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अब समंदर में नहीं चलेगी ड्रैगन की दादागीरी!..चीन का दम घोंटने की तैयारी कर रहे छोटे देश…इंडोनेशिया, फिलीपींस ले रहा भारत की मदद

सामना संवाददाता / नई दिल्ली

दुनिया में जंग या तो जमीन को लेकर है या फिर अर्थव्यवस्था को लेकर है। जिसकी अर्थव्यवस्था जितनी मजबूत होगी, उसकी ताकत भी उतनी ही बड़ी होगी। इस होड़ में चीन बड़ी तेजी से आगे बढ़ रहा है। अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लिए उसे चाहिए एनर्जी, यहीं से शुरू होती है समंदर में उसकी दादागीरी। अब चीन की दादागीरीr पर लगाम लगाने के लिए छोटे देश भी खुद को ताकतवर बनाने में जुटे हैं। इसके लिए वह भारत की मदद ले रहे हैं। पहले फिलीपींस ने ब्रह्मोस लेकर चीन की धमक कम करने के लिए तैयारी की, अब इंडोनेशिया भी तैयारी कर रहा है। साल २०२० सें ही भारत और इंडोनेशिया के बीच ब्रह्मोस की डील पर बातचीत चल रही है। सूत्रों की मानें तो अब यह डील अपने एडवांस्ड फेज में है। सोमवार को ही इंडोनेशिया के नौसेना प्रमुख एडमिरल मुहम्मद ने ब्रह्मोस एयरोस्पेस के हेडक्वार्टर का दौरा किया। यहां उन्हें ब्रह्मोस की खासियत के बारे में जानकारी दी गई।
समुद्र में रोकेगा ग्रेट वॉल इंडिया
चीन को इस बात का डर है कि अगर उनके समंदर से गुजरने वाले व्यापार और एनर्जी ट्रेड रुक गया तो उसकी कमर टूट जाएगी। भारत ने इसकी तैयारी भी कर ली है। पहले ही अंडमान निकोबार में नौसेना बेस मौजूद है। पिछले साल ही लक्षद्वीप के मिनिकॉय द्वीप पर नौसेना का जटायु नेवल बेस को स्थापित किया। सुपरसोनिक मिसाइल ब्रह्मोस के लैंड वर्जन कोस्टल बैटरी को भी तैनात किया जाएगा। मिनिकॉय का आईएनएस जटायु नेवल बेस ९ डिग्री चैनल के नार्थ में है। यह दुनिया का सबसे व्यस्त शिपिंग रूट है। ८० से ९० फीसदी ट्रेड इस रूट से होकर गुजरता है।
भारत के कब्जे में ग्लोबल शिपिंग लाइफ लाइन
इस ट्रेड रूट को ग्लोबल शिपिंग की लाइफ लाइन भी कहा जाता है। हर मिनट तकरीबन १२ मर्चेंट शिप यहां से गुजरते हैं। २४ घंटे में यहां से १५,००० से १७,००० शिप मूव करते हैं। यह रूट यूरोप, मिडिल ईस्ट, वेस्ट एशिया को साउथ ईस्ट एशिया के सुदूर देशों से जोड़ता है। ओमान की खाड़ी और अदन की खाड़ी की तरफ से आने वाले ट्रेड सिंगापुर, मलेशिया, ऑस्ट्रेलिया और चीन तक जाते हैं। खास बात यह है कि चीन का ८० फीसदी ट्रेड इसी ९ डिग्री चैनल से होकर गुजरता है। लक्षद्वीप के बाद यह ट्रैफिक १० डिग्री चैनल अंदमान निकोबार के करीब से होकर गुजरता है। २०-३० साल पहले अंडमान निकोबार को नौसेना बेस के हिसाब से विकसित किया था। अब अंडमान निकोबार समुद्र में चीन के लिए ग्रेट वॉल इंडिया के तौर पर तैनात है।
चीन की बढ़ने लगीं धड़कनें
चीन की इंडस्ट्री को ठप करने के लिए सबसे आसान सा तरीका है कि समंदर से गुजरने वाला उसका एनर्जी ट्रेड को बाधित कर दिया जाए। यह ट्रेड रुक गया तो चीन की इंडस्ट्री भी रुक जाएगी। इसकी सबसे मुफीद जगह है इंडोनेशिया के पास। साउथ चाइना सी के लिए यहां चार एंट्री एग्जिट प्वाइंट है। मलक्का स्ट्रेट, सुंडा स्ट्रेट, लोमबूक स्ट्रेट और ओमबई स्ट्रेट है। हिंद महासागर क्षेत्र से होकर चीन जाने वाले जहाज इसी इलाके से होकर गुजरते हैं। अगर इस जगह एंटी शिप सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस की तैनाती हो गई तो चीन की सांसें चोक हो सकती हैं। इंडोनेशिया जिस ब्रह्मोस को लेने का मन बना रहा है, वह लैंड बेस्ड कोस्टल बैटरी हो सकती है। चूंकि भारत के पास तो सी वर्जन भी है, लेकिन इंडोनेशिया के पास इतने बड़े जंगी जहाज नहीं हंै जिसमें यह फिट किए जा सके। अगर फिट भी करना चाहता है तो जहाज को पूरी तरह से बदलना होगा। आसानी से मोबेलाइज और ऑपरेट होने वाले लैंड बेस्ड ब्रह्मोस ही सबसे मुफीद माना जा रहा है।
फिलीपींस भी है तैयार
फिलीपींस के साथ चीन के रिश्ते २००९ के बाद से और खराब हो गए। चीन ने अपना नया नक्शा जारी किया था। इसमें साउथ चाइना सी में ९ डैश लाइन लगाकर अपना इलाका बता दिया। इसके तहत फिलीपींस के द्वीपों और ईईजेड का हिस्सा भी आ गए। फिलीपींस, वियतनाम, ताइवान और मलेशिया के समुद्री क्षेत्र पर कब्जे का संकट बढ़ गया है। ऐसे में चीन को काउंटर करने के लिए भारतीय ब्रह्मोस एक अचूक हथियार है। फिलीपींस की नौसेना को भारत ने इस श्योर बेस्ड एंटी शिप मिसाइल सिस्टम की खरीद की है। ब्रह्मोस मिसाइल बैटरी फिलीपींस मरीन कोर के कोस्टल डिफेंस रेजिमेंट आपरेट कर रही है। ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल मारक क्षमता २९० किलोमीटर है। फिलीपींस के एक्सक्लूसिव इकॉनोमिक जोन जो तट से २०० नॉटिकल मील यानी की ३७० किलोमीटर तक का इलाका हैं। इसके अंदर आने वाले किसी भी चीनी जंगी जहाज को आसानी से निशाना बना सकता है।

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