महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार अपने चरम पर पहुंच गया है। परंतु उत्तर भारतीय जन-मानस विगत कई वर्षों से अपनी राजनीतिक उपेक्षा से बेहद नाराज है, यह कहना है हिंदी भाषी विकास मंच का। मंच के अनुसार, संख्या की दृष्टि से देखें तो मुंबई तथा ठाणे जिले के आस-पास लगभग ३१ प्रतिशत उत्तर भारतीय समाज रहता है उस हिसाब से उनको किसी भी पार्टी द्वारा उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है। यह समाज केवल वोट बैंक बनकर रह गया है। खासकर भाजपा के लिए।
ठाणे जिले का विशेष उल्लेख करते हुए मंच ने विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि इस जिले में अठारह विधानसभा क्षेत्र हैं जिसमें से एनडीए ने एक भी उत्तर भारतीय को अपना उम्मीदवार नहीं बनाया है। इस कारण से समस्त उत्तर भारतीय समाज में निराशा और आक्रोश साफतौर पर देखा जा रहा है। अर्थात उसका असर मतदान पर पड़ना तय है।
मंच का दावा है कि ठाणे जिले में हिंदी भाषी मतदाताओं की संख्या अठारह लाख साठ हजार चार सौ नवासी है जो आबादी का छब्बीस प्रतिशत होता है। इसे विधानसभा के नजरिए से देखें तो प्रत्येक विधानसभा में करीब एक लाख तीन हजार उत्तर भारतीय मतदाता हैं जो हार और जीत को प्रभावित कर सकते हैं।
विज्ञप्ति में लिखा है कि २०१४ के पहले उत्तर भारतीय समाज परंपरागत रूप से पूरी तरह कांग्रेस पार्टी से जुड़ा हुआ था परंतु उसके बाद मोदी के नेतृत्व में बीजेपी के समर्थन में खड़ा हुआ। इस समाज को भरोसा था कि विकास के साथ उत्तर भारतीय समाज को भी राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिलेगा। परंतु वर्तमान परिस्थतियों को देखते हुए यह समाज अपने आपको ठगा हुआ महसूस कर रहा है और इसका एहसास आज के भाजपा नेतृत्व को शायद नहीं है।
मंच के अध्यक्ष हरिवंश सिंह लिखते हैं कि बीजेपी से विशेषकर प्रधानमंत्री मोदी जी पर इस समाज को बड़ा भरोसा था परंतु निराशा के सिवाय इस समाज को उनसे कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ। अगर अब भी केंद्र और प्रांतीय नेतृत्व ने उत्तर भारतीय समाज की उपेक्षा जारी रखी तो समाज दूसरा विकल्प चुनने के लिए स्वतंत्र होगा। कुछ तबके तो चुनाव के बहिष्कार करने के मूड में दिखाई दे रहे हैं। वे कहते हैं कि इसके पहले सभी सरकारों में उत्तर भारतीय समाज को मंत्रिमंडल में संतोष जनक प्रतिनिधित्व मिलता रहा था, जिसमें विधानसभा में इनकी भी आवाज गूंजती थी, लेकिन देवेंद्र फडणवीस सरकार में महज एक विधायक को राज्यमंत्री बनाकर खाना पूूर्ति करने की कोशिश की गई। आज की सरकार उत्तर भारतीयों के प्रतिनिधियों से चर्चा करने तक को समय नहीं देती।