रवीन्द्र मिश्रा / मुंबई
तुंगारेश्वर मंदिर के उत्तरी छोर पर स्थित जाग माता मंदिर में इस बार चैत्र नवरात्र उत्सव धूमधाम और धार्मिक अनुष्ठान के साथ आयोजित किया गया। मंदिर परिसर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी, जिन्होंने मां जाग माता के दर्शन और पूजा-अर्चना की।
तुंगारेश्वर शिव मंदिर के प्रबंधक दत्ता हिंगा ने बताया कि जाग माता का यह मंदिर बहुत पुराना है और इसे परशुराम कालीन माना जाता है। उनके अनुसार, यह मंदिर गोमुख के पास पहाड़ी के उत्तरी छोर पर स्थित है, जो पहले एक छोटा सा मंदिर था, लेकिन जीर्ण अवस्था में होने के कारण इसका जीर्णोद्धार किया गया। मंदिर के जीर्णोद्धार में बालयोगी सदानंद महाराज की तपस्या और भक्तों के सहयोग से आज यह एक भव्य मंदिर के रूप में स्थापित हुआ है।
आस्था के इस पवित्र स्थल पर हर भक्त तुंगारेश्वर शिव मंदिर में भोलेनाथ के दर्शन के बाद जाग माता के दर्शन करने जरूर जाता है। भक्तों को मंदिर तक पहुंचने के लिए 108 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। इन सीढ़ियों पर चढ़ते समय अक्सर लोग वहां के बंदरों से भी मिलते हैं, जो प्रसाद प्राप्त करने की इच्छा जाहिर करते हैं। लोग इन्हें केला या चना खिलाते हैं और मजेदार बात यह है कि अब तक इन बंदरों ने किसी भी भक्त को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया है।
मंदिर के पुजारी विष्णु महाराज ने बताया कि इस मंदिर में सच्चे दिल से की गई प्रार्थनाओं को मां जाग माता अवश्य सुनती हैं और उनकी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। यही कारण है कि साल भर में दो बार आयोजित होने वाले नवरात्र उत्सव के दौरान यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
नवचंडी जप करने वाले महेश महराज ने मंदिर को एक सिद्ध पीठ बताते हुए कहा कि दुर्गाष्टमी के दिन होने वाले हवन में भाग लेने के बाद ही भक्त अपना उपवास खोलते हैं।
यह मंदिर न केवल भक्तों की मनोकामनाओं को पूरा करता है, बल्कि तुंगारेश्वर के पहाड़ी क्षेत्र में स्थित होने के कारण यहां प्राकृतिक सौंदर्य का भी भरपूर आनंद लिया जा सकता है। यहां पहुंचने के लिए वसई पूर्व सातीवली से बापा सीताराम आश्रम तक वाहन या पैदल यात्रा की जा सकती है।
श्रावण माह में इस क्षेत्र का प्राकृतिक दृश्य अत्यधिक आकर्षक होता है, जो पर्यटकों और श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है।