नवरात्रि का आज षष्ठम दिवस है। आज का यह दिवस देवी कात्यायनी को समर्पित है। देश भर में जगह-जगह कई भक्ति कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे है। देवी-जागरण एवं देवी-भजन से पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया है। सभी जगह के पंडाल भी सज-धजकर तैयार हो चुके है। पंडाल में मूर्ति स्थापना के बाद अब मूर्ति का पट भी कल सप्तमी तिथि को खुल जायेगा, जिसका सभी को बेसब्री से प्रतीक्षा है। देवी के पूजन के साथ ही कई जगह रामलीला का भी मंचन किया जा रहा है। प्रभु राम ने देवी के नव दिनों के आराधना के बाद ही विजयादशमी को रावण का संहार किया था। इसलिए नव दिनों तक राम के सद्चरित्रों को लीला के माध्यम से दर्शकों को पात्रों द्वारा मंचन कर दिखाया जाता है एवं विजयादशमी को अधर्म पर धर्म के जीत के रूप में मनाया जाता है। अगर रामायण के पात्र देवी सीता पर केन्द्रित करें तो यह स्पष्ट होता है कि मातृशक्ति का प्रत्येक रूप देवी सीता में समाहित है। माँ सीता स्वयं प्रभु राम को पति रूप में पाने हेतु देवी पार्वती का पूजन-स्तवन की थी। जिसका उल्लेख रामचरितमानस में भी मिलता है। आज नवरात्रि के षष्ठी तिथि को श्रद्धालु माँ कात्यायनी का विधि-विधान से पूजन करेंगे। इस स्वरूप के पूजन से विवाहादि का योग प्रबल होता है एवं मनचाहा पति मिलता है। अपने लोकप्रिय समाचार-पत्र में आज पढिये देवी दुर्गा के षष्ठम स्वरूपादि के बारे में।
ध्यान मन्त्र:-
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहन ।कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
माँ का षष्ठम स्वरूप कात्यायनी है। ये अपने भक्तों की सदा रक्षा करती है। ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में भी जानी जाती हैं। इनका स्वरूप अत्यंत भव्य और दिव्य है। यह स्वर्ण के समान चमकीली हैं और भास्वर हैं।
देवी कात्यायनी की चार भुजाएँ हैं। दाहिनी तरफ का ऊपरी हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला वरमुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपरी हाथ में धारण की हुई तलवार से देवी असुरों के नाश को आतुर है तो वही नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प धारण कर सुशोभित हो रही है।
देवी कात्यायनी की कथा–
पौराणिक कथा के अनुसार कात्य गोत्र के विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन थे। महर्षि कात्यायन ने कई वर्षों तक भगवती पराम्बा की उपासना की। देवी के परम् उपासक कात्यायन ऋषि की इच्छा थी कि उन्हें पुत्री रूप में संतान प्राप्त हो। उनकी यह भी इच्छा थी कि माँ दुर्गा ही उनकी पुत्री बनकर उनके घर जन्म लें। इस इच्छा से ही महर्षि कात्यायन देवी दुर्गा की कठिन उपासना करने लगे। यह उपासना वर्षों तक चलता रहा। पूर्ण श्रद्धा एवं निष्ठा से देवी दुर्गा प्रसन्न हुई। देवी ने उन्हें दर्शन दिया एवं वरदान मांगने को कहाँ। महर्षि ने उनकी स्तुति की एवं बार बार प्रार्थना करते हुए कहने लगे- हे देवी! आप तो सब जानने वाली है। मेरी इच्छा है कि आप मेरे घर मेरी पुत्री के रूप में जन्म ले। उनकी तपस्या से प्रसन्न देवी दुर्गा ने उनसे कहा- हे महर्षि! हम आपकी सच्ची आराधना से प्रसन्न है और आपकी यह कामना शीघ्र पूर्ण होगी। ऋषि देवी से वरदान पाकर बेहद प्रसन्न हुए। समयोपरान्त माँ भगवती ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया। ऋषी कात्यायन के घर देवी का पुत्री रूप में जन्म लेने के कारण ही इनका नाम कात्यायनी हुआ।
एक और कथानुसार जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बढ़ता गया और अपने चरम पर आ गया तब भगवान् ब्रह्मा, विष्णु, महेश त्रिदेवों ने अपनी-अपनी शक्ति को एक जगह समाहित किया। अर्थात महिषासुर के सर्वनाश हेतु एक देवीको उत्पन्न किया। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इस देवी की पूजा की। इस कारण से यह कात्यायनी कहलायीं।
देवी कात्यायनी की शक्ति–
नवरात्रि के षष्ठम दिवस साधक का मन आज्ञा चक्र में अवस्थित होता है। इनकी चार भुजाएँ है।
माँ के दो भुजाओं में क्रमशः कमल और तलवार सुशोभित है। एक भुजा वर मुद्रा और दूसरी भुजा अभय मुद्रा में है। इनका वाहन सिंह है। गोपियों ने श्रीकृष्ण की प्राप्ति के लिए इनकी पूजा और आराधना की थी। इसी कारण ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं। जो भी स्त्री योग्य और मनचाहा पति चाहती हो तो देवी के इस स्वरूप की आराधना कर इन्हें प्रसन्न करना चाहिए इनकी कृपा से शीघ्र मनचाहा पति प्राप्त होता है। अगर कुंडली में विवाह के योग न हों तो भी इनकी आराधना से विवाह हो जाता है। देवी के आराधना से भक्तो के सकल मनोरथ पूर्ण होते हैं। इनकी पूजा से रोग, शोक, संताप, भय आदि का नाश होता है।
देवी कात्यायनी को प्रिय–
देवी कात्यायनी को लाल अथवा पीले रंग पसन्द हैं। देवी के पूजन में पीले अथवा लाल फूल अर्पित करना चाहिए। शहद देवी को अत्यंत प्रिय है इसलिए कात्यायनी माँ को भोग में विशेष रूप से शहद अर्पित करना चाहिए।
कात्यायनी स्तोत्र–
!! ध्यान !!
वन्दे वाञ्छित मनोरथार्थ चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहारूढा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्विनीम्॥
स्वर्णवर्णा आज्ञाचक्र स्थिताम् षष्ठम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम्॥
!! स्तोत्र !!
कञ्चनाभां वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखी शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोऽस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालङ्कार भूषिताम्।
सिंहस्थिताम् पद्महस्तां कात्यायनसुते नमोऽस्तुते॥
परमानन्दमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, कात्यायनसुते नमोऽस्तुते॥
विश्वकर्ती, विश्वभर्ती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।
विश्वाचिन्ता, विश्वातीता कात्यायनसुते नमोऽस्तुते॥
कां बीजा, कां जपानन्दकां बीज जप तोषिते।
कां कां बीज जपदासक्ताकां कां सन्तुता॥
कांकारहर्षिणीकां धनदाधनमासना।
कां बीज जपकारिणीकां बीज तप मानसा॥
कां कारिणी कां मन्त्रपूजिताकां बीज धारिणी।
कां कीं कूंकै क: ठ: छ: स्वाहारूपिणी॥
देवी कात्यायनी का कवच मंत्र–
कात्यायनौमुख पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयम् पातु जया भगमालिनी॥
राजीव नन्दन मिश्र