मुख्यपृष्ठनमस्ते सामनापाठकों की नये साल की कविताएं : नया साल आया

पाठकों की नये साल की कविताएं : नया साल आया

गया साल जाकर हमें है बताया।
नया साल आया-नया साल आया।।
मन में हमारे तरंगें उठी हैं।
खुशियों से भरने नया साल आया।।
आजाद भारत बनेगा हमारा।
यही बात कहने नया साल आया।।
नफरत हटेगा मुहब्बत खिलेगा।
उम्मीदों भरा यह नया साल आया।।
लगता है अब की सवेरे-सवेरे ।
मौसम बदलने नया साल आया।।
सूरज की लाली ने संकेत दे दी।
अंधेरा मिटाने नया साल आया।।
सपना हमारा जो टूटा हुआ है।
उसी को जगाने नया साल आया।।
जो कुछ गलत हो रहा है यहां पर।
उसी को हटाने नया साल आया।।
सपनों की दुनिया में उत्साह भरने।
चमकता हुआ यह नया साल आया।।
विजय का महाभाव लेकर यहां पर।
निराशा से लड़ने नया साल आया।।
गया साल जाकर हमें है बताया।
नया साल आया नया साल आया।।
-अन्वेषी

महकें हर नवभोर पर, सुंदर-सुरभित फूल

बने विजेता वह सदा, ऐसा मुझे यक़ीन।
आंखों में आकाश हो, पांवों तले जमीन॥
तू भी पाएगा कभी, फूलों की सौगात।
धुन अपनी मत छोड़ना, सुधरेंगे हालात॥
बीते कल को भूलकर, चुग डालें सब शूल।
महकें हर नवभोर पर, सुंदर-सुरभित फूल॥
तूफानों से मत डरो, कर लो पैनी धार।
नाविक बैठे घाट पर, कब उतरे हैं पार॥
छाले पांवों में पड़े, मान न लेना हार।
काेटों में ही है छुपा, फूलों का उपहार॥
भंवर सभी जो भूलकर, ले ताकत पहचान।
पार करे मझदार वो, सपनों का जलयान॥
तरकश में हो हौंसला, कोशिश के हो तीर।
साथ जुड़ी उम्मीद हो, दे पर्वत को चीर॥
नए दौर में हम करें, फिर से नया प्रयास।
शब्द कलम से जो लिखें, बन जाए इतिहास॥
आसमान को चीरकर, भरते वही उड़ान।
जवां हौसलों में सदा, होती जिनके जान॥
उठो चलो, आगे बढ़ो, भूलो दुःख की बात।
आशाओं के रंग से, भर लो फिर जज्बात॥
छोड़े राह पहाड़ भी, नदियां मोड़ें धार।
छू लेती आकाश को, मन से उठी हुंकार॥
हंसकर सहते जो सदा, हर मौसम की मार।
उड़े वही आकाश में, अपने पंख पसार॥
हंसकर साथी गाइए, जीवन का ये गीत।
दुःख सरगम-सा जब लगे, मानो अपनी जीत॥
सुख-दुःख जीवन की रही, बहुत पुरानी रीत।
जी लें, जी भर जिंदगी, हार मिले या जीत॥
खुद से ही कोई यहां, बनता नहीं कबीर।
सहनी पड़ती हैं उसे, जाने कितनी पीर॥
-डॉ. सत्यवान सौरभ

करिए नव उत्कर्ष
मिटे सभी की दूरियां, रहे न अब तकरार।
नया साल जोड़े रहे, सभी दिलों के तार।।
बांट रहे शुभकामना, मंगल हो नववर्ष।
आनंद उत्कर्ष बढ़े, हर चेहरे हो हर्ष।।
माफ करो गलती सभी, रहे न मन पर धूल।
महक उठे सारी दिशा, खिले प्रेम के फूल।।
गर्वित होकर जिंदगी, लिखे अमर अभिलेख।
सौरभ ऐसी खींचिए, सुंदर जीवन रेख।।
छोटी सी है जिंदगी, बैर भुलाए मीत।
नई भोर का स्वागतम, प्रेम बढ़ाए प्रीत।।
माहौल हो सुख चैन का, खुश रहे परिवार।
सुभग बधाई मान्यवर, मेरी हो स्वीकार।।
खोल दीजिए राज सब, करिए नव उत्कर्ष।
चेतन अवचेतन खिले, सौरभ इस नववर्ष।।
आते जाते साल है, करना नहीं मलाल।
सौरभ एक दुआ करे, रहे सभी खुशहाल।।
हंसी-खुशी, सुख-शांति हो, खुशियां हो जीवंत।
मन की सूखी डाल पर, खिले सौरभ बसंत।।
-डॉ. सत्यवान सौरभ

