सामना संवाददाता / पटना
‘राजनीति में पशुपति कुमार पारस को बहुत कुछ जल्दी मिल गया। उतनी ही जल्दी उनके हाथों से फिसल भी गया। पशुपति कुमार पारस राजनीति में सावधानी के साथ कदम उठाने के लिए नहीं जाने जाएंगे। अब पशुपति कुमार पारस को भले पीएम मोदी और सीएम नीतीश पर भरोसा न हो, लेकिन उन्होंने जो किया है, उसी की सजा पा रहे हैं। बिहार के राजनीतिक मामलों के जानकार का यही मानना है। पशुपति कुमार पारस भले उम्र में बड़े हों, लेकिन उन्हें अपने भतीजे चिराग से सियासत का पाठ पढ़ना चाहिए।
एक व्हीलर रोड से राजनीतिक ठिकाना हटने के बाद रालोजपा नेता पशुपति कुमार पारस ने नया सियासी ठिकाना ढूंढ़ लिया है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, पारस इन दिनों काफी दुखी हैं। राजनीतिक रूप से परेशान हैं। अब वे किसी पर भरोसा नहीं करेंगे। पशुपति कुमार पारस के बारे में खबर है कि वे आगामी विधानसभा चुनाव में ‘अकेला चलो’ की नीति पर काम करेंगे। हालांकि, सवाल सबसे बड़ा है कि बिहार में दलित वोटों में से कितने वोट अपने हिस्से में कर पाएंगे। पशुपति को इस बार लोकसभा चुनाव के दौरान भी एनडीए में एक भी सीट नहीं मिली थी। उसके बाद भी वे एनडीए में बने रहे। अब उनके दल का दफ्तर भी झटक लिया गया। पशुपति कुमार पारस को लगातार झटके पर झटका ही मिला है। शायद इसलिए वे मन ही मन गुनगुना रहे हैं कि अब उन्हें किसी पर भरोसा नहीं है। राजनीतिक सूत्रों ने बताया कि पशुपति कुमार पारस कुछ बड़ा प्लान कर रहे हैं। उन्हें इसके लिए यदि मुकेश सहनी और बाकी दलित नेताओं को साथ में करना पड़ा तो भी करेंगे, लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव में खेला जरूर करेंगे।