सामना संवाददाता / नई दिल्ली
केंद्र में तीसरी बार सरकार बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उतावले हुए जा रहे हैं। इससे पहले कि एनडीए के घटक दल उनसे किनारा कर लें, भाजपा किसी भी सूरत में सरकार बना लेना चाहती है। राष्ट्रपति से सरकार बनाने का न्योता हासिल करके वो जल्द से जल्द सदन में बहुमत हासिल कर लेना चाहती है, पर ऐसा करना उसके लिए इतना आसान नहीं है, जितना नजर आ रहा है। इसलिए नई भाजपा के नए चाणक्य फिर से जोड़-तोड़ और फोड़ की नई नीति पर काम करने में जुट गए हैं और हर हाल में सरकार बनाने के लिए प्लान ‘ए’, ‘बी’ और ‘सी’ पर काम शुरू हो गया है।
१८वीं लोकसभा के लिए २९२ का आंकड़ा हासिल करने के बाद भी केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार आसानी से बनते नजर नहीं आ रही है। कल दिल्ली में दिनभर इसी के चर्चे चलते रहे। विपक्षी इंडिया ब्लॉक के घटक दलों का दावा था कि सरकार इंडिया की ही बनेगी, जबकि भाजपा के करीबी सूत्रों के पास चाणक्यगीरी की खुफिया जानकारियों का हवाला था। उनके दावों पर यकीन करें तो अमित शाह ने तीसरी बार केंद्र में सरकार बनाने के लिए प्लान ‘ए’, ‘बी’ और ‘सी’ बना लिया है, जिसमें प्लान ‘ए’ के तहत चंद्राबाबू नायडू और नीतिश कुमार जैसे एनडीए के बड़े नेताओं के साथ सुगमता से सरकार बनाने का एग्रीमेंट किया जाना है, उनके समक्ष बड़े ऑफर रखे जाने हैं।
जिसमें प्लान ‘ए’ के तहत चंद्राबाबू नायडू और नीतिश कुमार जैसे एनडीए के बड़े नेताओं के साथ सुगमता से सरकार बनाने का एग्रीमेंट किया जाना है, उनके समक्ष बड़े ऑफर रखे जाने हैं। यदि इससे बात नहीं बनी तो प्लान ‘बी’ के तहत ‘बैक स्टेब’ की रणनीति बनाई गई है। यह वही रणनीति है, जिससे अमित शाह ने महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी तोड़कर उनके जनप्रतिनिधियों को चुरा लिया था। इसी तर्ज पर वह नीतिश और नायडू की पीठ पर वार करके यानी बैक स्टेब की रणनीति बना चुके हैं। प्लान ‘सी’ प्लान ‘बी’ का ही विस्तारित हिस्सा है। जिसके तहत कान्सपरेसी करके जनता दल यूनाइटेड और तेलुगू देशम पार्टी का नाम और चिह्न चुराने की योजना है। ‘महाराष्ट्र का मॉडल’ बिहार और आंध्र प्रदेश में दोहराने की योजना है। यदि ऐसा होता है तो मोदी सरकार को २० से ३० अतिरिक्त सांसदों का निर्विरोध समर्थन हासिल हो सकता है। सूत्रों का दावा है कि अमित शाह इसी ‘कूट-नीति’ पर काम कर रहे हैं। हालांकि, कुछ अन्य सूत्र इस संभावना से इंकार करते हैं और तर्क देते हैं कि गुजरात लॉबी के ‘महाराष्ट्र मॉडल’ को लेकर नीतिश कुमार और नायडू सचेत हैं इसलिए दाल आसानी से गलने की संभावना नहीं है। मोदी ने यदि किसी तरह सरकार बना भी ली, तो वह अल्पकाल की ही सरकार होगी।