अस्त हुए क्षितिज पर दिनकर
अंधकार ने बाहें खोलीं!
गगन मंडल में शुरू हुई
तारा गण की आंख मिचौली।
निशाचर जीवों में हो रही हरकत
उल्लूक, चमगिदड़ झींगुरों ने रार मचाई
खग दुबक गये अपने-अपने नीड़।
जुगनूओं अपनी चमक दिखाई।
ताप मिट गया दिवस का
सिक्ता में शीतलता आई।
शांत समीर में हुई हलचल
बगिया से पुष्पों की महक चुराई।
चंदा चमके नभ में
सरोवर कुमोदनि ने ली अंगड़ाई।
जूही, चमेली, बेला फूले
रातरानी ने जादुई सुगंध छितराई।
रुपहली चांदनी की पहन साड़ी
अभिसारीका सी झूमती निशा आई।
-बेला विरदी