मुख्यपृष्ठस्तंभउत्तर की बात : यूपी बीजेपी अध्यक्ष को इंडिया गठबंधन की चुनौती

उत्तर की बात : यूपी बीजेपी अध्यक्ष को इंडिया गठबंधन की चुनौती

रोहित माहेश्वरी
लखनऊ

देश की राजनीति में उत्तर प्रदेश की अ​हमियत किसी से छिपी नहीं है। ऐसे में यूपी के प्रमुख दलों में होने वाली छोटी से छोटी हलचल बड़ी खबर बन जाती है। देशभर की नजरें यूपी की राजनीति और राजनीतिक हलचलों पर हमेशा टिकी रहती हैं। इन दिनों यूपी में बीजेपी के अध्यक्ष पद को लेकर कयासों का दौर जारी है। वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे भूपेंद्र चौधरी का कार्यकाल समाप्त हो रहा है। संगठन की चुनावी प्रक्रिया के बाद नए साल पर प्रदेश बीजेपी को नया अध्यक्ष मिल जाएगा। ​प्रदेशभर में सदस्यता अभियान पार्टी पूरे जोर-शोर से चला चुकी है। अब बूथ कमेटी के गठन के बाद मंडल और फिर जिला अध्यक्षों का चुनाव होगा। इसके बाद प्रदेश अध्यक्ष के नाम पर मुहर लगेगी। पार्टी सूत्रों के अनुसार इस बार किसी ब्राह्मण, दलित या ओबीसी चेहरे पर दांव लगाया जा सकता है, वहीं अध्यक्ष चुनते समय बीजेपी ‘इंडिया’ गठबंधन की चुनौती को भी याद रखना भूलेगी नहीं।
बीजेपी राज्य सोशल इंजीनियरिंग की रणनीति पर काम कर रही है। भूपेंद्र चौधरी से पहले स्वतंत्र देव सिंह और केशव प्रसाद मौर्य यूपी प्रदेश अध्यक्ष थे। पार्टी सूत्रों के अनुसार, बीजेपी अध्यक्ष के लिए दलित चेहरे के तौर पर विद्यासागर सोनकर का नाम सबसे ज्यादा चर्चा में है। जौनपुर के सुखीपुर निवासी विद्यासागर पढ़ाई के दौरान ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े और फिर भाजपा के बूथ अध्यक्ष बने। वह अनुसूचित मोर्चे के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे। सभासद से शुरुआत करने वाले सोनकर १९९६ में सैदपुर सीट से सांसद चुने गए। हालांकि, इसके बाद भी उन्होंने लोकसभा और विधानसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नहीं नसीब हुई।
विजय सोनकर शास्त्री भाजपा के पुराने नेता हैं। वाराणसी निवासी सोनकर बीएचयू में पढ़ाई के समय से ही राजनीतिक गतिविधियों में शामिल रहे और १९९८ में सैदपुर सीट से सांसद भी निर्वाचित हुए। उनके बड़े भाई राजनाथ सोनकर भी सांसद रहे। विजय बाद में भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता और फिर भारत सरकार के एससी-एसटी आयोग के चेयरमैन भी रहे। उनका नाम भी रेस में शामिल है।
निषाद समाज से आने वाले हमीरपुर निवासी बाबूराम निषाद भाजपा के राज्यसभा सांसद हैं। बुंदेलखंड क्षेत्र में भाजपा नेतृत्व के करीबी माने जाने वाले बाबूराम छात्र जीवन से ही एबीवीपी और भाजयुमो के साथ जुड़े रहे। उमा भारती के सहयोगी रहे बाबूराम जिलाध्यक्ष से लेकर कानपुर-बुंदेलखंड के क्षेत्रीय अध्यक्ष तक के पद पर रहे। एक बार उन्होंने विधानसभा चुनाव भी लड़ा, लेकिन जीत नहीं हासिल हुई।
बरेली की आंवला सीट से ५ बार के विधायक और योगी सरकार में वैâबिनेट मंत्री धर्मपाल सिंह का नाम भी रेस में शामिल हैं। लोध राजपूत समुदाय से आने वाले धर्मपाल भाजपा के पुराने सिपाही हैं। वे कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह सरकार में भी मंत्री रहे। अभी वे यूपी के पशुधन एवं दुग्ध विकास वैâबिनेट मंत्री का प्रभार संभाल रहे हैं।
ब्राह्मण चेहरे के तौर पर आजमगढ़ निवासी विजय बहादुर पाठक दूसरी बार एमएलसी बने हैं। वे बीजेपी प्रदेश उपाध्यक्ष भी हैं। ब्राह्मण नेता विजय बहादुर फूलपुर क्षेत्र के मनियार गांव के रहने वाले हैं। छात्रसंघ से राजनीति की शुरुआत करने वाले पाठक फिर भाजपा युवा मोर्चा में पदाधिकारी रहे। संगठन में विजय बहादुर की मजबूत पकड़ है। वे आजमगढ़ ओलिंपिक एसोसिएशन के अध्यक्ष समेत विभिन्न पदों पर रह चुके हैं। ब्राह्मण चेहरे के तौर उत्तर प्रदेश के अमेठी निवासी गोविंद नारायण शुक्ल भी भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की रेस में शामिल हैं। वर्तमान में विधान परिषद सदस्य गोविंद को राज्य में पार्टी की तरफ से ब्राह्मणों को साधने के लिए ताज भी सौंपा जा सकता है। वे भाजपा के प्रदेश महासचिव भी हैं।
प्रदेश की राजनीति को करीब से जानने वालों के मुताबिक, भाजपा जातिगत समीकरण और सोशल इंजीनि​यरिंग के फॉर्मूले के तहत ही प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव करेगी। क्योंकि उसके सामने ‘इंडिया’ गठबंधन के मुख्य घटक समाजवादी पार्टी का पीडीए की चुनौती है। विश्लेषकों का यह भी मानना है कि जिस तरह लोकसभा चुनाव में ‘इंडिया’ गठबंधन ने अपनी ताकत दिखाई है। उसके मद्देनजर यह लगता है कि २०२७ के विधानसभा चुनाव में भाजपा को ‘इंडिया’ गठबंधन से कड़ी टक्कर मिलेगी। अगर लोकसभा वाला रुझान रहा तो भाजपा विपक्ष में बैठी दिखाई दे सकती है। बीजेपी उपचुनाव में मिली जीत के बाद भी जमीनी हकीकत से अनजान नहीं है। उसे इस बात का पूरा एहसास है। ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव करते समय उसके सामने ‘इंडिया’ गठबंधन की चुनौती मुंह बाए खड़ी रहेगी।
(लेखक स्तंभकार, सामाजिक, राजनीतिक मामलों के जानकार एवं स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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