सामना संवाददाता / मुंबई
पुणे के येरवडा स्थित क्षेत्रीय मनोरोग अस्पताल में मनोरोगियों के अंडरवियर से लेकर नहाने के पानी तक में भ्रष्टाचार का खुलासा हुआ है। इस मामले में नियुक्त जांच समिति ने करीब १० लाख रुपए की धोखाधड़ी का आरोप लगाया है। यह जानकारी विश्वसनीय सूत्रों ने दी।
स्वास्थ्य विभाग की जांच समिति ने रुपए की अनियमितता के लिए येरवडा के क्षेत्रीय मनोरोग अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक को दोषी ठहराया है। उन पर अस्पताल के बिलों को बढ़ाने सहित सरकारी धन के दुरुपयोग का आरोप लगाया गया है। समिति ने यह भी अनुशंसा की है कि यह राशि अधीक्षक समेत तत्कालीन सरकारी कर्मचारियों से वसूल की जाए और रिपोर्ट अंतिम कार्रवाई के लिए स्वास्थ्य आयुक्त के माध्यम से स्वास्थ्य सचिव को भेज दी गयी है। स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों का कहना है कि चूंकि विधानमंडल का सत्र चल रहा है, इसलिए अगले एक-दो दिनों में संबंधित अधिकारियों और कर्मचारियों को निलंबित कर विभागीय जांच के आदेश जारी किए जाएंगे।
पुणे क्षेत्रीय मनोरोग अस्पताल में वित्तीय अनियमितताओं की जांच करने के लिए स्वास्थ्य विभाग के सहायक निदेशक डॉ. प्रशांत वाडिकर के नेतृत्व में पांच सदस्यीय समिति नियुक्त की गई। इसके बाद कमेटी ने जांच कर अपनी रिपोर्ट स्वास्थ्य सेवा उपनिदेशक को सौंपी। इस रिपोर्ट में घोटालों को प्रस्तुत किया गया है और मनोरोग अस्पताल के अधीक्षक डॉ. सुनील पाटील पर आरोप लगा है। समिति ने कहा है कि पाटील ने २०१७ से अब तक अस्पताल में ५ करोड़ रुपए की वित्तीय गड़बड़ी की है और यह पैसा तत्कालीन प्रशासनिक अधिकारियों, कार्यालय अधीक्षकों और क्लर्कों से वसूला जाना चाहिए। डॉ. पवार द्वारा यह रिपोर्ट कमिश्नर को सौंपे जाने के बाद अब यह रिपोर्ट सचिव के पास कार्रवाई के लिए लंबित है।
इस मनोरोग अस्पताल में कुल २,५०० बिस्तर हैं और हर साल २५,००० से अधिक मरीजों का इलाज बाह्य रोगी विभाग में किया जाता है, जबकि लगभग २५,००० मरीज भर्ती होते हैं। जब मानसिक रोगियों को उचित सुविधाओं और इलाज की सख्त जरूरत होती है, तब उन्हें बुनियादी जरूरतों से लेकर कपड़ों तक से वंचित रखा जाए और गर्म पानी तक न मिल पाए तो यह गंभीर बात है।