-झील को संरक्षित क्षेत्र घोषित करने की मांग पर प्रशासन चुप
सामना संवाददाता / मुंबई
नई मुंबई की डीपीएस झील, जो प्रवासी पक्षियों और विशेष रूप से फ्लेमिंगो के लिए एक महत्वपूर्ण आश्रय स्थल है, आज प्रशासनिक उदासीनता और सिडको की लापरवाही का शिकार हो रही है। झील को संरक्षित क्षेत्र घोषित करने की मांग लंबे समय से की जा रही है, लेकिन प्रशासन इसे नजरअंदाज कर रहा है।
सिडको पर गंभीर आरोप
पर्यावरणविदों का आरोप है कि सिडको पर्यावरण से ज्यादा वाणिज्यिक हितों को प्राथमिकता दे रहा है। झील को बचाने के लिए जरूरी चार पानी की पाइपों में से दो पूरी तरह से बंद हैं, जिसके कारण पानी सूखने लगा है और शैवाल जमने लगी है। यह स्थिति झील के पारिस्थितिक तंत्र को नष्ट कर रही है, जिससे फ्लेमिंगो और अन्य जीवों के जीवन पर खतरा मंडरा रहा है।
सरकारी विभागों में तालमेल की कमी
मैंग्रोव सेल का कहना है कि जब तक झील को संरक्षित क्षेत्र घोषित नहीं किया जाता, वह कोई कार्रवाई नहीं कर सकता। प्रश्न यह उठता है कि आखिर प्रशासन कब जागेगा?
निवासियों की चेतावनी
स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि जल्द ही झील की सुरक्षा के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए तो वे बड़े स्तर पर प्रदर्शन और कानूनी कार्रवाई करेंगे। प्रशासन और सिडको को यह समझना होगा कि पर्यावरण की सुरक्षा किसी भी व्यावसायिक मुनाफे से अधिक महत्वपूर्ण है।
निवासियों का संघर्ष, प्रशासन की अनदेखी
रविवार को स्थानीय निवासियों ने झील को संरक्षित क्षेत्र घोषित करने के लिए एक हस्ताक्षर अभियान चलाया, जिसमें १,२०० से अधिक लोगों ने समर्थन दिया। यह पत्र वन विभाग को सौंपा गया, लेकिन सवाल उठता है कि क्या यह भी बाकी शिकायतों की तरह फाइलों में ही वैâद होकर रह जाएगा। वन विभाग एक रिपोर्ट में पहले ही सिफारिश कर चुका है कि झील और उसके आसपास के वेटलैंड्स को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया जाए, ताकि किसी भी तरह के निर्माण कार्य पर रोक लगाई जा सके। सिडको ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की।