मुख्यपृष्ठधर्म विशेषशरद पूर्णिमा पर सोलह कलाओं से पूर्ण होता है चंद्रमा

शरद पूर्णिमा पर सोलह कलाओं से पूर्ण होता है चंद्रमा

दीपक तिवारी

आश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा शरद पूर्णिमा कहलाती है और शरद पूर्णिमा की रात में चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। लक्ष्मी जी को जागृत करने के कारण इस व्रत को कोजागर पूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु देवी लक्ष्मी एवं तुलसी जी का पूजन किया जाता है। ऐसी मानता है कि पूर्णिमा की चांदनी में अमृत का वास रहता है और यही कारण है कि प्रसादी में चांदनी रात में रखी खीर का पान किया जाता है। पूर्णिमा की रात महालक्ष्मी जी का पूजन किया जाता है। इसमें डेढ पाव मावा और डेढ पाव शक्कर के छह लड्डू बनाकर पूजा की जाती है। एक लड्डू भगवान को, एक लड्डू पति को, एक लड्डू गर्भवती महिला को, एक लड्डू सखी को, एक लड्डू तुलसी को अर्पित कर एक लड्डू स्वयं ग्रहण करने का विधान है। शरद पूर्णिमा की रात खुले में बैठकर चांदनी में भगवान का पूजन करना चाहिए। इसी तिथि को भगवान श्री कृष्ण ने रासलीला की थी इसलिए ब्रज में इस पर्व को विशेष उत्सव के साथ मनाया जाता है।

विदिशा के धर्माधिकारी पंडित विनोद शास्त्री ने बताया कि इस वर्ष 16 अक्टूबर बुधवार को शरद पूर्णिमा का व्रत किया जाएगा। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा शरद पूर्णिमा कहलाती है। इस व्रत में प्रदोष और निशीथ दोनों में होने वाली पूर्णिमा ली जाती है। यदि पहले दिन निशीथ व्यापिनी और दूसरे दिन प्रदोष व्यापिनी ना हो तो पहले दिन व्रत करना चाहिए। धर्म सिंधु निर्णय सिंधु धार्मिक ग्रंथों के अनुसार पहले दिन अर्धरात्रि व्यापिनी हो तो पहली ग्रहण करना चाहिए। अर्ध रात्रि में जिसका स्पर्श हो रहा हो उसी पूर्णिमा को ग्रहण करना चाहिए। शरद पूर्णिमा व्रत में निशीथ व्यापिनी तिथि ग्रहण करना चाहिए जो रात्रि में पूर्णिमा तिथि रहे उसी में शरद पूर्णिमा का व्रत करना चाहिए।
निशीथे वरदा लक्ष्मीः को जागर्तीति भाषिणी! जगति भ्रमते तस्यां लोकचेष्टावलोकिनी!!
तस्मै वित्तं प्रयच्छामि यो जागर्ति महीतले!!
आश्विन मास की पूर्णिमा को भगवती महालक्ष्मी रात्रि में यह देखने के लिए निकलती हैं कि कौन जाग रहा है। जो जाग रहा है उसे धन देती हैं लक्ष्मी जी को जागर्ति कहने के कारण इसका नाम कोजागर पड़ा।

व्रत का विधान
पूर्णिमा के दिन प्रातः काल अपने आराध्य देव को सुंदर वस्त्र आभूषण से सुशोभित करके उनका यथा विधि षोडशोपचार से पूजन करना चाहिए। अर्धरात्रि के समय गो दूध से बनी खीर का भगवान को भोग लगाना चाहिए। खीर से भरे पात्र को रात में खुली चांदनी में रखना चाहिए। इसमें रात्रि के समय चंद्र किरणों के द्वारा अमृत गिरता है। पूर्ण चंद्रमा के मध्याकाश में स्थित होने पर उसका पूजन कर अर्घ्य प्रदान करना चाहिए। रात्रि के समय घृतपूरित और गंध पुष्प आदि से पूजा करके 108 या यथाशक्ति दीपकों को प्रज्वलित कर देव मंदिरों में बाग बगीचों में तुलसी पास रखना चाहिए। शरद पूर्णिमा की रात्रि में श्री सूक्त लक्ष्मी सूक्त गोपाल सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए एवं बेलपत्र कमल गट्टा खीर हवन सामग्री से हवन करने का भी विधान है।

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