श्रीकिशोर शाही
मुंबई
गत शुक्रवार की रात झांसी के एक अस्पताल में नवजात बच्चों के वॉर्ड में लगी आग में जलकर ११ नौनिहालों की दर्दनाक मौत हो गई। जिन्होंने अभी-अभी ढंग से आंखें भी नहीं खोली थीं, वे काल के गाल में समा गए। अस्पताल में इस तरह की दुर्घटना अक्षम्य है। अगर प्रशासन चुस्त रहता तो इस तरह की घटना नहीं होती। अस्पताल में आग लगने की इससे भी भयंकर घटना कोलकाता में हुई थी। बात १३ साल पुरानी है। कोलकाता के एक अस्पताल में बड़ी ही भीषण आग लगी थी, जिसमें कई जानें चली गई थीं।
९ दिसंबर, २०११ को कोलकाता के निजी अस्पताल ‘एएमआरआई’ के बेसमेंट मेंं तड़के आग लगी थी। बेसमेंट की इस आग ने पूरे अस्पताल को अपनी चपेट में ले लिया था। बेसमेंट की आग वहां पर बने केमिकलों, गैस सिलिंडरों और दवाओं के गोदाम की वजह से और भड़क गई। हर तरफ चीख-पुकार मच गई थी। अफरा-तफरी के महौल में किसी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। नतीजतन, दम घुटने और झुलसने से करीब ९० मरीजों की मौत हो गई थी। दो घंटे बाद जब तक फायर ब्रिगेड की गाड़ियां आतीं, तब तक आग और धुएं ने ऊपरी मंजिलों तक पहुंचकर तबाही मचानी शुरू कर दी थी। सबसे बुरा हाल आईसीयू आर्थोपेडिक विभाग के मरीजों और अन्य वॉर्डों के गंभीर मरीजों का हुआ, जो उठकर भाग नहीं सके। अस्पताल का ज्यादातर हिस्सा वातानुकूलित था, जिसके कारण धुआं बाहर नहीं निकल सका। करीब १४ घंटे बाद ३५ फायर ब्रिगेड की गाड़ियों की मदद से आग पर काबू पाया जा सका, तब तक खेल खत्म हो चुका था। मरने वालों में कांग्रेस के नेता अजय घोषाल और पूर्व कांग्रेस विधायक शिशिर सेन शामिल थे। आग कितनी भयावह थी, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस घटना में २० दमकलकर्मी भी झुलस गए थे। हिंदुस्थान के इतिहास में अपनी तरह का यह पहला मामला था, जब इलाज के लिए अस्पताल आनेवाले मरीज इतनी बड़ी संख्या में जलकर मर गए। आग लगने के बाद हालांकि बहुत से मरीजों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया, मगर ९० मृत मरीजों की संख्या बहुत होती है। यह हादसा अपने आप में कई सवाल छोड़ गया। अस्पताल में लोग अपना इलाज कराने और अपनी जान बचाने पहुंचते हैं। ऐसे में आईसीयू और अन्य वॉर्डों में भर्ती मरीजों की बेबसी का अंदाजा लगाना भी मुश्किल है जो जीवनरक्षक मशीनों के सहारे जिंदगी की जंग जीतने की उम्मीद बांधे थे, लेकिन आग के जहरीले धुएं ने उन्हें मौत के अंधे कुएं में धकेल दिया। मरने वालों में एक बांग्लादेशी नागरिक भी शामिल था। घटना के बाद अस्पताल का लाइसेंस रद्द करते हुए अस्पताल के निदेशकों के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया गया। इसके बाद सभी छह निदेशकों ने पुलिस के समक्ष सरेंडर कर दिया था।