आज शारदीय नवरात्रि का तृतीय दिवस है। दो दिनों के पूजनोपरांत आज भक्तजन माँ के तृतीय स्वरुप का पूजन कर उन्हें प्रसन्न करेंगे। यह दिवस माता चन्द्रघण्टा को समर्पित है। एक तरफ श्रद्धालु माँ को प्रसन्न करने हेतु पूजन, जाप, कन्या भोजन कराने में मगन है तो वही दूसरी ओर देश भर के श्रद्धालु पूजा पंडालों में दिन-रात एक कर उसे सजाने में व्यस्त है। सभी भक्तों के मन में एक अलग उत्साह एवं उमंग देखने को मिल रहा है। हर्ष व उल्लास के महानतम उत्सव नवरात्रि के अलग-अलग दिवस क्रमशः देवी के अलग स्वरूप आदि के बारे में आप पढ़ रहे है। इसी क्रम में आज पढ़िए देवी चन्द्रघण्टा के बारे में।
ध्यान मन्त्र:-
पिण्डजप्रवरारुढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता। प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता।।
नवरात्रि के तीसरे दिन देवी चन्द्रघण्टा का पूजन एवं अराधना किया जाता है। इनके मस्तक अर्थात ललाट पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र सुशोभित हो रहा है इसी कारण से इन्हें चन्द्रघण्टा कहा जाता है। इनका शरीर स्वर्ण के समान अत्यन्त चमकीला है। माँ के दस हाथ है। दसों हाथ अस्त्र, कमल पुष्प, कमण्डल खड्गादि से सुशोभित हो रहे है। सिंह पर सवार देवी चन्द्रघण्टा असुरों के संहार हेतु युद्ध के लिए सदैव तत्पर रहती है। वह अपने भक्तों की रक्षा एवं मनवांछित फल देने के लिए भी सदा तत्पर रहती है।
माँ चन्द्रघण्टा श्रद्धालु भक्तों की भय पीड़ा व दुःखों को मिटाने वाली है। भक्त जनों के मनोरथ को पूर्ण करने वाली है। माँ भयंकर दैत्य सेनाओं का संहार करके देवताओं को उनका भाग दिलाने वाली है। भक्तों को वांछित फल दिलाने वाली हैं। देवी सम्पूर्ण जगत की पीड़ा का नाश करने वाली है। जिससे समस्त शास्त्रों का ज्ञान होता है, वह मेधा शक्ति हैं। भव सागर से उतारने वाली है। इनका मुख मंद मुस्कान से सुशोभित, निर्मल, पूर्ण चन्द्रमा के बिम्ब का अनुकरण करने वाला और उत्तम सुवर्ण की मनोहर कान्ति से कमनीय है। असुर शक्ति इन्हें देख ही कांप उठती है। इनका स्वरूप सुन्दर, मोहक, अलौकिक कल्याणकारी एवं शांतिदायक है।
देवी चन्द्रघण्टा की कथा
पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार महिषासुर असुरों का राज अर्थात स्वामी था। अधर्म, अत्याचार ही उसका मुख्य उद्देश्य था। पूरे जगत पर वह एकक्षत्र राज चाहता था। वह देवराज इन्द्र का सिंहासन पाना चाहता था। देवराज इन्द्र आदि देव अपने सिंहासन की रक्षा हेतु महिषासुर से युद्ध करने लगे। परन्तु महिषासुर उन पर भारी पड़ रहा था। देवगण अपने पर हो रहे इस प्रकार का अत्याचार देख परेशान हो गए और इस समस्या से निकलने का उपाय जानने के लिए त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास पहुंचे। देवताओं के मुख से महिषासुर के अत्याचार को जानकर तीनों देव अत्यंत क्रोधित हुए। उस क्रोध के कारण उनके मुख से ऊर्जा उत्पन्न हुई। इसी ऊर्जा से देवी का अवतरण हुआ।
