श्रीकिशोर शाही
मुंबई
पश्चिम बंगाल के दक्षिण २४-परगना जिले की एक विशेष अदालत ने गत शुक्रवार को एक १० वर्षीय बच्ची के साथ बलात्कार और हत्या के दोषी १९ वर्षीय युवक को फांसी की सजा सुनाई है। इस मामले की खास बात यह रही कि अपराध के ६२ दिनों के भीतर पैâसला सुना दिया गया। बच्ची का शव गत ५ अक्टूबर को एक तालाब से बरामद हुआ था और आरोपी को उसी दिन गिरफ्तार कर लिया गया था। पश्चिम बंगाल की इस घटना ने दो दशक पहले एक ऐसी ही घटना की याद दिला दी, जिसमें आरोप साबित होने के बाद आरोपी को फांसी दे दी गई थी। उन दिनों वह मामला मीडिया की खूब सुर्खियों में था। तब टीवी न्यूज चैनलों के उभार का समय था। उनके लिए फांसी की सजा एक जबरदस्त न्यूज थी। सो निजी चैनलों पर रिपोटर्स बताया करते कि फांसी वैâसे दी जाती है। वह फांसी थी धनंजय चटर्जी की।
धनंजय चटर्जी एक निजी सुरक्षाकर्मी था और कोलकाता के एक हाउसिंग अपार्टमेंट में नौकरी करता था। दक्षिणी कोलकाता में वह अपार्टमेंट था। बच्ची इसी अपार्टमेंट के एक फ्लैट में अपने माता-पिता के साथ रहती थी। उन दिनों अदालती सुनवाई के दौरान जो मीडिया रिपोर्ट्स आई थीं, उसके अनुसार, धनंजय चटर्जी उस बच्ची पर बुरी नजर रखता था। इस बात की भनक किसी को नहीं थी। ५ मार्च, १९९० का दिन था। उस दिन बच्ची के मां-बाप कहीं बाहर गए हुए थे और बच्ची घर पर अकेली थी। मौका देखकर धनंजय चटर्जी ने बच्ची को दबोच लिया और उसके साथ रेप किया। इस दौरान बच्ची ने खूब शोर मचाया पर उसे सुननेवाला वहां कोई नहीं था। रेप के बाद उसे डर हुआ कि बच्ची यह बात सबको बता देगी, तो वह पकड़ा जाएगा। दिमाग में यह खयाल आते ही धनंजय चटर्जी ने बच्ची का गला दबाना शुरू कर दिया और उसे मार डाला। इस मामले की जांच में पुलिस के हाथ धनंजय चटर्जी की गर्दन तक पहुंच गए। उसे गिरफ्तार किया गया और उसके ऊपर मुकदमा चला। लंबी सुनवाई के बाद अदालत ने उसे फांसी की सजा सुनाई। वह १४ अगस्त, २००४ की अल सुबह थी, जब कोलकाता की अलीपुर सेंट्रल जेल में धनंजय चटर्जी को फांसी पर लटका दिया गया था। अंतिम रात धनंजय ने जेल अधीक्षक से अपने पिता-मां और पत्नी को लेटर लिखने के लिए तीन पोस्टकार्ड की मांग की थी। इसके साथ ही उसने अनूप जलोटा के भजनों को सुनने की इच्छा भी जताई थी। उसने फांसी से पहले जेल की अपनी कोठरी में कुछ धार्मिक पुस्तकें पढ़ीं और पूजा-पाठ भी किया। उसने अपनी आंखें और किडनी दान करने की इच्छा व्यक्त की थी, जिसमें राज्य सरकार ने केवल आंखें दान करने की ही अनुमति दी थी।