प्रीत की सुधा

आज नैनों की सुधा है, देख छलकाती प्रिया
प्राण के रस का कलश है, आज बरसाती प्रिया।
नैन पंकज पांखुरी से, केश काली ज्यों घटा
चांदनी भी सामने है, ले रही आंचल हटा।
चंद्रिका सी उर लुभाती, प्रीत बरसाती प्रिया।
आज घर के आंगना है, दीप जलवाती प्रिया ।
प्रात: उषा की किरण मुख चूमती जब भी पड़े
जगमगाए नभ हृदय का नैन में हीरे जड़े।
बर्फ की ठण्डी शिला है, देख पिघलाती प्रिया।
और सावन की मधुर सी, बूंद सी आती प्रिया।
-डॉ. कनक लता तिवारी

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