है। पुतिन के मुख्य सलाहकार यूरी उषाकोव का कहना है कि रूस अस्थायी युद्धविराम की बजाय दीर्घकालीन शांति समझौते को प्राथमिकता देगा, तो क्या ट्रंप ने पुतिन के ब्लफ को जाहिर कर दिया है?
(लेखिका शिक्षा क्षेत्र से जुड़ी हैं।)