नयन कथा

जब होता मन अधीर
नयन बहाते अविरल नीर
व्यथा सुनते, कहते रह न पाते
झर-झर आंसुओं की झड़ी लगाते
कभी यह चंचल नयन हो जाते गंभीर
सजल हो जाती नयनों की कोर।
जब होता साजन से विछोह
मन में होता ऊहापोह
हौले से पड़ती दस्तक द्वार पर
झिलमिलाने लगते नयनों के दीप।
कभी पुष्प पांखुरी बन जाते
नटखट पलकों से पिया रिझाते
काले कजरारे नयनों में
अपने पिया का प्यार छुपाते
जब होती हर्ष, उल्लास की अनुभूति
यही नयन हीरक सी आभा पाते।
सुखद, मुदित घड़ियों में भी
क्यों सजीले हो जाते नयन।
कभी हिरणी के नयनों सम
निरीह, कोमल शांत भाव दर्शाते
सम्मान पर होता वार जब
क्रोधित अग्नि तीर चलाते।
यही नयन बन जाते कभी हिम शिला
तरल अश्कों को बर्फ बनाते
भक्ति साधना में स्वयं मुंद जाते नयन
तब मन का दर्पण बन जाते।
-बेला विरदी

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