आशा है नव साल की, सुखद बने पहचान॥
खिली-खिली हो जिंदगी, महक उठे अरमान।
आशा है नव साल की, सुखद बने पहचान॥
दर्द दुखों का अंत हो, विपदाएं हो दूर।
कोई भी न हो कहीं, रोने को मजबूर॥
छेड़ रही है प्यार की, मीठी-मीठी तान।
नए साल के पंख पर, ख़ुशबू भरे उड़ान॥
बीत गया ये साल तो, देकर सुख-दुःख मीत।
क्या पता? क्या है बुना? नई भोर ने गीत॥
माफ़ करे सब गलतियाँ, होकर मन के मीत।
मिटे सभी की वेदना, जुड़े प्यार की रीत॥
जो खोया वह सोचकर, होना नहीं उदास।
जब तक सांसें हैं मिलीं, रख खुशियों की आस॥
पिंजड़े के पंछी उड़े, करते हम बस शोक।
जाने वाला जाएगा, कौन सके है रोक॥
पथ के शूलों से डरे, यदि राही के पांव।
कैसे पहुंचेगा भला, वह प्रियतम के गांव॥
रुको नहीं चलते रहो, जीवन है संघर्ष।
नीलकंठ होकर जियो, विष तुम पियो सहर्ष॥
दुःख से मत भयभीत हो, रोने की क्या बात।
सदा रात के बाद ही, हंसता नया प्रभात॥
चमकेगा सूरज अभी, भागेगा अंधियार।
चलने से कटता सफर, चलना जीवन सार॥
कांटें बदले फूल में, महकेंगें घर-द्वार।
तपकर दुःख की आग में, हमको मिले निखार॥
-प्रियंका सौरभ

नए साल का सूर्योदय

पल-पल खेल निराले हो,
आंखों में सपने पाले हो।
नए साल का सूर्योदय यह,
खुशियों के लिए उजाले हो॥
मानवता का संदेश फैलाते,
मस्जिद और शिवाले हो।
नीर प्रेम का भरा हो सब में,
ऐसे सब के प्याले हो॥
होली जैसे रंग हो बिखरे,
दीपों की बारात सजी हो,
अंधियारे का नाम ना हो,
सबके पास उजाले हो॥
हो श्रद्धा और विश्वास सभी में,
नैतिक मूल्य पाले हो।
संस्कृति का करे सब पूजन,
संस्कारों के रखवाले हो॥
चौराहें न लुटे अस्मत,
दु: शासन न फिर बढ़ पाए,
भूख, गरीबी, आतंक मिटे,
न देश में धंधे काले हो॥
सच्चाई को मिले आजादी,
लगे झूठ पर ताले हो।
तन को कपड़ा, सिर को साया,
सबके पास निवाले हो॥
दर्द किसी को छू न पाए,
न किसी आंख से आंसू आए,
झोंपडिय़ों के आंगन में भी,
खुशियों की फैली डाले हो॥
‘जिएं और जीने दें’ सब
न चलते बरछी भाले हो।
हर दिल में हो भाईचारा
नाग न पलते काले हो॥
नगमों-सा हो जाए जीवन,
फूलों से भर जाए आंगन,
सुख ही सुख मिले सभी को,
एक दूजे को संभाले हो॥
-प्रियंका सौरभ

नूतन वर्ष

जाने कैसा माहौल है, जश्न हो ज्यों आज़ादी का?
संस्कृति अपनी पता नहीं, देख तमाशा बर्बादी का।
देख तमाशा बर्बादी का, मुख तो मेरा मौन है,
विचरण कर रही अपनी संस्कृति, नया साल यह कौन है?
नवीन है ना कोपल कोई, नई न कोई शुरुआत है,
पतझड़ जैसा मौसम ये, धुंधों की बरसात है।
तेज न है मुख मंडल पर,किरण की न तनिक आभा है,
शर शैय्या पर है लेटा हुआ, पुरखों ने जो दाबा है।
है कैसी ये अपनी क्षति, चिंतक इसका कौन है?
विचरण कर रही अपनी संस्कृति, नया साल यह कौन है?
सूना है प्रकृति का आंगन, इसमें कोई उमंग नहीं,
छुपे हुए हैं सब बंकर में, मौसम है ये कोई जंग नहीं,
रुक जाओ, थोड़ा ठहर जाओ, दिन भी वो अपना आएगा,
चीर धरा का कोख जब, नव पल्लव भी खिल जाएगा।
कूंकेगी कहीं कोयल, पीहू गाना गाएगी,
श्यामल अपने रंगों से, स्नेह सुधा बरसाएगी।
प्रथम तिथि वो चैत्र मास की,संस्मरण में ही घुल जाएगी,
आर्यवर्त की यह पावन भूमि, जब देव गान सुनाएगी।
– विशाल चौरसिया
आज़मगढ़, उत्तर प्रदेश

नववर्ष

नई उम्मीदें लिए हुए आ रहा नूतन नववर्ष।
हर्षोल्लास की मधुर तरंगे करती हृदय स्पर्श।
इस अवसर पर आओ मिलजुल खुशियां मनाएं।
नव वर्ष का स्वागत करें हम सब बाहें फैलाएं।
गुजरा हुआ साल चाहे कैसा भी रहा हो।
कितने उसमें गम मिले या विषाद रहा हो।
बीत रहा जो वर्ष उसके रंजो गम छोड़िए।
आने वाले नववर्ष के स्वागत की सोचिए।
ये वर्ष तो बीत रहा इसका मलाल क्या करना।
नववर्ष मंगलमय रहे बस इसकी दुआ करना।
नए साल से नई खुशियों की उम्मीदें हम करते हैं।
दुख दूर होकर खुशियां आएं यही प्रार्थना करते हैं।
सारे सपने हमारे पूरे हों इस आने वाले साल में।
सफलताओं के तिलक लगे हम सबके भाल में।
नववर्ष में हम सबकी झोलियां खुशियों से भर जाए।
कामयाबी कदम चूमे और सब अपनी मंजिलें पाएं।।
-मुकेश कुमार सोनकर, “सोनकरजी”
रायपुर, छत्तीसगढ़

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