देवी को शिवजी ने अपना त्रिशूल, भगवान विष्णुजी ने अपना चक्र प्रदान किया। वहीं ब्रह्माजी ने अपना कमंडल दिया। इस प्रकार सभी देवताओं ने देवी को कुछ-न-कुछ भेंट किया। जैसे इंद्रदेव से माँ भगवती को वज्र एवं ऐरावत हाथी मिला तो भगवान सूर्यदेव ने उन्हें अपना तेज भेंट किया।
सबसे आज्ञा पाकर देवी चन्द्रघण्टा महिषासुर के साथ युद्ध की और अन्ततः घण्टे की टंकार से उसका सर्वनाश कर सभी देवताओं एवं धर्म की रक्षा की।
देवी चन्द्रघण्टा की शक्ति
इस दिन साधक का मन ‘मणिपुर चक्र’ में स्थित होता है। चन्द्रघण्टा के स्पंदन से मनुष्य में स्पष्ट और उचित निर्णय की क्षमता पूर्ण चमक व धमक के साथ प्रकट होती है। दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है।
व्यक्ति में बौद्धिक क्षमता का विकास, स्वयं पर विश्वास व ज्ञान के प्रकाश का संचार होता है। देवी के कृपा से समस्त पाप और बाधाएँ शीघ्र दूर हो जाते हैं। देवी का ध्यान इहलोक एवं परलोक दोनों के लिए कल्याणकारी एवं सद्गति देने वाला है। इनके कृपा से साधक के जीवन में किसी चीज की कमी नहीं रह जाती है। इनका उपासक सिंह की तरह पराक्रमी होता है और सभी प्रकार के भय से दूर हो जाता है।
देवी चन्द्रघण्टा को प्रिय —
देवी को लाल वर्ण यानी लाल रंग पसन्द है। इसलिए माँ को लाल पुष्प चढ़ाना चाहिए। गुड़हल का पुष्प देवी को अर्पित करना चाहिए। देवी को सफेद कमल का पुष्प भी अर्पित करना लाभकारी है। रक्त चन्दन और लाल चुनरी समर्पित करना भी उत्तम है। पूजा में दूध या दूध से बनी चीजों का भोग लगाना चाहिए। लाल सेव तथा शहद का भी भोग लगाया जा सकता है। भूरे रंग के कपड़े को पहनकर देवी का पूजन करना उत्तम है।
चन्द्रघण्टा स्तोत्र–
!! ध्यान !!
वन्दे वाच्छित लाभाय चन्द्रर्घकृत शेखराम्।
सिंहारूढा दशभुजां चन्द्रघण्टा यशंस्वनीम्॥
कंचनाभां मणिपुर स्थितां तृतीयं दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खड्ग, गदा, त्रिशूल, चापशंर पद्म कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्यां नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर हार, केयूर, किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुग कुचाम्।
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटिं नितम्बनीम्॥
!! स्तोत्र !!
आपद्धद्धयी त्वंहि आधा शक्ति: शुभा पराम्।
अणिमादि सिद्धिदात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यीहम्॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्ट मंत्र स्वरूपणीम्।
धनदात्री आनंददात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्॥
नानारूपधारिणी इच्छामयी ऐश्वर्यदायनीम्।
सौभाग्यारोग्य दायिनी चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्॥
!! देवी चन्द्रघण्टा का कवच !!
रहस्यम् शृणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने।
श्री चन्द्रघण्टास्य कवचम् सर्वसिद्धिदायकम्॥
बिना न्यासम् बिना विनियोगम् बिना शापोध्दा बिना होमम्।
स्नानम् शौचादि नास्ति श्रद्धामात्रेण सिद्धिदाम॥
कुशिष्याम् कुटिलाय वञ्चकाय निन्दकाय च।
न दातव्यम् न दातव्यम् न दातव्यम् कदाचितम्॥
राजीव नन्दन मिश्र