मुख्यपृष्ठसंपादकीयअब ‘कैग' याद आया!

अब ‘कैग’ याद आया!

मुख्यमंत्री फडणवीस ने कहा है कि ‘लाडली बहन’ योजना जारी रहेगी, लेकिन मानदंडों पर खरा उतरने वाली महिलाओं को ही योजना का लाभ दिया जाएगा। फडणवीस को इस बात का भी आत्मज्ञान हो गया है कि अगर ऐसा नहीं करेंगे तो कल ‘कैग’ उनसे सवाल करेगी। इस बात से असहमत होने का कोई कारण नहीं है कि सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए सभी नियम एवं मापदंड पूरे किए जाने चाहिए और योग्य लाभार्थियों को ही योजना का लाभ दिया जाना चाहिए। लेकिन असल मसला यह है कि हुक्मरानों को यह अक्ल इतनी देर से आई। जब विधानसभा चुनावों से पहले ‘लाडली बहन’ योजना जल्दबाजी में लागू की गई तो यह अक्ल कहां चली गई थी? इस अक्ल को शासकों ने छुपाए रखा था क्योंकि वे महाराष्ट्र की ‘लाडली बहनों’ के वोट चाहते थे। विधानसभा चुनाव में राजनीतिक लाभ मिलने और दोबारा सत्ता में आने के बाद उन्हें नियम-कायदों की हिचकी लगी है। चुनाव से पहले जिस योजना को उन्होंने सिर पर सजा रखा था, उस योजना को सरकार बनने के बाद से ही नियम-कानून की आड़ में रौंदने का प्रयास कर रहे हैं। इसकी वजह से मापदंडों का उल्लंघन करने और योजना का ‘गैर फायदा’ आदि लेनेवाली तकरीबन ५ लाख लाडली बहनें
सरकार के ‘रिकॉर्ड’ में
आ गई हैं। सरकार ने बड़ा दिलदार बनते हुए कहा कि लाडली बहनों से पहले दिए गए ९,००० रुपए वसूल नहीं किए जाएंगे, लेकिन दूसरी तरफ उन्हें अयोग्य ठहराकर बाहर कर दिया। इन अयोग्य बहनों की संख्या बढ़कर नौ लाख हो गई है। जिस तरह से मुख्यमंत्री अब इस योजना की बात कर रहे हैं, उससे लगता है कि सरकार इस संख्या को काफी कम करना चाहती है। इन्हीं लोगों ने कहा था कि सत्ता में आते ही बहनों को २,१०० रुपए देंगे। अब यह संभव नहीं दिखता है इसलिए इसे वापस ले लिया गया। राज्य में सभी योजनाओं का फंड ६० हजार करोड़ है। अकेले लाडली बहन योजना की हिस्सेदारी ४५ हजार करोड़ है। फडणवीस ने यह भी कहा है कि इससे राज्य के बजट पर दबाव पड़ रहा है। यह बढ़ोतरी का खयाल अब सरकार के सत्ता में आने के बाद आया है। विधानसभा चुनाव से पहले मापदंड आदि खूंटी पर टांग दिए गए क्योंकि लाडली बहनों के वोट चाहिए थे। अब राजनीतिक लाभ का उद्देश्य पूरा हो गया है। लाडली बहनों की राजनीतिक जरूरत खत्म हो गई है। इसलिए ४५ हजार करोड़ का टेंशन, नियम-कायदों, लाभार्थी महिलाओं के सख्त सत्यापन और ‘कैग’ की जवाबदेही ऐसे तमाम ‘कर्तव्यों’ का ज्ञान हुक्मरानों को हुआ है। एक तरफ कहा जा रहा है कि ‘लाडली बहन’ योजना बंद नहीं की जाएगी और दूसरी ओर लाभार्थी बहनों की संख्या पर
मानदंड और सत्यापन का ‘चॉपर’
चलाकर दोहरा खेल शुरू हो गया है। जब योजना की घोषणा हुई तब भी हुक्मरान इस बात से वाकिफ थे कि महिला वर्ग के वोटों के लिए खेला गया लाडली बहन योजना का जुआ उन्हें भारी पड़ेगा। विधानसभा चुनाव के ‘जुगाड़’ के चलते उस वक्त सत्ता में मौजूद तीनों पार्टियां गांधीजी के तीन बंदर बनकर रह गर्इं। अब जब वोट का खेल खत्म हो गया है, तो इस मंडली को वित्तीय बोझ, मानदंड, सत्यापन और ‘कैग’ आदि का आत्म साक्षात्कार हो गया है। कैग का कारण बताकर और कोर्ट की ढाल आगे बढ़ाकर ‘लाडली बहन’ योजना कल बंद भी हो जाएगी। बहनों के वोट ले लिए गए। इसकी कीमत १५०० रुपए नकद चुका दी गई है। इसी में संतुष्ट रहो बहनों! लाडली बहनों के प्रति प्रेम सिर्फ विधानसभा चुनाव तक ही सीमित था, सत्ताधीशों के पेट में छिपी यह सच्चाई मुख्यमंत्री के मुंह से बाहर आ गई है। मुख्यमंत्री महोदय, अब आप कुछ भी कहें, आपको ‘कैग’ को जवाब देना होगा। क्योंकि अब तो आपने खुद मान लिया है कि जब योजना की घोषणा हुई और तुरंत लागू की गई तो हमने इसकी पड़ताल नहीं की। तो आप ‘कैग’ के प्रति जवाबदेह हैं ही, लेकिन सत्ता मिलने के बाद ही आपको ‘कैग” की याद क्यों आई? यह सवाल उन लाडली बहनों के मन में भी उठा है, जिन्हें आपने अयोग्य घोषित कर दिया है। आपके पास उसका क्या जवाब है?

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