मुख्यपृष्ठधर्म विशेषनवरात्रि विशेष : देवी का चतुर्थ स्वरूप कूष्माण्डा

नवरात्रि विशेष : देवी का चतुर्थ स्वरूप कूष्माण्डा

नवरात्रि का आज चतुर्थ दिवस है। आज के दिन देवी के कूष्माण्डा स्वरूप की पूजन की जाती है। समस्त वातावरण देवी के मन्त्र- भजन से गूँजीत हो रहा है। क्या बच्चे और क्या बूढ़े सभी में नव उत्साह का संचार व्यपात है। आश्चर्य की बात यह है कि कई श्रद्धालु बिना अन्न-जल ग्रहण किये इस व्रत को कर रहे है। जहाँ एक ओर बिना भोजन-पानी के एक दिन रह पाना मुश्किल हो जाता है वही श्रद्धालु नव दिन अन्न-फल यहाँ तक कि जल भी त्याग कर पूजन में लीन है। कई भक्त अपने छाती पर कलश रखकर माँ की आराधना कर रहे है। यह कैसे संभव हो पाता है ये तो बस माँ ही जाने। परन्तु यह स्पष्ट है कि माँ की कृपा से भक्त इसे सम्भव बना लेते है। भक्तजन नव दिन के व्रत में पाठ, भजन व कीर्तन में रमे हुए है। इसी क्रम में वे आज देवी कूष्माण्डा का पूजन व आराधना करेंगे। आपका लोकप्रिय समाचार-पत्र नवरात्रि के प्रथम दिन से ही विशेष रूप से नव रूपों के ध्यानादि के बारे में नवरात्रि-विशेष स्तम्भ प्रकाशित कर रहा है। इसी क्रम में आज पढिये देवी कूष्माण्डा के स्वरूपादि के बारे में।

ध्यान मन्त्र:-
सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे।।

देवी कूष्माण्डा की कथा —
जब सृष्टिका अस्तित्व नहीं था, चारों ओर अन्धकार ही अन्धकार परिव्याप्त था, तब इन्हीं देवी ने अपने ‘ईषत्’ हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी। इसी कारण इस स्वरूप का नाम कूष्माण्डा पड़ा। इन्हें कुष्मांड अर्थात कुम्हड़े (कोहड़े) की बलि अत्यंत प्रिय है। इस कारण भी इन्हें कूष्माण्डा कहा जाता है।
ब्रह्मांड रचने के बाद प्रकाश लाना भी इन्ही की कृपा का फल है इसलिए इनका निवास स्थान सूर्यमंडल के भीतर अर्थात हिये सूर्यलोक है। यहाँ निवास की क्षमता और शक्ति केवल देवी कूष्माण्डा में ही है। इनके शरीर की कान्ति और प्रभा भी सूर्य के समान ही देदीप्यमान है।
देवी की आठ भुजाएं हैं। इसलिए इन्हें अष्टभुजा नाम से भी जाना जाता है। इन्होंने सात हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा धारण किया हैं।अष्टम हाथ में सभी धन, धान्य एवं सिद्धियों  को देने वाली जप माला है। देवी कूष्माण्डा का वाहन सिंह है।

देवी कूष्माण्डा की शक्ति–
इस दिन साधक का मन ‘अनाहत’ चक्र में अवस्थित होता है। कूष्माण्डा देवी अनाहत चक्र को नियंत्रित करती हैं।  जो व्यक्ति शांत और संयम भाव से माँ कूष्माण्डा की पूजा तथा उपासना करता है उसके सभी दुःख शीघ्र ही दूर हो होते हैं। देवी कूष्माण्डा की आराधना करने से भक्तों के सभी रोग एवं दुःख-शोक का नाश हो जाता है। इसके अलावा माँ की कृपा से आयु, यश, बल और स्वास्थ्य समृद्धि का आशीष प्राप्त होता है। धन दौलत की समस्या समाप्त हो जाता है।संतान की इच्छा रखने वाले लोगों को एवं गृहस्त जीवन बिताने वाले लोगों को देवी के इस स्वरूप की पूजा आराधना करनी चाहिए।
देवी कूष्माण्डा के विधि-विधान से पूजा करने वाले भक्त को कम समय में ही कृपा का सूक्ष्म भाव अनुभव होने लगता है।
पौराणिक मान्यतानुसार स्थिर और पवित्र मन से नवरात्रि के चौथे दिन कूष्माण्डा की पूजा-आराधना करने से पूजा करने वाले को सुगमता से परम पद प्राप्त होता है।

देवी कूष्माण्डा को प्रिय–
माँ कूष्माण्डा को लाल रंग प्रिय है। इसलिए पूजा में देवी को लाल रंग के फूल जैसे गुड़हल, लाल गुलाब आदि अर्पित करना चाहिए।
मैया कूष्माण्डा को पूजा के समय मेवे का दूध में बना खीर, हलवा, दही का भोग लगाना उत्तम है। मालपुआ का भोग लगाने से बुद्धि में वृद्धि होती है इसके साथ निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता है। इन्हें भोग में मौसमी फल अर्पित करना चाहिये।पूजा के समय देवी कूष्माण्डा को सफेद कुम्हड़े की बलि देने से अत्यन्त प्रसन्न होती हैं। ऐसी धार्मिक मान्यता है। साबुत कुम्हड़ा न मिल पाए तो माँ को पेठे का भी भोग अर्पित किया जा सकता है।

कूष्माण्डा कवच

हंसरै में शिर पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम्।
हसलकरीं नेत्रेच, हसरौश्च ललाटकम्॥
कौमारी पातु सर्वगात्रे, वाराही उत्तरे तथा,
पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम।
दिग्विदिक्षु सर्वत्रेव कूं बीजम् सर्वदावतु॥

कूष्माण्डा स्तोत्र–
!! ध्यान !!
वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढा अष्टभुजा कुष्माण्डा यशस्वनीम्॥
भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु चाप, बाण, पदमसुधाकलश चक्र गदा जपवटीधराम्॥
पटाम्बर परिधानां कमनीया कृदुहगस्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर हार केयूर किंकिण रत्‍‌नकुण्डल मण्डिताम्।
प्रफुल्ल वदनां नारू चिकुकां कांत कपोलां तुंग कूचाम्।
कोलांगी स्मेरमुखीं क्षीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम् ॥

!! स्तोत्र !!
दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दारिद्रादि विनाशिनीम्।
जयंदा धनदां कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जगन्माता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुंदरी त्वंहि दु:ख शोक निवारिणाम्।
परमानंदमयी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥

✍️ राजीव नन्दन मिश्र

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