चलो तो सही

रजनी खिलने लगी चिरागों के तले
हम भी सिमटे रहे, परागों के तले
छोड़ देंगे जमाने की सारी ख़ुशी
दो कदम साथ मेरे, चलो तो सही !
बैठी हूं मैं यहां, इसी आस में
वक्त आएगा कब मेरे आगोश में
तन्हाईयां चांदनी, अब लगने लगी
शिखा की रौशनी, अब बरसने लगी
हम पिएंगे चांदनी, तुम चलो तो सही !
वक्त तो रोक कर हम खो जाएंगे
उजालों में कहीं , गुम हो जाएंगे
छोड़कर अपनी सारी, परछाइयां यहीं
वक्त के चोट की, सब निशानियां यहीं
चांद घर जाएंगे, तुम चलो तो सही
एक हो जाएगे, तुम चलो तो सही
एक हो जाएंगे, तुम चलो तो सही !
-वंदना मौर्या

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